भोपाल। मध्य प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई ने सोमवार को एक नया मोड़ लिया, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे से जुड़ी 51 याचिकाओं को जबलपुर हाईकोर्ट से अपने पास ट्रांसफर करने की राज्य सरकार की मांग स्वीकार कर ली। यह कदम राज्य में ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए एक बड़ी राहत की उम्मीद लेकर आया है, जो वर्षों से विभिन्न विभागों में नियुक्तियों के इंतजार में हैं।
यह जानकारी ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय कोर कमेटी सदस्य एडवोकेट धर्मेंद्र सिंह कुशवाहा ने प्रेस को दी। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता एडवोकेट प्रशांत सिंह ने याचिकाओं को समयबद्ध तरीके से निपटाने की अपील की।
ओबीसी महासभा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वरुण ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में यह मुद्दा उठाया कि मध्य प्रदेश में बड़ी संख्या में ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी है, किंतु बिना किसी स्पष्ट कारण के और किसी रोक के आदेश के बिना, उन्हें नियुक्त नहीं किया जा रहा है। महासभा की मांग थी कि ऐसे सभी अभ्यर्थियों को शीघ्र नियुक्त किया जाए।
न्यायालय ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि महासभा की मांग उचित है और इस संबंध में उचित याचिका प्रस्तुत की जाए, जिससे अदालत उन विभागों को निर्देशित कर सके जो ओबीसी वर्ग के चयनित उम्मीदवारों को नियुक्त नहीं कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि ओबीसी महासभा नियुक्तियों को लेकर पृथक याचिका प्रस्तुत करती है, तो अदालत इस पर गंभीरता से विचार करेगी और उन विभागों को निर्देश देगी जो योग्य अभ्यर्थियों को अनावश्यक रूप से नियुक्त नहीं कर रहे हैं।
एडवोकेट धर्मेंद्र सिंह कुशवाहा ने द मूकनायक से बातचीत में बताया कि महासभा जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर करने जा रही है, जिसमें ओबीसी आरक्षण पर लागू 13% की होल्ड को हटाने की मांग की जाएगी। वर्तमान में 27% ओबीसी आरक्षण में से 13% पर होल्ड लगा हुआ है, जिसके चलते न तो पूरी आरक्षण व्यवस्था लागू हो पा रही है और न ही नियुक्तियां हो रही हैं।
इस सुनवाई के दौरान ओबीसी महासभा की ओर से एडवोकेट वरुण ठाकुर, एडवोकेट धर्मेंद्र सिंह कुशवाहा, एडवोकेट रामकरण व अन्य सहयोगी अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में जोरदार पैरवी की। सभी ने एकमत होकर यह रेखांकित किया कि यह मामला सामाजिक न्याय से जुड़ा हुआ है और ओबीसी वर्ग के अधिकारों की बहाली के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप जरूरी है।
मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2019 में ओबीसी आरक्षण को बढ़ाकर 27% किया था, जिसे लेकर कई याचिकाएं उच्च न्यायालयों में दायर की गईं। कुछ नियुक्तियों पर रोक के कारण हजारों उम्मीदवार नियुक्तियों के इंतजार में हैं। वहीं, कुछ विभागों ने पूर्ण रूप से नियुक्तियां रोक दी हैं। इस पूरे मामले ने राज्य में ओबीसी अधिकारों को लेकर राजनीतिक और सामाजिक बहस को और तेज कर दिया है।
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