भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार ने श्रम कानूनों में तीन बड़े संशोधन किए हैं। इसके तहत अब मजदूरों को अपनी मांग के लिए हड़ताल करने के लिए छह सप्ताह यानी डेढ़ माह पहले इसकी सूचना देनी होगी। इसके साथ ही दो अन्य संशोधन किए गए है जिसके बाद विपक्ष ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है।
दरअसल, मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में गुरुवार को श्रमिकों से जुड़े तीन पुराने कानूनों में संशोधन विधेयक पारित किए गए। सरकार का दावा है कि ये संशोधन उद्योगों और श्रमिकों, दोनों के हितों को ध्यान में रखते हुए किए गए हैं। हालांकि कांग्रेस ने इन्हें मज़दूर विरोधी बताते हुए कड़ा विरोध दर्ज कराया और सदन में नारेबाजी की।
विधानसभा में तीन पुराने श्रम कानूनों में संशोधन विधेयक पारित किए गए हैं, जिनमें ठेका श्रम अधिनियम, 1970, कारखाना अधिनियम, 1948 और औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में संशोधन किया गया है। इन संशोधनों का सीधा असर ठेके पर काम करने वाले मज़दूरों, फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों और औद्योगिक क्षेत्र में काम कर रहे श्रमिक संगठनों पर पड़ेगा।
1. ठेका श्रम अधिनियम, 1970 में बदलाव:
अब तक किसी भी कंपनी में 20 या उससे अधिक ठेका मज़दूर होने पर पंजीयन कराना अनिवार्य होता था। लेकिन संशोधन के बाद यह सीमा 20 से बढ़ाकर 50 कर दी गई है। इसका मतलब यह है कि अब 50 से कम ठेका श्रमिक रखने वाले नियोक्ताओं को पंजीयन की आवश्यकता नहीं होगी।
हालांकि, सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि पीएफ (भविष्य निधि) और ईएसआई (कर्मचारी राज्य बीमा) जैसे श्रमिक हित के प्रावधान कम श्रमिक संख्या पर भी पहले की तरह लागू रहेंगे।
2. कारखाना अधिनियम, 1948 में संशोधन:
इस कानून में भी पंजीयन की सीमा को बदला गया है। अब तक जहां 20 श्रमिक होने पर फैक्ट्री का पंजीयन जरूरी होता था, वहीं अब यह सीमा बढ़ाकर 40 कर दी गई है। यह संशोधन खासतौर पर उन छोटी फैक्ट्रियों के लिए राहत के रूप में देखा जा रहा है, जिन्हें प्रशासनिक झंझटों से राहत देने का तर्क सरकार ने दिया है। लेकिन विपक्ष का कहना है कि इससे मज़दूरों को कानूनी सुरक्षा से वंचित किया जाएगा।
3. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में बदलाव:
इस अधिनियम में दो बड़े परिवर्तन किए गए हैं:
फैक्ट्री बंद करने से छह सप्ताह पहले सूचना देना अनिवार्य कर दिया गया है।
श्रमिकों को हड़ताल करने से छह सप्ताह पहले नोटिस देना होगा, तभी वह वैध मानी जाएगी।
कांग्रेस विधायकों ने इसे मज़दूरों के अधिकारों में कटौती बताते हुए कहा कि अब श्रमिकों के लिए हड़ताल करना लगभग असंभव हो जाएगा। हीरालाल अलावा, सोहन लाल वाल्मीकि और अन्य कांग्रेस विधायकों ने कहा कि इससे मज़दूरों का शोषण बढ़ेगा और उद्योगपति मनमानी करेंगे।
श्रम मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने जवाब देते हुए कहा कि इन संशोधनों का उद्देश्य श्रमिकों और नियोक्ताओं दोनों के हितों की रक्षा करना है। उन्होंने कहा कि फैक्ट्रियों में पारदर्शिता आएगी, और श्रमिक संगठनों को भी हड़ताल से पहले तैयारी का समय मिलेगा। वहीं, संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि जैसे मज़दूरों को हड़ताल के लिए नोटिस देना होगा, वैसे ही नियोक्ता को भी तालाबंदी से छह सप्ताह पहले सूचना देनी होगी। इससे संतुलन बना रहेगा।
कांग्रेस विधायकों ने सदन में संशोधन विधेयकों को मज़दूर विरोधी करार देते हुए दो मिनट के लिए वॉकआउट किया और "मज़दूर विरोधी सरकार हाय-हाय" के नारे लगाए। इसके बावजूद सरकार ने घ्वनिमत से तीनों विधेयकों को पारित कर दिया।
श्रमिक संगठनों का मानना है कि इन संशोधनों से मज़दूरों के संगठित होने की प्रक्रिया और मुश्किल हो जाएगी। ठेका मज़दूरों की संख्या तेजी से बढ़ी है, और यह बदलाव उनके अधिकारों को सीमित कर सकता है।
भारतीय मजदूर संघ के ग्वालियर जिला अध्यक्ष ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, "यह जो श्रम कानून में संशोधन किया गया है, वह श्रमिकों के मौलिक अधिकारों को कुचलने वाला कदम है। इससे मजदूरों की सुरक्षा, उनके अधिकार और उनके रोज़गार की गारंटी प्रभावित होगी। हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं और सरकार से मांग करते हैं कि इसे तुरंत वापस लिया जाए।"
उन्होंने आगे कहा, "मजदूरों को अपनी बात रखने, संगठित होने और अपनी मांगें उठाने का संवैधानिक अधिकार है। हम इस अधिकार के साथ हैं और मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ेंगे।"
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