लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की प्रमुख मायावती ने शुक्रवार को केंद्र सरकार द्वारा संसद में यह स्पष्ट करने पर संतोष जताया कि संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की कोई योजना नहीं है।
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा संसद में दिए गए बयान को "उचित और सराहनीय" बताते हुए मायावती ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा,
“यह उन सभी लोगों के लिए राहत और भरोसे की खबर है, जिनमें हमारी पार्टी बीएसपी भी शामिल है, जो बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के सबसे पूज्य संविधान में किसी भी तरह की अनुचित छेड़छाड़ या बदलाव के खिलाफ हैं और ऐसी अनुचित मांगों को लेकर चिंतित थे।”
इस बहस की शुरुआत जून में हुई थी, जब आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने यह मुद्दा उठाया कि संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों के बने रहने पर चर्चा होनी चाहिए।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मायावती ने कहा था कि संविधान की मानवीय भावना और उद्देश्यों से छेड़छाड़ करना बेहद अनुचित होगा। उन्होंने कहा था,
“संविधान में प्रयुक्त शब्द और इसकी प्रस्तावना देश की आत्मा को तृप्त करती है। इन्हें गहन विचार-विमर्श और दूरदर्शिता के बाद लागू किया गया था।”
उन्होंने यह भी कहा था कि बीएसपी को अब यह महसूस हो रहा है कि ऐसे मुद्दों के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर आवाज़ उठाने की ज़रूरत है। उन्होंने यह भी कहा था कि,
“अगर कोई भी राजनीतिक दल संविधान से छेड़छाड़ करता है, तो बीएसपी चुप नहीं बैठेगी, बल्कि सड़कों पर उतरकर विरोध करेगी।”
मायावती ने कहा कि भारत विभिन्न धर्मों के लोगों — हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी — की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है, और संविधान के माध्यम से विविधता में एकता ही भारत की अनोखी पहचान है।
गुरुवार को केंद्र सरकार ने संसद में साफ किया कि फिलहाल संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की कोई योजना नहीं है।
समाजवाद पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में कानून एवं न्याय मंत्रालय ने कहा:
“सरकार का आधिकारिक रुख है कि संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्षता’ शब्दों को हटाने की कोई वर्तमान योजना या इरादा नहीं है। इस तरह के किसी भी संशोधन पर व्यापक चर्चा और सर्वसम्मति की आवश्यकता होगी, लेकिन अभी तक ऐसी कोई औपचारिक प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है।”
मंत्रालय ने यह भी कहा कि कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा दिए गए बयानों से उत्पन्न चर्चा सरकार की आधिकारिक सोच को प्रतिबिंबित नहीं करती।
उन्होंने कहा, “अगर कुछ संगठन या व्यक्ति इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं या पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं, तो यह सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह सरकार की आधिकारिक नीति नहीं है।”
मंत्रालय ने नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक अहम फैसले का हवाला दिया, जिसमें डॉ. बलराम सिंह व अन्य बनाम भारत सरकार के मामले में अदालत ने यह स्पष्ट किया कि संसद को संविधान की प्रस्तावना में संशोधन का अधिकार है।
अदालत ने 1976 के 42वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया और कहा:
‘समाजवाद’ भारतीय संदर्भ में एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को दर्शाता है और यह निजी क्षेत्र की वृद्धि में बाधक नहीं है।
‘पंथनिरपेक्षता’ संविधान की मूल संरचना का अभिन्न अंग है।
गौरतलब है कि ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द मूल संविधान की प्रस्तावना में शामिल नहीं थे। इन्हें 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.