दिल्ली: अंबेडकर का मुखौटा पहन लिया 'संविधान बचाने' का संकल्प, रामलीला मैदान की रैली रद्द होने के बाद अंबेडकर भवन में जुटे हजारों लोग

पुलिस की सख्ती और रामलीला मैदान में 'नो एंट्री' के बीच अंबेडकर भवन में जुटे हजारों कार्यकर्ता; उदित राज बोले- 'राजनीतिक दलों के बस की बात नहीं रही लोकतंत्र की रक्षा, अब जन आंदोलन ही रास्ता।'
DOMA Parisangh Rally Delhi
संविधान बचाओ संकल्प दिल्लीPic- @Dr_Uditraj
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नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में 'कॉन्फेडरेशन ऑफ दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशंस' (डोमा परिसंघ) के सदस्यों ने एक अनोखे तरीके से अपना विरोध और प्रतिबद्धता जाहिर की। नई दिल्ली स्थित अंबेडकर भवन में संगठन के हजारों सदस्य एकत्र हुए और उन्होंने बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का मुखौटा (मास्क) पहनकर उनकी प्रतिमा के सामने 'भारतीय संविधान' को बचाने की शपथ ली।

रामलीला मैदान में नहीं मिली अनुमति

जानकारी के मुताबिक, डोमा परिसंघ का मूल कार्यक्रम ऐतिहासिक रामलीला मैदान में एक बड़ी रैली करने का था। हालांकि, बताया जा रहा है कि एक भाजपा नेता की शिकायत के बाद पुलिस ने इस आयोजन के लिए आवश्यक अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) देने से इनकार कर दिया, जिसके चलते ऐन वक्त पर जगह बदलनी पड़ी।

उदित राज का बयान: 'हम कानून मानने वाले लोग हैं'

डोमा परिसंघ के अध्यक्ष और कांग्रेस नेता उदित राज ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि उनका संगठन और समर्थक अनुशासित हैं और कानून का सम्मान करते हैं। इसी वजह से प्रशासन द्वारा अनुमति न दिए जाने के बाद उन्होंने कार्यक्रम को रामलीला मैदान से अंबेडकर भवन स्थानांतरित कर दिया। इसके बावजूद वहां हजारों की तादाद में लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराने पहुंचे।

जुलाई से चल रही थी तैयारी

उदित राज ने आरोप लगाया कि इस महाजुटान के लिए जुलाई महीने से ही प्रचार और लोगों को लामबंद करने का काम चल रहा था। रैली रद्द होने की घोषणा के बावजूद कई लोग जानकारी के अभाव में रामलीला मैदान पहुंच गए, जहां पुलिस द्वारा उनके साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार किया गया।

उन्होंने बताया कि अंबेडकर भवन में लोग शांतिपूर्ण तरीके से शपथ लेने के लिए जमा हुए थे, लेकिन वहां भी भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया, जिसने लोगों को मार्च निकालने से रोक दिया।

'केवल जन आंदोलन ही बचा सकता है संविधान'

भीड़ को संबोधित करते हुए उदित राज ने देश की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अब संविधान और लोकतंत्र को बचाना केवल राजनीतिक दलों के बस की बात नहीं रह गई है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आज सभी संवैधानिक संस्थाएं कमजोर हो चुकी हैं और मुट्ठी भर लोग संघर्ष करके इनकी रक्षा नहीं कर सकते। अपने संबोधन के अंत में उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि संविधान को बचाने के लिए अब 'जन आंदोलन' ही एकमात्र विकल्प शेष है।

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