लोकसभा चुनाव 2024: आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा-कांग्रेस मौन, जानिए कैसे हो रही दलित-पिछड़ों के हक की चोरी?

मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य है, जहां पदोन्नति में आरक्षण के विवाद के कारण पिछले 16 वर्षों से आरक्षण पर प्रतिबंध है। हालांकि ये मामला राज्य सरकार के दखल से सुलझ सकता है, लेकिन शायद शासन की मंशा फिलहाल ऐसा करने की नहीं हैं? शासकीय नौकरी में आरक्षण रोस्टर के पालन में गड़बड़ी और कोर्ट में विचाराधीन प्रकरणों के चलते ओबीसी वर्ग को समुचित आरक्षण तक नहीं मिल रहा है।
आरक्षण.
आरक्षण.Graphic- The Mooknayak

भोपाल। मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2024 में प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा-कांग्रेस आरक्षण के मुद्दे को लेकर बात नहीं कर रहे हैं। पदोन्नति में आरक्षण की बात हो या फिर नौकरियों में आरक्षण रोस्टर के पालना का विषय हो इन सभी में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण देने का मुद्दा चुनाव से पूरी तरह नदारद है। 

मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य है, जहां पदोन्नति में आरक्षण के विवाद के कारण पिछले 16 वर्षों से आरक्षण पर प्रतिबंध है। हालांकि ये मामला राज्य सरकार के दखल से सुलझ सकता है, लेकिन शायद शासन की मंशा फिलहाल ऐसा करने की नहीं हैं? शासकीय नौकरी में आरक्षण रोस्टर के पालन में गड़बड़ी और कोर्ट में विचाराधीन प्रकरणों के चलते ओबीसी वर्ग को समुचित आरक्षण तक नहीं मिल रहा है। बता दें की कांग्रेस की तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए कैबिनेट की मंजूरी दे दी थी। लेकिन यह मामला हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ग में फस गया। 

पदोन्नति में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य शासन को स्वतंत्र किया था। यहां अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के कर्मचारी 16 वर्षों से प्रोमोशन की आस में बैठे हैं। इसके बावजूद गोरकेला समिति द्वारा बनाये गए 'पदोन्नति नियम 2016' को मध्य प्रदेश सरकार अभी तक लागू नहीं कर पाई। पदोन्नति में आरक्षण नियम लागू नहीं होने से एससी/एसटी वर्ग के करीब 60 हजार अधिकारी, कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं हो पा रही है।

साल 2017 में नवीन पदोन्नति नियम का ड्राफ्ट तैयार हो चुका है। गोरकेला समिति ने ड्राफ्ट तैयार कर राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन (कार्मिक) विभाग को सौंप दिया था। लेकिन 6 साल बीत गए सरकार पदोन्नति नियम को कैबिनेट में तक नहीं रख पाई। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार अनुसूचित जाति, जनजाति के अधिकारों के प्रति गंभीर नहीं है! इसके साथ ही राजनीतिक दल भी इसपर खुलकर बात नहीं कर रहे। चुनाव के समय इन मुद्दों की चर्चा तक सियासी गलियारों में नहीं सुनाई पड़ रही। 

आरक्षण नियमों का नहीं हो रहा पालन

मध्य प्रदेश में शासकीय भर्ती की विज्ञप्ति जारी होते ही आरक्षण के विवाद में फस रही है। या फिर रिजल्ट में मैरिट सूची में आरक्षण रोस्टर का नियमानुसार पालन नहीं होने से भर्ती पर कोर्ट स्टे दे रहा है। बीते महीने ही जबलपुर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें बताया गया कि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को नियमों के विपरीत जाकर अपने ही प्रवर्ग में रोक दिया गया। 

याचिकाकर्ता द्वारा बताया गया कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल द्वारा 28 अगस्त, 2018 को विस्तृत नियमावलि व नियम-पुस्तिका जारी कर शिक्षक पात्रता परीक्षा का आयोजन किया गया था। उच्च माध्यमिक शिक्षक के पद पर नियुक्ति की पात्रता रखने वाले अभ्यर्थियों ने आवेदन प्रस्तुत कर पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उक्त पात्रता परीक्षा व चयन प्रकिया शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 एवं मध्य प्रदेश शिक्षक चयन नियम 2018 के अनुरूप किया जाना था।

याचिकाकर्ता दमोह निवासी निकिता सहित अन्य की ओर से अधिवक्ता ब्रहमेंद्र पाठक, रीना पाठक, शिवेश अग्निहोत्री, राममिलन साकेत व आतिश कुमार यादव ने पक्ष रखते हुए, उन्होंने दलील दी कि आरक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में चयनित न करके उन्हीं के प्रवर्ग में रोका जा रहा है।

शिक्षक पात्रता उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की मेरिट अनुसार अंतिम चयन सूची प्रकाशित की गई थी। जिसके बाद स्कूल शिक्षा विभाग व आदिवासी विकास विभाग द्वारा अपनी रिक्तियों के अनुसार मेरिट के क्रम में अभ्यर्थियों का चयन कर उच्च माध्यमिक शिक्षक के पद पर पदस्थापना की जानी थी।

पात्रता परीक्षा की नियमावली व शिक्षक भर्ती नियम 2018 के अनुसार दोनों विभागों द्वारा एकीकृत चयन सूची से ही अभ्यर्थियों का चयन कर नियुक्ति पत्र दिया जाना था। लेकिन दोनों विभागों द्वारा अपनी अलग-अलग सूची बनाई गई, जिसमें अभ्यर्थियों के नाम दोनों सूची में पाए जाने से अन्य योग्य एवं पात्र अभ्यर्थियों का चयन नहीं हो सका। 

भाजपा के पास मोदी की गारंटी, कांग्रेस सिर्फ पलटवार में व्यस्त

इस बार के चुनाव में भाजपा मोदी की गारंटी पर चुनाव लड़ रही है। पिछले 10 वर्षों के काम जिनमें कश्मीर से धारा 370 के संशोधन, तीन तलाक और राम मंदिर के मुद्दे के साथ केंद्र की योजनाएं शामिल हैं। पूरा चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा जा रहा है। वहीं कांग्रेस में राहुल गांधी के अलावा कोई भी नेता दम भरते नहीं दिख रहा। कांग्रेस की प्रदेश इकाई भाजपा के बयानों के सिर्फ पलटवार में व्यस्त हैं। कांग्रेस के कार्यकर्ता धरातल के काम से दूर सिर्फ सोशल मीडिया पर ही प्रचार करते दिख रहे हैं। प्रदेश में 17 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 21 प्रतिशत आदिवासियों की संख्या है लेकिन दोनों ही पार्टी आरक्षण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर कोई बात नहीं कर रही हैं। 

1.40 लाख बैकलॉग के पद रिक्त

मध्य प्रदेश के सभी विभागों में एससी/एसटी के बैकलॉग के पद रिक्त हैं। बैकलॉग के करीब 1 लाख 40 हजार पद पर भर्ती नहीं हो सकी है। जिनमें सबसे ज्यादा शिक्षा विभाग में पद रिक्त है। एक अनुमान के मुताबिक करीब 40 हजार पद सिर्फ शिक्षक पात्रता परीक्षा के वर्ग 1, वर्ग 2 और वर्ग तीन में खाली हैं। इसके अलावा  सामाजिक न्याय, महिला बाल विकास विभाग, स्वास्थ्य विभाग, पंचायत ग्रामीण विकास विभाग में हजारों की संख्या में पद रिक्त पड़े हैं। 

द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महासचिव एसएल शूर्यवंशी ने बताया कि सरकार ने अभी पदोन्नति में आरक्षण नियम को लागू नहीं किया है जबकि 2017 में ही इसका ड्राफ्ट सरकार को दिया जा चुका है। शूर्यवंशी ने कहा- "शासकीय भर्तियों में आरक्षण रोस्टर का पालन भी नियम अनुसार नहीं हो रहा है, बैकलॉग पदों पर भर्तियां भी नहीं की जा रही हैं।"

आरक्षण.
लोकसभा चुनाव 2024: सीवर में उतरने वाले दलितों के मुद्दे पार्टियों के मैनिफेस्टो में क्यों नहीं होते शामिल?
आरक्षण.
लोकसभा चुनाव 2024 : BJP और कांग्रेस की उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में कितने SC-ST, OBC और महिलाएं ?

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

Related Stories

No stories found.
The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com