भोपाल। मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27% आरक्षण लागू न किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार के रवैए पर अचंभा जताते हुए नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। न्यायालय ने साफ कहा कि जब राज्य विधानसभा द्वारा बनाए गए कानून पर कोई स्थगन (स्टे) नहीं है, तो फिर सरकार इसे लागू क्यों नहीं कर रही?
यह मामला सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ — न्यायमूर्ति के.बी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटेश्वर सिंह की खंडपीठ के समक्ष कोर्ट नंबर 11 में सूचीबद्ध था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से सख्त लहजे में पूछा कि आखिर वह हाईकोर्ट के 19 मार्च 2019 के अंतरिम आदेश को क्यों मान रही है, जबकि विधानसभा द्वारा पारित 14 अगस्त 2019 के कानून पर कोई रोक नहीं है?
मध्यप्रदेश विधानसभा ने वर्ष 2019 में एक कानून पारित कर OBC आरक्षण को बढ़ाकर 27% कर दिया था। लेकिन इसके तुरंत बाद 19 मार्च 2019 को हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी कर दिया, जिसे सरकार अब तक मान रही है। जबकि सुप्रीम कोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि उस कानून पर न तो स्थगन है और न ही उसे निरस्त किया गया है।
इसी मुद्दे को लेकर पीएससी एवं अन्य सरकारी भर्तियों में चयन प्रक्रिया रुकी हुई है। सैकड़ों OBC वर्ग के अभ्यर्थी प्रभावित हो रहे हैं। उनके प्रतिनिधित्व में वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और वरुण ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर बीते बुधवार को सुनवाई हुई।
सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति के.बी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा की “राज्य सरकार एक ऐसा अंतरिम आदेश मान रही है जो अब प्रभावी नहीं है, जबकि विधानसभा द्वारा पारित कानून को लागू नहीं कर रही। यह एक गंभीर संवैधानिक स्थिति है।”
विधानसभा द्वारा बनाए गए कानून पर कोई स्टे नहीं है। हाईकोर्ट के 2019 के अंतरिम आदेश को सरकार अब भी मान रही है, जबकि वह अप्रभावी हो चुका है। PSC और अन्य भर्तियों में OBC वर्ग के अभ्यर्थी लगातार प्रभावित हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर 4 जुलाई को जवाब माँगा है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि जब विधानसभा द्वारा पारित कानून को रोका नहीं गया है, तो सरकार उसे लागू न कर संविधान की अवहेलना कर रही है। यह न सिर्फ OBC वर्ग के साथ अन्याय है बल्कि संवैधानिक व्यवस्था के लिए भी खतरा बन चुका है। इस पूरे घटनाक्रम से मध्यप्रदेश में राजनीतिक सरगर्मी तेज होने के आसार हैं। 4 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश सरकार को व्यक्तिगत रूप से पक्ष रखने का निर्देश दिया गया है।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए आरक्षण मामलों के विशेषज्ञ अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने कहा कि, "यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मध्य प्रदेश सरकार ओबीसी वर्ग के 27% आरक्षण को लेकर न तो सुप्रीम कोर्ट में गंभीर पैरवी कर रही है और न ही हाईकोर्ट में लंबित मामलों की सुनवाई सुनिश्चित करवा रही है। सुप्रीम कोर्ट भी कह रहा है कि कोई स्थगन नही है, बाबजूद इसके सरकार ओबीसी वर्ग का 27 प्रतिशत आरक्षण क्यों लागू नहीं कर रही है।"
प्रदेश में यह धारणा बन रही है कि सरकार ओबीसी वर्ग के अधिकारों के प्रति केवल दिखावटी समर्थन कर रही है। असल में सरकार न तो सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से पक्ष रख रही है और न ही उच्च न्यायालय में पारदर्शी तरीके से मामलों का निपटारा चाहती है।
ओबीसी समाज के लोग और संगठन इस स्थिति को संविधान और सामाजिक न्याय के विरुद्ध मानते हैं। उनका कहना है कि अगर सरकार सच में आरक्षण लागू करना चाहती है, तो उसे छत्तीसगढ़ की तरह सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए।
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