UP: कोवैक्सीन टीके से स्वास्थ्य समस्याओं का दावा करने वाले BHU के शोधकर्ताओं को नोटिस, हो सकती है कार्रवाई!

अध्ययन में दावा किया गया था कि टीका लगवाने वालों को त्वचा और तंत्रिका तंत्र से सम्बंधित बीमारियों का सामना करना पड़ा, जिसमें खासकर किशोरों को यह समस्याएं हुई हैं. अब इस मामले पर शोध करने वाले बीएचयू के विज्ञानियों पर कार्रवाई की तलवार लटक गई है। उन्हें नोटिस जारी कर कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू)
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) फोटो साभार- इन्टरनेट

उत्तर प्रदेश: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किये गए एक साल के अध्ययन में दावा किया गया था कि भारत बायोटेक के कोविडरोधी टीके 'कोवैक्सीन' को लगवाने वाले लगभग एक तिहाई लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन, अब कोविशील्ड की तरह कोवैक्सीन से भी गंभीर बीमारियों का दावा करने वाले बीएचयू के वैज्ञानिकों पर कार्रवाई की तलवार लटक गई है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने वैज्ञानिकों के इस शोध पर कड़ी आपत्ति जताई है।

परिषद ने अध्ययन करने वाले बीएचयू के दो विज्ञानियों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। इसमें कहा गया है कि परिषद किसी भी रूप में इस अध्ययन या इसकी रिपोर्ट से नहीं जुड़ा है। अध्ययन करने वालों से पूछा गया है कि क्यों न इस मामले में उनके विरुद्ध कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई की जाय।

बीएचयू के फार्माकोलाॉजी और जीरियाट्रिक विभाग की ओर से पिछले दिनों किये अध्ययन में बताया गया था कि कोवैक्सीन लेने वाले किशोरों और वयस्कों में इसका काफी दुष्प्रभाव हुआ है। अध्ययन के आधार पर रिपोर्ट में कहा गया कि 30 फीसदी से ज्यादा लोगों को इससे स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं देखी गई। इस रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद काफी खलबली मची और लोग सशंकित होने लगे। यह अध्ययन जीरियाट्रिक विभागाध्यक्ष प्रो. शुभ शंख चक्रवर्ती और फार्माकॉलोजी विभाग की डॉ. उपिंदर कौर ने किया था। इसमें बताया था कि कोवैक्सीन के प्रभाव से लोगों में स्ट्रोक, खून का थक्का जमना, बाल झड़ना, त्वचा की खराबी जैसी समस्याएं हो रही हैं।

आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने शनिवार को प्रो. चक्रवर्ती और डॉ. कौर को भेजे नोटिस में स्पष्ट तौर पर कहा है कि इस रिपोर्ट से परिषद से जुड़ा हिस्सा तत्काल हटाया जाए और इस संदर्भ में खेद प्रकाशित किया जाय। डॉ. बहल ने यह भी कहा है कि इस अध्ययन के लिए आईसीएमआर से कोई स्वीकृति नहीं ली गई थी। यह भी संज्ञान में आया है कि पूर्व में प्रकाशित कुछ रिपोर्टों में भी आईसीएमआर को गलत तरीके से शामिल कर लिया गया था। ऐसी स्थिति में यह बताएं कि क्यों न परिषद की ओर से आपके विरुद्ध कार्रवाई की जाय।

इस मामले में आईसीएमआर ने चार सवाल उठाए हैं, जो इस प्रकार हैं- 

1. रिपोर्ट में कहीं इस बात की कोई स्पष्टता नहीं है कि जिन लोगों ने वैक्सीन लगाई और जिन्होंने नहीं लगाई, उनके बीच तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। इस लिहाज से इस रिपोर्ट को कोविड वैक्सिनेशन से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।

2. अध्ययन से यह नहीं पता चलता कि जिन लोगों में भी वैक्सीन के बाद कुछ हुआ, उन्हें पहले से कोई ऐसी परेशानी रही हो। इसका जिक्र नहीं है। ऐसे में यह कह पाना लगभग असंभव है कि उन्हें जो भी परेशानी हुई उसकी वजह वैक्सिनेशन थी। जिन लोगों को अध्ययन में शामिल किया गया, उनके बारे में आधारभूत जानकारियों का रिपोर्ट में अभाव है।

3. जिस एडवर्स इवेंट्स ऑफ स्पेशल इंटेरेस्ट (एईएसआई) का रिपोर्ट में हवाला दिया गया है, उससे अध्ययन के तरीके मेल नहीं खाते।

4. अध्ययन में शामिल लोगों से वेक्सिनेशन के एक साल बाद टेलीफोन के जरिये आंकड़े इकट्ठा किये गए। उन्होंने जो बताया उसका बिना क्लीनिकल या फिजीशियन से सत्यापन किये रिपोर्ट तैयार कर दी गई। इससे लगता है कि यह सबकुछ पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर किया गया है। 

जांच के लिए कमेटी गठित

को-वैक्सीन पर रिपोर्ट के मामले में बीएचयू के कुलपति प्रो. सुधीर जैन ने भी चिकित्सा विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. एसएन संखवार से रिपोर्ट मांगी है। निदेशक ने रिपोर्ट उन्हे सौंप दी है। निदेशक ने भी माना है कि शोध जल्दबाजी में किया गया है। इसके साथ ही उन्होंने इस शोध की जांच के लिए आईएमएस डीन रिसर्च प्रो. गोपालनाथ के नेतृत्व में चार सदस्यीय कमेटी गठित की है। कमेटी की जांच रिपोर्ट आने के बाद स्थिति और स्पष्ट होगी।

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