मध्यप्रदेश में ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) समुदाय ने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में हो रहे "गहरे अन्याय" के खिलाफ आवाज बुलंद की है। राज्य की जनसंख्या में उनकी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी के बावजूद, ओबीसी को मिलने वाला आरक्षण केवल 14% ही है, जबकि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कोटा 27% है। इस असंतुलन के कारण समुदाय के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को और बढ़ावा मिला है।
आपको बता दें मध्यप्रदेश सरकार ने 2019 में ओबीसी आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने का कानून पारित किया था। इस संशोधन के बाद कुल आरक्षण का प्रतिशत 73% हो गया, जिसमें एसटी को 20%, एससी को 16%, ओबीसी को 27% और ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण शामिल था।
मई 2022 में, हाईकोर्ट ने शिवम गौतम की याचिका पर सुनवाई करते हुए 27% ओबीसी आरक्षण के क्रियान्वयन पर रोक लगाई और इसे 14% तक सीमित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 50% की संवैधानिक सीमा से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। इसके बाद कई भर्तियों में 13% पदों को होल्ड कर दिया गया।
द मूकनायक से बातचीत में ऑल इंडिया ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AIOBCSA) के राष्ट्रीय अध्यक्ष किरण कुमार गौड़ ने कहा कि "मध्यप्रदेश सरकार को तुरंत शिक्षा और रोजगार दोनों क्षेत्रों में ओबीसी के लिए पूर्ण 27% आरक्षण लागू करना चाहिए। आधे-अधूरे कदम अब स्वीकार्य नहीं हैं, क्योंकि पिछड़े वर्ग के लाखों युवाओं का भविष्य दांव पर लगा हुआ है।"
कुमार ने कहा कि बिहार और तेलंगाना जैसे राज्यों ने जाति आधारित सर्वेक्षण कराकर ओबीसी आरक्षण बढ़ाया है, लेकिन न्यायालयीन हस्तक्षेप के कारण इन प्रयासों को बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए, स्थायी समाधान के लिए उन्होंने दो प्रमुख संवैधानिक सुधारों की मांग की:
ओबीसी आरक्षण कानूनों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए, ताकि उन्हें न्यायालय द्वारा चुनौती न दी जा सके।
संविधान में संशोधन कर ओबीसी को उनके सामाजिक-शैक्षिक पिछड़ेपन के अनुपात में आरक्षण दिया जाए, जिससे समानता के सिद्धांत की रक्षा हो सके।
किरण ने कहा, " इन कदमों के बिना, मध्यप्रदेश और पूरे भारत के ओबीसी लगातार प्रणालीगत बहिष्करण का शिकार होते रहेंगे। ओबीसी के लिए न्याय अब और टाला नहीं जा सकता, संविधान में निहित सामाजिक न्याय और समानता का वादा धरातल पर साकार होना चाहिए।"
AIOBCSA ने चेतावनी दी कि यदि ये कदम नहीं उठाए गए, तो मध्यप्रदेश और देशभर के ओबीसी समुदाय को प्रणालीगत बहिष्कार का सामना करना पड़ता रहेगा। कुमार ने कहा, "संविधान में वादा किया गया सामाजिक न्याय और समानता अब केवल कागजों तक सीमित नहीं रह सकता। ओबीसी समुदाय के लिए न्याय में और देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।"
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