त्रिपुरा से दिल्ली तक पैदल मार्च पर निकले तिप्रासा समुदाय के लोग, जानिए क्या है पूरा मामला?

त्रिपुरा के तिप्रासा आदिवासी नेता डेविड मुरासिंह ने समुदाय की मांगों के समर्थन में त्रिपुरा से दिल्ली तक पैदल मार्च शुरू किया, केंद्र सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप।
त्रिपुरा से दिल्ली तक तिप्रासा नेता डेविड मुरासिंह का पैदल मार्च: 'ग्रेटर तिपरालैंड' और अधिकारों की मांग
त्रिपुरा से दिल्ली तक तिप्रासा नेता डेविड मुरासिंह का पैदल मार्च: 'ग्रेटर तिपरालैंड' और अधिकारों की मांग
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अगरतला। त्रिपुरा के तिप्रासा समुदाय के नेता और टिपरा मोथा पार्टी के कार्यकर्ता डेविड मुरासिंह ने केंद्र सरकार की ओर से वादों को पूरा न करने के विरोध में त्रिपुरा से दिल्ली के जंतर-मंतर तक पैदल मार्च शुरू किया है। उनके साथ तिप्रासा समुदाय के 16-17 लोग इस मार्च में शामिल हैं।

डेविड मुरासिंह ने बताया कि वे साउथ बीसी मोनो के जनरल चेयरमैन थे, लेकिन इस कार्यक्रम के लिए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस मार्च में कई लोग समय-समय पर शामिल हो रहे हैं और समुदाय का समर्थन मिल रहा है।

डेविड मुरासिंह ने आईएएनएस के साथ बातचीत में कहा, "यह मार्च मेरा निजी उद्देश्य नहीं है, बल्कि तिप्रासा समुदाय की लंबे समय से चली आ रही मांगों की ओर ध्यान दिलाना है। हमारी तीन मुख्य मांगें हैं: पहला, 'ग्रेटर तिपरालैंड' की स्थापना; दूसरा, तिपरासा समझौते को लागू करना; और तीसरा, त्रिपुरा और पूरे पूर्वोत्तर में अवैध प्रवास पर रोक लगाना।"

उन्होंने बताया कि 2 मार्च 2024 को केंद्र सरकार, त्रिपुरा सरकार और तिपरा मोथा के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते को छह महीने में लागू करना था, लेकिन 18 महीने बीत जाने के बाद भी इसे लागू नहीं किया गया है। तिप्रासा समुदाय का कहना है कि केंद्र सरकार ने उनके हितों की अनदेखी की है।

अवैध प्रवास के कारण त्रिपुरा के आदिवासी समुदाय को अपनी जमीन, रोजगार और राजनीतिक अधिकारों में नुकसान हो रहा है।

डेविड मुरासिंह ने कहा, "अवैध प्रवास न केवल त्रिपुरा, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर और भारत के लिए एक बड़ी समस्या है। हम दिल्ली में जंतर-मंतर पर धरना देंगे और पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन करेंगे ताकि हमारी मांगों को राष्ट्रीय स्तर पर सुना जाए।"

इस मार्च का उद्देश्य केंद्र सरकार का ध्यान तिप्रासा समुदाय की मांगों की ओर खींचना है, जिसमें ग्रेटर तिपरालैंड, समझौते का कार्यान्वयन और अवैध प्रवास पर रोक शामिल है। यह मार्च त्रिपुरा की आदिवासी संस्कृति, पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुटता का प्रतीक माना जा रहा है।

(With inputs from IANS)

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