गाज़ा संकट पर मुंबई में संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस, SIO समेत कई कार्यकर्ताओं ने उठाई आवाज़

गाज़ा में मानवीय संकट के खिलाफ मुंबई में पत्रकारों और कार्यकर्ताओं ने जताई चिंता, SIO और तुषार गांधी ने की भारत सरकार से सक्रिय भूमिका की मांग
गाज़ा संकट पर मुंबई में प्रेस कॉन्फ्रेंस
गाज़ा संकट पर मुंबई में प्रेस कॉन्फ्रेंस
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मुंबई — स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया (SIO) के महाराष्ट्र दक्षिण ज़ोन द्वारा 'फ़िलिस्तीन सोलिडेरिटी वीक' के तहत शुक्रवार को मराठी पत्रकार संघ, मुंबई में एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ़्रेंस का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गाज़ा में जारी मानवीय संकट को उजागर करना और वैश्विक समुदाय से तत्काल हस्तक्षेप की अपील करना था।

इस मौके पर SIO दक्षिण महाराष्ट्र के अध्यक्ष सीमाब खान ने कहा, “भारत ने हमेशा फ़िलिस्तीनी हितों का समर्थन किया है, लेकिन गाज़ा में जारी नरसंहार पर सरकार की चुप्पी बेहद चिंताजनक है। फ़िलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों को लेकर प्रशासन का रवैया भी चिंता का विषय है। हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की टिप्पणियों से भी यह स्पष्ट होता है कि फ़िलिस्तीनियों की पीड़ा को नजरअंदाज किया जा रहा है। हम भारत सरकार से अपील करते हैं कि वह गाज़ा में मानवीय संकट को समाप्त करने में सक्रिय भूमिका निभाए।”

प्रसिद्ध लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने विचार साझा करते हुए कहा, “गाज़ा में सहायता की नाकाबंदी अंतरराष्ट्रीय समुदाय की उदासीनता का प्रमाण है। हमें लगातार उत्पीड़ितों की आवाज़ बनना होगा और फ़िलिस्तीन के लिए न्याय तथा स्वतंत्रता की मांग करनी चाहिए।”

स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्ता हर्षाली पोतदार ने वैश्विक एकजुटता की बात करते हुए कहा, “एक वैश्विक नागरिक के तौर पर फ़िलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता दिखाना हमारा नैतिक दायित्व है। हमें उनकी पीड़ा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर करना चाहिए और ऐसे नीतिगत बदलावों का समर्थन करना चाहिए जो उनके अधिकारों की रक्षा करें।”

जमात-ए-इस्लामी हिंद, महाराष्ट्र के उपाध्यक्ष हसीब भाटकर ने गाज़ा में हालात को गंभीर मानवीय संकट बताते हुए कहा, “यह समय है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय व्यावहारिक कदम उठाए और फ़िलिस्तीनी जनता की पीड़ा को कम करने के साथ-साथ एक स्थायी समाधान की दिशा में कार्य करे।”

इस संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस ने फ़िलिस्तीनी मुद्दे पर एकजुटता, जागरूकता और प्रभावशाली हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित किया। वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अब समय आ गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय सिर्फ बयानबाज़ी से आगे बढ़कर ज़मीनी स्तर पर कार्रवाई करे।

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