लोकसभा चुनाव 2024: सीवर में उतरने वाले दलितों के मुद्दे पार्टियों के मैनिफेस्टो में क्यों नहीं होते शामिल?

पिछले पांच सालों में सीवर सफाई के दौरान सौ से ज्यादा सफाईकर्मियों की हुई मौत. भारत में सफाई कर्मियों को लेकर आंदोलन करने वाले बेजवाड़ा विल्सन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बताया गलत, कहा दलितों की जान की कीमत बस 30 लाख.
सांकेतिक तस्वीर- सीवर सफाई
सांकेतिक तस्वीर- सीवर सफाई फोटो साभार- indiatoday

नई दिल्ली। भारत देश में सीवेज सफाई सिस्टम को लेकर अभी तक कोई भी सरकार ठोस हल नहीं निकाल पाई है। आज भी हाथ से मैला ढोने और सीवर में उतने के कारण सफाईकर्मियों की मौतों का सिलिसिला जारी है। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट कई बार टिप्पणी भी कर चुका है। बावजूद उसके यह प्रथा बंद होने का नाम नहीं ले रही है। इन सब घटनाओं के बीच बस एक ही सवाल उठता है, क्या सीवर सफाई करने वाले दलितों के मुद्दे को लेकर कभी कोई पार्टी लोकसभा चुनाव के दौरान जारी किये जाने वाले मैनिफेस्टो में जगह देगी? क्या कोई राजनीतिक पार्टी जिंदगी के इस नर्क से उन्हें छुटकारा दिला पाएगी?

इस प्रथा के कारण पिछले पांच सालों में तकरीबन चार सौ से ज्यादा सफाईकर्मियों की जान सीवर में उतरकर सफाई के करने के दौरान चली गई। हालांकि, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सीवर सफाई के दौरान सफाईकर्मी की मौत के बाद पीड़ित परिजनों को तीस लाख का मुआवजा देने का प्रावधान किया है। वहीं इस फैसले को लेकर भारत में वृहद स्तर पर सफाई आंदोलन चलाने वाले बेजवाड़ा विल्सन कहते हैं कि पांच साल में 18 बार से ज्यादा सभी राजनितिक पार्टियों को इस मुद्दे को मेनिफेस्टों में लाने के लिए ज्ञापन दिया। लेकिन कोई भी पार्टी इसे स्वीकार नहीं करती है कि ऐसा काम अभी भी होता है। सुप्रीम कोर्ट द्वार 30 लाख का मुआवजा देना यह दर्शाता है कि इन सफाई कर्मियों की जान की कीमत बस इतनी ही है।

भारत के लगभग सभी राज्यों और जिलों में सीवर की सफाई के लिए सफाईकर्मी सीवर चैंबर में उतरकर काम करने को मजबूर हैं। वहीं उन्हें इस काम के लिए औसतन पांच से छः हजार रूपये ही दिए जाते हैं। इस काम से होने वाली आमदनी से बढ़ती महंगाई में सफाईकर्मियों का घर चला पाना बड़ा मुश्किल काम है। इस काम के दौरान कब मौत हो जाए इसका अनुमान भी नहीं लगे जा सकता है। सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई कृत्रिम रूप से बंद करवाना एक कठिन प्रक्रिया है। सालों से उठ रही मांगों के बावजूद यह अमानवीय काम जारी है।

वर्तमान लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया था कि पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान पूरे देश में 339 लोगों की मौत के मामले दर्ज किये गए। इसका मतलब है कि इस काम को करने में हर साल औसत 67 सफाईकर्मियों की मौतें सीवर में उतरने से हो गई। सभी मामले 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से थे। साल 2019 इस मामले में सबसे भयावह साल रहा, अकेले 2019 में ही 117 सफाईकर्मियों की मौत सीवर में उतरने से हो गई। कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन से गुजरने वाले सालों 2020 और 2021 में भी 22 और 58 सफाईकर्मियों की जान गई।

ताजे मामले की बात करें तो यूपी की राजधानी लखनऊ से मात्र 50 किमी की दूरी पर मौजूद उन्नाव जिले में बीते 18 मार्च को एक बड़ा हादसा हो गया। सीवर सफाई के दौरान निकलने वाली जहरीली गैस के कारण तीन सफाईकर्मी बेसुध होकर सीवर में गिर गए। गनीमत रही उनकी जान नहीं गई। इनमें से दो सफाईकर्मी उन्नाव नगर पालिका में नियमित कर्मचारी के रूप में काम कर रहे हैं, जबकि एक अन्य संविदाकर्मी है। जब यह हादसा हुआ तब इन सफाईकर्मियों को अस्पताल ले जाने का भी ऊचित बंदोबस्त नहीं हुआ।

द मूकनायक टीम ने उस दिन की घटना जानने के लिए तीनों सफाईकर्मियों से मिलने लखनऊ से चलकर उन्नाव पहुंच गई। यह घटना 18 मार्च 2024 की है। सदर कोतवाली क्षेत्र के छोटा चौराहा निवासी जितेंद्र कुमार, कृष्णा नगर निवासी रामाआसरे और पप्पू शिवनगर में सीवर टैंक की सफाई कर रहे थे। सबसे पहले जितेंद्र को बिना सुरक्षा किट के नीचे उतरे। नीचे जाते ही वह बेहोश हो गए। यह देख रामनरेश और फिर पप्पू भी बचाने के लिए बारी-बारी से नीचे उतरे और वह भी बेहोश हो गए थे।

'मशीनों का इस्तेमाल तो होता है, लेकिन मजबूरन उतरना पड़ता है'

इस घटना का शिकार होने वाले रामआसरे द मूकनायक को बताते हैं, "सीवर में सफाई का काम मैं पिछले चालीस साल से कर रहा हूँ। 1986 में मैं संविदाकर्मी के रूप में भर्ती हुआ था। 1996 में मुझे बतौर नियमित कर्मचारी नियुक्ति मिली। उन्नाव में सीवर सफाई का जिम्मा हम तीन कर्मचारियों पर ही है। 1986 से 2016 तक हमें सीवर में डुबकी लगाकर सफाई करना पड़ता था। लेकिन अब यह कम हुआ है। अब मशीनों से पानी खींचकर टैंकों में भर लिया जाता है। लेकिन मैला निकालने के लिए हमें अभी भी सीवर में उतरना पड़ता है।"

उस दिन की घटना को याद करते हुआ रामआसरे कहते हैं, "उस दिन मैं, जितेंद्र और मेरा छोटा भाई पप्पू शिवनगर में सीवर सफाई करने की शिकायत मिलने पर नगर पालिका की तरफ से आदेश मिलने पर पहुंचे थे। लाइन चोक की समस्या हुई थी। सीवर में भरा पानी मशीन से निकाल लिया गया था। लाइन चोक की समस्या देखने के लिए हम सीवर में थोड़ा ही नीचे गए थे। जैसे ही मैंने सीवर के लिंक पाइप से कूड़ा और फंसा हुआ ईंट निकला, अचानक से बदबूदार गैस लीक हो गई। वह सीवर चैंबर में भर गई। मेरा दम घुटने लगा और सांस लेने में समस्या होने लगी। मेरी आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया। मैं बेसुध होकर सीवर में गिर गया। मुझे बचाने आये जितेंद्र और पप्पू भी इसका शिकार हो गए।"

मोहल्ले वालों ने इसकी सूचना नगर पालिका को दी। जैसे तैसे तीनों को बाहर निकल गया। सूचना पाकर मौके पर पहुंची एंबुलेंस से सभी को जिला अस्पताल भेजा गया। इमरजेंसी में सीएमओ डॉक्टर सत्य प्रकाश, डॉक्टर बृज कुमार और डॉक्टर शोभित ने घायल श्रमिकों के स्वास्थ्य परीक्षण किया। हालत को गंभीर देखते हुए उन्हें कानपुर रेफर कर दिया। हालांकि, अब तीनों कर्मचारी स्वस्थ्य हैं।

इस घटना के दौरान अन्य सफाई कर्मचारियों ने हंगामा किया था. कर्मचारियों ने आरोप लगाया था कि बिना किसी सुरक्षा उपकरण के टैंक की सफाई करने के लिए सफाई कर्मियों को उतारा गया। आरोप था कि क्षेत्र का ट्रीटमेंट प्लांट भी बंद है। जिससे टैंक में गैस बन रही थी।

उन्नाव का मुद्दा तो सिर्फ के उदाहरण है। देश में सैकड़ों ऐसे मामले घटते हैं। कई मामलों की जानकारी भी नहीं होती। जितेंद्र, रामआसरे और पप्पू किस्मत के धनी थे जो मौत को मात देकर वापस जिंदगी की तरफ लौट आये हैं। लेकिन इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों की उदासीनता चिंता का विषय बनती जा रही है।

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