मुंबई: अखिल भारतीय बौद्ध अल्पसंख्यक महासंघ और महाबोधि फाउंडेशन के तत्वाधान में 5 जनवरी को 'अल्पसंख्यक बौद्ध परिषद 2025' का आयोजन किया जाएगा। यह कार्यक्रम मुंबई के धारावी नेचर पार्क स्थित एवी हॉल में प्रातः 10 बजे से शाम 4 बजे तक चलेगा। आयोजन का उद्देश्य बौद्ध समुदाय की राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय समस्याओं को उजागर करना और उनके समाधान के लिए ठोस कार्ययोजना तैयार करना है।
ईसा पूर्व 6वी से 8वी शताब्दी तक भारत में बौद्ध धर्म रहा। 20वी शताब्दी के मध्य, आधुनिक भारत के निर्माता और बौद्ध विद्वान बाबा साहब आंबेडकर द्वारा अपने लाखों अनुयायीओं के साथ बौद्ध धर्म अपनाकर बौद्ध धर्म को भारत पुनर्जीवीत किया। एक सर्वेक्षण के अनुसार बाबा साहब के प्रभाव से सन 1959 तक देश के करीब 2 करोड़ लोगों ने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया था।
1992 में भारत सरकार ने बौद्ध समुदाय को अल्पसंख्यक वर्ग में शामिल किया। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में बौद्ध आबादी लगभग 8.4 मिलियन है जो कुल आबादी का लगभग 0.7% है, जो बौद्ध धर्म को भारत में अल्पसंख्यक धर्म बनाता है।
हालांकि, अल्पसंख्यकों के लिए चलाई जा रही योजनाओं का बौद्ध समुदाय तक समुचित लाभ नहीं पहुंच पाया है। इसका प्रमुख कारण समुदाय में जानकारी का अभाव बताया गया है। इस परिषद में इन योजनाओं की पहुंच सुनिश्चित करने और समुदाय की विभिन्न समस्याओं पर चर्चा की जाएगी।
परिषद में निम्नलिखित विषयों पर चर्चा की जाएगी:
बौद्ध समुदाय के विकास के लिए प्रभावी कार्ययोजना।
महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन पर विचार, जिसके तहत 1949 के बोधगया मंदिर अधिनियम को निरस्त कर मंदिर पर बौद्ध समुदाय का नियंत्रण बहाल करने की मांग की जाएगी।
बौद्ध विहार मॉनेस्ट्री एक्ट लागू करने पर विमर्श।
पाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग।
बौद्ध विवाह मान्यता कानून को लागू करने पर चर्चा।
बौद्ध समुदाय की स्वतंत्र पहचान सुनिश्चित करना।
बौद्धों की प्राचीन गुफाओं (मठों) की सुरक्षा और उनके संरक्षण के लिए कार्य।
बौद्ध शरणार्थियों के अधिकार और कल्याण।
सरकारी योजनाओं और संवैधानिक प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन पर चर्चा।
देशभर में बौद्ध स्थलों की घोर अनदेखी की रिपोर्ट आती रही हैं. गुजरात के सोमनाथ जिले की सानावांकियां की पहाड़ियाँ में 62 के करीब बौद्ध गुफाएं स्थित है। हालांकि संरक्षण व सार-संभाल नहीं होने से यह बेहतर स्थिति में नहीं है। पुरातत्व विभाग ने भी इन गुफाओं को बिसरा दिया है। पर्यटन विभाग भी बौद्ध गुफाओं को लेकर गम्भीर नहीं है। यही वजह है कि यह प्राकृतिक गुफाएं अपना मूलस्वरूप खोती जा रही है। वहीं धीरे धीरे मूलनिवासियों की नई पीढ़ी बौद्ध गुफाओं के इतिहास से अनभिज्ञ होती जा रही है।
कार्यक्रम के संयोजक इंद्रजीत मोहिते ने बताया यह परिषद बौद्ध समुदाय के अधिकारों, उनकी प्रगति, और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के लिए एक मंच प्रदान करेगी। प्रतिनिधि समुदाय की समस्याओं को सरकार और नीति निर्माताओं के सामने रखने और उनके समाधान के लिए रणनीति बनाने पर जोर देंगे।
परिषद की अध्यक्षता चंद्रकांत जगताप, अध्यक्ष, अखिल भारतीय बौद्ध अल्पसंख्यक महासंघ, करेंगे। विभिन्न राज्यों और राष्ट्रीय स्तर के बौद्ध संगठनों के प्रतिनिधि तथा अल्पसंख्यक विभाग के अधिकारी इस आयोजन में भाग लेंगे।
All India Buddhist Forum के कनवीनर आशीष बरुआ ने द मूकनायक को बताया कि देशभर में बुद्धिस्ट धर्म के कईअलग समुदायों और वर्ग है, ये आयोजन सभी वर्गों को एक मच पर लाने का प्रयास है ताकि बुद्धिस्ट समुदाय का एक संगठित स्वरुप सामने आये और समुदाय के साथ होने वाली समस्याओं जैसे जातिगत अत्याचार, पाली भाषा का प्रचार प्रसार, बौद्ध विवाह कानून आदि पर प्रभावी मंथन हो सके. बरुआ ने बताया कि वे अपने संगठन का प्रतिनिधत्व करेंगे जिसमे मुख्य रूप से महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन पर बात करेंगे।
2,500 साल पुराना महाबोधि मंदिर, जो कि एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, वर्तमान में 1949 के बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति (BTMC) अधिनियम के तहत प्रबंधित किया जाता है। इस अधिनियम के अनुसार, जिला मजिस्ट्रेट, जो हिंदू होना अनिवार्य है, को समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए।
बौद्ध समुदाय इस अधिनियम को निरस्त करने की मांग काफी समय से कर रहे हैं. बरुआ कहते हैं कि जैसे देश में हिन्दू मंदिरों का प्रबधन हिन्दुओं द्वारा होता है, ईसाई समुदाय ही चर्च का प्रबधन देखते हैं, सिख गुरद्वारों का और मुस्लिम समुदाय ही मस्जिदों और दरगाहों का प्रबंधन देखते हैं लेकिन सिर्फ महाबोधि मंदिर जो देश में बौद्ध समुदाय का सबसे बड़ा आस्था स्थल है, उसका पूरा प्रबंधन समुदाय के हाथ में नहीं है, मंदिर प्रबंधन में बौद्धों का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं रहा है। इसलिए इस 1949 अधिनियम को वापस लेने की मांग हो रही है. वर्तमान में BTMC के नौ सदस्यों में से केवल चार सदस्य बौद्ध हैं।
बाबा साहब द्वारा 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म अंगीकार करने के बाद देशभर में, खासकर महाराष्ट्र में लाखों की संख्या में लोगों ने हिन्दू धर्म का परित्याग किया । महाराष्ट्र में 95 फीसदी दलित बौद्ध धर्म अपना चुके हैं और सशक्त बन चुके हैं। अमरावती (महाराष्ट्र) के भन्तेजी आनंद (बौद्ध भिक्षु ) ने द मूकनायक को बताया कि बौद्ध धर्म अपनाने वालों के जीवन में करिश्माई परिवर्तन हुए हैं, इनका जीवन स्तर, रहन सहन और शिक्षा का स्तर सुधरा है, दलित अत्याचारों के मामले कम हुए हैं, भेदभाव से विमुक्त हो गए हैं। वे कहते हैं कि बीते कुछ वर्षों में गुजरात में बौद्ध धर्मावलंबियों की संख्या तेजी से बढ़ी है क्योंकि प्रांत में दलित समुदाय जागरूक है।
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