आम चुनाव 2024ः सुरक्षित नगीना सीट पर 'असुरक्षित' क्यों हैं बसपा-आसपा ?

द मूकनायक को वरिष्ठ पत्रकार अम्बरीश कुमार ने बताया कि इस सीट पर किसी भी दल का खास दबदबा नहीं रहा है। बहुजन समाज पार्टी ने 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से यह सीट झटकते हुए अपने नाम कर लिया था। हालांकि इस बार समीकरण बदल गया है.
आम चुनाव 2024ः सुरक्षित नगीना सीट पर 
 'असुरक्षित' क्यों हैं बसपा-आसपा ?

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में दलित-बहुजन राजनीति की दिशा और दशा जाननी है तो एक बार नगीना लोकसभा क्षेत्र के सियासी समीकरणों पर जरूर चर्चा कर लेनी चाहिए। लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए नामांकन पूरा हो चुका है साथ ही अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित इस सीट पर अब तस्वीर काफी कुछ साफ हो गई है। आजाद समाज पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद की मौजूदगी ने इस सीट के चुनावी रण को काफी रोचक बना दिया है।

पिछले चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी और बसपा गठबंधन के उम्मीदवार गिरीश चंद्र की जीत हुई थी। बसपा ने अपने सांसद गिरीशचंद्र की जगह सुरेन्द्र मैनवाल को प्रत्याशी घोषित किया है, जबकि सपा-कांग्रेस ने मनोज कुमार और भाजपा ने विधायक ओम कुमार को टिकट दिया है। बसपा गिरीशचंद्र को बुलंदशहर से प्रत्याशी बनाकर अपना वोट बैंक सुरक्षित रखने की जुगत में है।

नगीना लोकसभा सीट आखिर क्यों है इतनी खास?

नगीना सीट का महत्व इस बात से समझिए कि इस सीट पर उम्मीदवारी के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, बसपा नेता आकाश आनंद समेत कई और बड़े नामों पर चर्चा हुई। एक बार ‘इंडिया’ गठबंधन की तरफ से आजाद समाज पार्टी नेता चंद्रशेखर आजाद तक के चुनाव लड़ने की चर्चा छिड़ी। हालांकि चंद्रशेखर अपनी पार्टी से चुनाव लड़ रहे है। भाजपा और समाजवादी पार्टी ने स्थानीय उम्मीदवारों पर दांव लगाया। वहीं बसपा ने अपने निवर्तमान सांसद का टिकट काटकर नए चेहरे को टिकट दिया।

ऐसे में सवाल यह है कि नगीना में ऐसा क्या है कि हर कोई वहां से चुनाव लड़ना चाहता है? इस सवाल का जवाबइस सीट पर अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या में छिपा है। नगीना बिजनौर जिले का कस्बा है। 2009 में नए परिसीमन के बाद यह सीट अस्तित्व में आई। इससे पहले नगीना विधानसभा सीट बिजनौर लोकसभा सीट का हिस्सा थी।

नई सीट में पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल किए गए। इनमें नगीना के अलावा नजीबाबाद, धामपुर, नहटौर और नूरपुर शामिल हैं। परिसीमन में जिले की दूसरी सीट बिजनौर में सदर और चांदपुर विधान सभा सीट के अलावा मुजफ्फरनगर की पुरकाजी और मीरापुर शामिल की गईं। इसके अलावा मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा सीट भी बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में शामिल हैं।

इस लिहाज से नगीना बिजनौर जिले की प्रमुख सीट है। वर्ष 2009 के परिसीमन में बिजनौर को आरक्षित श्रेणी से हटाकर सामान्य कर दिया गया जबकि नवसृजित नगीना को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। मौजूदा समय में नगीना सीट पर मतदाताओं की संख्या पंद्रह लाख के करीब है। इनमें 50 फीसदी से ज्यादा मुसलमान मतदाता हैं।

मौजूदा दौर में अल्पसंख्यक और दलित मतदाताओं की संख्या इस सीट पर तकरीबन 70 फीसदी है। इस लिहाज से यह भाजपा विरोधी राजनीति करने वाले दलित-बहुजन नेताओं के लिए सर्वाधिक सुरक्षित सीट मानी जाती है।

किसी भी दल की पकड़ मजबूत नहीं

द मूकनायक को वरिष्ठ पत्रकार अम्बरीश कुमार ने बताया कि इस सीट पर किसी भी दल का खास दबदबा नहीं रहा है। बहुजन समाज पार्टी ने 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से यह सीट झटकते हुए अपने नाम कर लिया था। हालांकि इस बार समीकरण बदल गया है और पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ मैदान में उतरने वाली बहुजन समाज पार्टी इस बार साथ नहीं है, लेकिन INDIA गठबंधन के नाम पर सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं।यहां से आजाद समाज पार्टी अध्यक्ष के चुनाव लड़ने से अब यह सीट किसी के लिए सुरक्षित नहीं बची है।

क्या रहा नगीना सीट का संसदीय इतिहास

नगीना सीट का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। 2008 के परिसीमन के बाद नगीना संसदीय सीट अस्तित्व में आई थी और यहां पर पहली बार 2009 में वोट डाले गए। नगीना सीट की खास बात यह है कि तीनों बार अलग-अलग दलों को जीत मिली है। 2009 में समाजवादी पार्टी के यशवीर सिंह को जीत मिली थी। यशवीर ने बीएसपी के राम कृष्ण सिंह को हराया था। 2014 के चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी को उत्तर प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में जोरदार जीत मिली थी। नगीना सीट पर बीजेपी के यशवंत सिंह ने एसपी के यशवीर सिंह को 92,390 मतों के अंतर से हराया था। बसपा के गिरीश चंद्र तीसरे स्थान पर रहे थे।

हालांकि 2019 के आम चुनाव में सपा और बीएसपी ने आपसी गठबंधन कर लिया और बसपा ने गिरीश चंद्र को मैदान में उतारा। गठबंधन की वजह से सांसद और बीजेपी प्रत्याशी यशवंत सिंह को हरा दिया। और यह जीत भी कोई छोटी जीत नहीं थी, गिरीश ने 1,66,832 मतों के अंतर से चुनाव में जीत हासिल की थी. लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है क्योंकि सपा और बीएसपी के बीच आपसी गठबंधन नहीं है।

नगीना संसदीय सीट का जातीय समीकरण

यह संसदीय सीट अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है, लेकिन यहां सबसे ज्यादा आबादी मुस्लिम बिरादरी की है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, इस क्षेत्र में मुस्लिम वोटर्स की संख्या कुल आबादी में से 70.53% है, तो यहां पर हिंदू लोगों की संख्या 29.06% है. यहां करीब 21 फीसदी एससी वोटर्स भी रहते हैं. इस सीट पर 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटर्स के होने की वजह से यहां पर इनकी भूमिका निर्णायक रहती है।

इसलिए भी जाना जाता है नगीना

ब्रिटिश शासनकाल में इस क्षेत्र का अपना अलग ही इतिहास रहा है। पंजाब में 1919 में हुए चर्चित जलियावाला बाग हत्याकांड की तरह यहां भी एक घटना घट चुकी है। आजादी की जंग में 21 अप्रैल 1858 को नगीना के पाईबाग पहुंची ब्रिटिश सेना पर इनामत रसूल और जान मुहम्मद महमूद की ओर से बंदूक से फायर कर दिया गया। जिसके जवाब में सेना ने निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाकर उन्हें मौत की नींद सुला दिया था। इस फायरिंग में करीब 150 लोगों की जान चली गई। इसे नगीना का जलियावालां बाग हत्याकांड कहा जाता है. हालांकि ऐतिहासिक कुआं अब नष्ट हो चुका है।

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