
मंगलुरु: महात्मा गांधी और प्रसिद्ध समाज सुधारक नारायण गुरु की ऐतिहासिक मुलाकात के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम, सामान्य तौर पर कर्नाटक में महज एक सामाजिक-राजनीतिक घटना बनकर रह जाता। लेकिन, राज्य की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों ने इसे एक अलग ही रंग दे दिया है।
मंगलुरु में बुधवार को हुआ यह आयोजन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच चल रहे 'पावर गेम' का गवाह बन गया। गौरतलब है कि सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से आने वाले एक प्रमुख ओबीसी नेता हैं, जबकि डी.के. शिवकुमार प्रभावशाली वोक्कालिगा समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।
यह आयोजन पिछड़े समुदायों के शक्ति प्रदर्शन के रूप में भी देखा गया। दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र और केरल की सीमा से सटे इलाकों में बिल्लावा और इडिगा जैसे समुदाय नारायण गुरु को अत्यंत श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। वे उन्हें एक ऐसे सुधारक के रूप में पूजते हैं जिन्होंने समाज में उनकी स्थिति को बदलने में अहम भूमिका निभाई थी।
इस कार्यक्रम के आयोजक एआईसीसी नेता और कर्नाटक एमएलसी बी.के. हरिप्रसाद थे, जो सिद्धारमैया मंत्रिमंडल में शामिल होने के इच्छुक भी बताए जाते हैं। यह आयोजन ऐसे समय में हुआ है जब राज्य में सत्ता परिवर्तन की अटकलें तेज हैं। साथ ही, कांग्रेस की नजरें पड़ोस के केरल राज्य पर भी टिकी हैं, जहां अप्रैल 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं और पार्टी वहां माकपा (CPI-M) से सत्ता हासिल करने की कोशिश में है।
इस कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि इसमें मुख्यमंत्री सिद्धारमैया तो मौजूद थे, लेकिन उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार नदारद रहे। इस आयोजन को केंद्रीय नेतृत्व का समर्थन प्राप्त माना जा रहा था, जिसकी पुष्टि एआईसीसी महासचिव (संगठन) के.सी. वेणुगोपाल की उपस्थिति से हुई। वेणुगोपाल को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है और वे कर्नाटक तथा केरल में कांग्रेस की रणनीति के मुख्य सूत्रधारों में से एक हैं।
इस घटनाक्रम को कर्नाटक में सत्ता हस्तांतरण के लिए कांग्रेस नेतृत्व की सोच और रोडमैप की एक झलक के रूप में देखा जा रहा है। ज्ञात हो कि शिवकुमार लगातार सीएम पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं, जिससे नेतृत्व पर दबाव बढ़ा है।
जानकारों का मानना है कि इस महत्वपूर्ण ओबीसी कार्यक्रम से शिवकुमार की अनुपस्थिति, पिछड़े समुदायों के बीच उनकी कमजोर पकड़ को उजागर करती है। दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ मिलकर ये समुदाय राज्य में कांग्रेस के वोट बैंक की रीढ़ माने जाते हैं।
भले ही सिद्धारमैया और शिवकुमार, दोनों ने सार्वजनिक रूप से कहा हो कि नेतृत्व परिवर्तन का फैसला हाईकमान करेगा (सीएम ने यह भी कहा कि हाईकमान के फैसला लेते ही उनके डिप्टी सीएम बन जाएंगे), लेकिन सूत्रों की मानें तो कहानी कुछ और है। ऐसा कहा जा रहा है कि सिद्धारमैया केरल चुनावों तक मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं।
यह आयोजन कैबिनेट फेरबदल की संभावनाओं का भी संकेत देता है। सिद्धारमैया इसके पक्ष में हैं, जबकि शिवकुमार इसका विरोध कर रहे हैं। इसे सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया का पहला कदम माना जा रहा है, जिसके बाद सिद्धारमैया को सम्मानजनक विदाई दी जा सकती है।
सिद्धारमैया ने पद के दावेदारों के साथ निजी बातचीत में स्पष्ट किया है कि "राजनीति स्थायी नहीं है" और "सत्ता किसी की पुश्तैनी जायदाद नहीं है।" यह इस बात का संकेत है कि यदि कांग्रेस हाईकमान निर्देश देता है, तो वे पद छोड़ने के लिए तैयार हैं।
राजनीतिक गलियारों में एक चर्चा यह भी है कि सिद्धारमैया के पद छोड़ने से पहले बी.के. हरिप्रसाद को कैबिनेट में एक ओबीसी चेहरे के रूप में शामिल किया जा सकता है। इसे शिवकुमार के गैर-ओबीसी कद और उनकी राजनीतिक चालों के जवाब के रूप में देखा जा रहा है।
कुछ महीने पहले सिद्धारमैया और हरिप्रसाद के बीच एक नाश्ते पर हुई अचानक मुलाकात ने भी खूब सुर्खियां बटोरी थीं। इसे शिवकुमार के साथ हरिप्रसाद की अनबन के बाद एक नए गठबंधन की शुरुआत के तौर पर देखा गया था। हरियाणा के एआईसीसी प्रभारी हरिप्रसाद को गांधी परिवार का कट्टर वफादार माना जाता है।
हालिया नेतृत्व संकट के दौरान, हरिप्रसाद ने राहुल गांधी से मुलाकात भी की थी, हालांकि बाद में उन्होंने इसे एआईसीसी पदाधिकारी के रूप में अपनी जिम्मेदारी बताया था। इसके अलावा, उन्होंने दिग्गज दलित नेता और मंत्री के.एच. मुनियप्पा के आवास पर कांग्रेस वफादारों की एक बैठक में भी हिस्सा लिया था।
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