राजस्थान के सरकारी स्कूलों में धार्मिक गतिविधियों का विरोध कर रहे मुस्लिम संगठनों ने राज्य की धर्मनिरपेक्षिता पर क्या कहा?

राजस्थान में सरकारी शिक्षण संस्थान में धर्म विशेष की पूजा पद्धति से मुस्लिम समाज का इनकार, सरकारी आदेश के खिलाफ नौ साल बाद फिर से न्यायालय की शरण में मुस्लिम समाज.
सरकार के सूर्य नमस्कार के आदेश के विरोध में जमीयत-उलेमा-हिंद की बैठक में चर्चा करते पदाधिकारी
सरकार के सूर्य नमस्कार के आदेश के विरोध में जमीयत-उलेमा-हिंद की बैठक में चर्चा करते पदाधिकारी

जयपुर। सूर्य सप्तमी के दिन 15 फरवरी को राजस्थान के सरकारी व गैर सरकारी विद्यालयों में सामूहिक सूर्य नमस्कार कार्यक्रम के आयोजन का मुस्लिम संगठनों ने विरोध कर दिया है। जमीयत-उलेमा-हिंद ने मुस्लिम समुदाय से अपनी नई पीढ़ियों के ईमान व आस्था की हिफाजत करने तथा इस सिलसिले में किसी भी प्रकार के दबाव को स्वीकार न करने की अपील की है। जमीयत ने कहा कि भारतीय संविधान में अपनी धार्मिक आस्था और विश्वास पर अडिग रहते हुए सबको शिक्षा प्राप्त करने की पूर्णतया आजादी प्राप्त है।

उधर राजस्थान मुस्लिम फोरम ने शिक्षण संस्थानों में सूर्य नमस्कार कार्यक्रम अनिवार्य करने के शिक्षा विभाग के आदेशों को चुनौती देते हुए न्यायालय का रुख किया है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस मसले पर सुनवाई के लिए 14 फरवरी की तारीख तय की है। इसके अलावा राजस्थान मुस्लिम फोरम की जिला इकाइयों ने भी जिला कलक्टरों के माध्यम से ज्ञापन सौंप कर शिक्षा विभाग के सूर्य नमस्कार को लागू करने के आदेशों को गैर संवैधानिक बताते हुए निरस्त करने की मांग की है।

पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार को आना पड़ा था बैक फुट पर

आपकों बता दें कि, पूर्ववर्ती भाजपा की वसुंधरा सरकार के समय 2015 में भी शिक्षण संस्थाओं में सूर्य नमस्कार व योग अभ्यास को अनिवार्य किया गया था। तब भी मुस्लिम संगठनों ने राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के आदेशों को धार्मिक मामलों में खुला हस्तक्षेप और संविधान में दी गयी धार्मिक स्वतंत्रता छीनने का गैर संवैधानिक आदेश बताते हुए न्यायालय का रुख किया था। 2015 में न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग ने 29 जून 2015 को संशोधित आदेश जारी कर कहा था कि, "सूर्य नमस्कार व योग अभ्यास में कौन सा अभ्यास करना है यह विद्यार्थियों की इच्छा पर निर्भर करता है." इस आदेश के साथ सरकार ने न्यायालय में एक शपथ पत्र भी पेश किया था।

चुनाव के नजदीक करते हैं इस तरह इस तरह आदेश जारी?

भाजपा शासित सरकार के समय इस तरह के आदेश जारी करने की मंशा पर द मूकनायक ने जमीयत-उलेमा-हिन्द-राजस्थान के प्रदेश महासचिव अब्दुल वाहिद खत्री से बात की। खत्री ने द मूकनायक से कहा कि, भारतीय संविधान के अनुसार सरकार धर्मनिरपेक्ष होती है। उसका कोई धर्म नहीं होता। संविधान ही उसका धर्म होता है। उन्होंने बिना नाम लिए भाजपा की ओर इशारा करते हुए कहा कि इन लोगों की एक विचारधारा है। यह लोग अपनी विचारधारा को और अपने धर्म की मान्यताओं को दूसरे धर्म के लोगों पर थोपने का असंवेधानिक प्रयास हमेशा करते रहे हैं।

उन्होंने कहा कि, अब चुनाव नजदीक है। इसलिए यह आदेश निकाल कर फिर से तुष्टीकरण का नया शगूफा छोड़ दिया। यह जानते हैं कि इस आदेश के बाद मुसलमान विरोध में आएगा। इन्हें तुष्टीकरण का मौका मिल जाएगा। यह लोग सरकार की संवैधानिक मर्यादा, अधिकार व परंपराओं को खूब जानते हैं। इसके बावजूद इसका इस तरह के गैर संवैधानिक आदेश जारी करते हैं। यह पहले भी राज दरबारों में होता रहा है। यह लोग भी कर रहे हैं। यह लोकतंत्र को खत्म करने का प्रयास है।

सरकार जब संवैधानिक दायित्वों को पूरा नहीं करती तो न्यायालय की तरफ जाना मजबूरी

जमीयत-उलेमा-हिंद राजस्थान के प्रदेश महासचिव ने कहा कि, "जब यह सरकारें अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा नहीं करती और उससे हटती है। तब हमको न्यायालय जाना पड़ता है। 2015 में भी हम भाजपा की वसुंधरा सरकार के इसी तरह के गैर संवैधानिक आदेशों के खिलाफ न्यायालय गए थे। इस तरह के मनमाने आदेशों के खिलाफ पहले से सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया हुआ है। तब हमने सुप्रीम कोर्ट और देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों के ओदश राजस्थान उच्च न्यायालय के सामने रखे थे। तब उस समय भी कोर्ट ने कहा था कि आप किसी को कैसे मजबूर कर सकते हैं। जब उसकी मान्यता अलग है। वो अल्लाह की इबादत करता है."

उन्होंने कहा कि, न्यायालय के आदेश पर इन्होंने (राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग) एक संशोधित आदेश निकाला कि यह इच्छित होगा। यह किसी विद्यार्थी की इच्छा पर निर्भर करता है कि वो उसे करता है कि नहीं करता है। तब हमने न्यायालय के सामने मेंशन किया कि इन्होंने आज यह आदेश निकाला कल को कोई ओर आदेश निकाल देंगे। यह तो आदेश निकालते ही रहते हैं। यह संवैधानिक जिम्मेदारी को पूरा करें इसकी क्या गारंटी है? तब न्यायालय ने संशोधन आदेश पर सरकार से शपथ पत्र पेश करने को कहा था। शपथ पत्र न्यायालय में पेश करने पर ही तत्समय हमारी याचिका निस्तारित की थी।

"जागे हुए को क्या जगाया जाए। सोते हुए को जगाया जाता है। जब सरकार जानबूझकर गलत करती है तो हमारे पास कोर्ट के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता। इसलिए हम दोबारा कोर्ट गए और कोर्ट को याद दिलाया है। बीते सोमवार 12 फरवरी को हमारी सुनवाई नहीं हो सकी। कोर्ट ने सुनवाई की 14 फरवरी की तारीख निर्धारित की है। क्या पता कल भी सुनवाई हो नहीं हो। इसलिए हमने सभी मुस्लिम अभिभावकों से 15 फरवरी को सूर्य नमस्कार कार्यक्रम के बहिष्कार की अपील की है। अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज कर इसका विरोध करें", उन्होंने कहा.

जमीयत-उलेमा-हिन्द ने प्रदेश स्तरीय बैठक में लिया बहिष्कार का निर्णय

जमियत उलेमा-हिन्द भारतीय मुसलमानों का एक पुराना संगठन है। सूर्य सप्तमी के उपलक्ष्य में समस्त विद्यालयों में सामूहिक सूर्य नमस्कार के सरकारी आदेश के खिलाफ जमीयत की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में निंदा प्रस्ताव पारित किया गया है। जमीयत ने सरकार के इस तरह के आदेश को धार्मिक मामलों में खुला हस्तक्षेप और संविधान में दी गयी धार्मिक स्वतंत्रता और देश के माननीय सुप्रीम कोर्ट व अनेक उच्च न्यायालयों के आदेशों की स्पष्ट अवहेलना बताया है। साथ ही मुस्लिम समुदाय से अपील की है कि वे 15 फरवरी को सूर्य सप्तमी के दिन विद्यार्थियों को स्कूल में न भेजें और इस समारोह का बहिष्कार करें।

जमियत उलेमा-हिन्द की प्रदेश स्तरीय बैठक में चर्चा के बाद कहा गया कि बहुसंख्यक हिन्दू समाज में सूर्य की भगवान/देवता के रूप में पूजा की जाती है। इस अभ्यास में बोले जाने वाले श्लोक और प्रणामासन, अष्टांग नमस्कार इत्यादि क्रियाएं एक इबादत का रूप है और इस्लाम धर्म में अल्लाह के सिवाय किसी अन्य की पूजा अस्वीकार्य है। इसे किसी भी रूप या स्थिति में स्वीकार करना मुस्लिम समुदाय के लिये सम्भव नहीं है।

जमियत उलेमा-हिन्द का स्पष्ट मानना है कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में अभ्यास का बहाना बनाकर किसी विशेष धर्म की मान्यताओं को अन्य धर्म के लोगों पर थोपना संवैधानिक मान्यताओं और धार्मिक स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन और एक घृणित प्रयास है, जिसका पूरी ताकत से विरोध किया जायेगा तथा देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार हम इसके खिलाफ संघर्ष करेंगे।

जमियत उलेमा-हिन्द ने राज्य सरकार से अपील की है कि सरकार योग अभ्यास के मसले पर मुस्लिम समुदाय के साथ विचार-विमर्श कर उसको विश्वास में लेवें, ताकि अनावश्यक विवाद से बचा जा सके तथा उपरोक्त विवादास्पद आदेश को तुरन्त प्रभाव से वापस लेने की हिदायत संबंधित विभाग को जारी करे, इसलिये कि इस कदम से देश के लोकतांत्रिक ढांचे को नुकसान होगा और सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के स्लोगन पर सवालिया निशान लग जायेगा।

मुस्लिम फोरम का राज्यपाल के नाम ज्ञापन

मुस्लिम फोरम सीकर कन्वीनर इन्जिनीयर खुर्शीद हुसैन के नेतृत्व में मुस्लिम समाज के लोगों ने जिला कलेक्टर सीकर को राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंप कर बताया कि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। जिसमें सरकारों द्वारा किसी भी धर्म विशेष की प्रार्थना व उनसे संबंधित कार्यक्रमों को लागू करने पर संविधान की व्यवस्था अनुसार पाबंदी है। सरकारें किसी भी धर्म विशेष की प्रार्थनाओं को अन्य धर्मों के व्यक्तियों / छात्र-छात्राओं पर कानून लागू नहीं कर सकती है। इसके बावजूद शिक्षा विभाग के निदेशक कार्यालय द्वारा दिनांक 1 फरवरी 2024, 2 फरवरी 2024 व राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद की ओर से 30 जनवरी 2024 को आदेश जारी करते हुए सभी शिक्षण संस्थानों में सूर्य नमस्कार जारी करने का आदेश लागू किया है। उक्त सभी आदेश भारतीय संविधान की भावना व प्रावधानों के विपरीत होने के कारण इन पर अविलंब रोक लगाई जाना आवश्यक है। इस दौरान अमीरुद्दीन तगाला, सलीमुद्दीन कच्छाव, अहसान अली गौड़, उस्मान गनी, मुस्तफा खान, मोहम्मद आरिफ सहित अलग-अलग मुस्लिम संगठनों के पदाधिकारी भी मौजूद रहे।

यह संविधान के दस्तूर के खिलाफ

जमात-ए-इस्लामी हिंद के प्रदेशाध्यक्ष नाजिमुद्दीन ने कहा कि, राजस्थान मुस्लिम यूथ फोरम की ओर से उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई है। सरकार का यह आदेश संविधान के दस्तूर के खिलाफ है। संविधान में मजहबी आजादी पर हमला है। आप किसी भी धर्म की पूजा पद्धति को सभी धर्म के मानने वालों पर जबरन लागू नहीं कर सकते। यह आदेश इस्लाम के एतबार से भी गलत है। मुसलमान अल्लाह के सिवा किसी और की इबादत नहीं कर सकता है। जमात-ए-इस्लामी हिंद राजस्थान शिक्षा विभाग के इस मनमाने आदेश का पुरजोर विरोध करता है।

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