बांधवगढ़ के पास 90 लाख की आदिवासी ज़मीन बेनामी तरीके से खरीदी! ड्राइवर के नाम पर रिसॉर्ट बना रहा था सतना का कारोबारी

बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व के पास बफर ज़ोन में आदिवासी ड्राइवर के नाम पर ज़मीन खरीद कर रिसॉर्ट बना रहा था कारोबारी, आयकर विभाग ने बेनामी संपत्ति क़ानून के तहत ज़मीन की अस्थायी कुर्की की।
बांधवगढ़ में 90 लाख की आदिवासी ज़मीन बेनामी तरीके से खरीदी, IT विभाग ने ज़मीन की कुर्की की
बांधवगढ़ में 90 लाख की आदिवासी ज़मीन बेनामी तरीके से खरीदी, IT विभाग ने ज़मीन की कुर्की की
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भोपाल: मध्य प्रदेश के उमरिया ज़िले में स्थित बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व के बफर ज़ोन में लगभग 12 एकड़ आदिवासी भूमि को आयकर विभाग की बेनामी निषेध इकाई (Benami Prohibition Unit) ने अस्थायी रूप से अटैच कर लिया है। करीब ₹90 लाख मूल्य की यह ज़मीन कथित रूप से सतना ज़िले के नागौद तहसील के एक अमीर व्यवसायी द्वारा अपनी आदिवासी ड्राइवर के नाम पर बेनामी तरीके से खरीदी गई थी।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह ज़मीन 2023 और 2024 में राजा नामक व्यक्ति के नाम पर खरीदी गई, जो एक अनुसूचित जनजाति से संबंध रखते हैं और पिछले 20 वर्षों से व्यवसायी के यहां ड्राइवर के रूप में कार्यरत हैं। यह ज़मीन मनपुर तहसील के गांव ताला और गांव महामन में स्थित है और बांधवगढ़ के बफर ज़ोन में आती है — एक ऐसा इलाका जो विश्वभर से पर्यटकों को आकर्षित करता है।

जांच में पता चला है कि खरीदी गई ज़मीन पर होटल, रेस्टोरेंट और होमस्टे जैसे व्यावसायिक विकास की योजना थी। इनमें से दो भूखंडों पर होमस्टे के निर्माण का कार्य पहले से चल रहा था, जबकि तीसरा भूखंड बेहद महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है — ताला गेट से महज 1.3 किलोमीटर की दूरी पर, जो नेशनल पार्क का मुख्य प्रवेश द्वार है। यह भूखंड Nature Heritage Resort के पास है, जो इस क्षेत्र की प्रमुख पर्यटन संपत्तियों में से एक है।

हालांकि ज़मीन राजा के नाम पर है, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय है। सात लोगों का उनका परिवार एक टीन की छत वाली सरकारी ज़मीन पर बने एक कमरे के घर में रहता है और उनके पास इतनी महंगी ज़मीन खरीदने की कोई वित्तीय क्षमता नहीं है।

जांच में सामने आया कि व्यवसायी ने ज़मीन खरीदने के लिए नकद भुगतान किया, जिनमें कुछ सीधे आदिवासी विक्रेताओं को दिए गए और कुछ राशि राजा के बैंक खाते में जमा कराकर फिर विक्रेताओं को ट्रांसफर की गई — जो कि बेनामी लेनदेन में आमतौर पर अपनाया जाने वाला तरीका है।

मध्य प्रदेश के अधिसूचित आदिवासी क्षेत्रों में, मप्र भूमि राजस्व संहिता 1959 की धारा 165(6) के अनुसार, आदिवासी ज़मीन गैर-आदिवासियों को ज़िला कलेक्टर की विशेष अनुमति के बिना नहीं बेची जा सकती। लेकिन इस मामले में व्यवसायी ने कानून को दरकिनार कर ज़मीन अपने आदिवासी कर्मचारी के नाम पर रजिस्टर्ड करवाई।

जांच के आधार पर, आयकर विभाग ने बेनामी संपत्ति लेन-देन निषेध अधिनियम, 1988 (PBPT Act) के तहत कार्रवाई करते हुए धारा 24(1) के तहत राजा (बेनामीदार) और व्यवसायी (लाभार्थी मालिक) दोनों को शोकॉज़ नोटिस जारी किया है। साथ ही, कुल 11.878 एकड़ ज़मीन को धारा 24(3) के तहत अस्थायी रूप से अटैच कर दिया गया है, जिससे आगामी चार माह की नोटिस अवधि में संपत्ति की बिक्री, स्थानांतरण या परिवर्तन पर रोक लग गई है।

अधिकारियों का कहना है कि यह मामला उस तेजी से बढ़ती प्रवृत्ति को उजागर करता है, जिसमें गैर-आदिवासी लोग आदिवासी कर्मचारियों के नाम पर की गई बेनामी खरीद के ज़रिए पर्यटन व्यवसाय के लिए संरक्षित क्षेत्रों में ज़मीन कब्जा कर रहे हैं। मध्य प्रदेश, जो देश का सबसे अधिक आदिवासी जनसंख्या वाला राज्य है, आठ टाइगर रिज़र्व का घर है, जिनमें से कई आदिवासी बहुल इलाकों में स्थित हैं।

मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “इस तरह की बेनामी सेटअप न सिर्फ आदिवासी भूमि संरक्षण कानूनों का उल्लंघन करते हैं, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों के पारिस्थितिक संतुलन के लिए भी खतरा बनते हैं।”

सूत्रों के अनुसार, ऐसे और भी कई मामलों की जांच जारी है — विशेषकर बांधवगढ़, कान्हा और पेंच जैसे प्रमुख ईको-टूरिज्म हॉटस्पॉट्स के आसपास।

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