
भोपाल। रायसेन जिले में ईंट निर्माण का काम लंबे समय से स्थानीय रोजगार का साधन रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में यह उद्योग अवैध संचालन और माफियाओं के दख़ल की वजह से विवादों में घिर चुका है। सरकार ने पिछड़ी जाति के प्रजापति समाज को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से 2 लाख तक की ईंट बनाने की छूट दी थी, ताकि मिट्टी के बर्तन और ईंट निर्माण का उनका पुश्तैनी व्यवसाय मजबूत हो सके।
लेकिन द मूकनायक की ग्राउंड रिपोर्ट बताती है कि यह छूट असल लाभार्थियों तक पहुँचने के बजाय भट्टा माफियाओं के लिए एक ढाल बन गई है। माफिया प्रजापति समाज के नाम पर दस्तावेज तैयार कर लेते हैं और बड़े पैमाने पर अवैध उत्पादन शुरू कर देते हैं। जबकि प्रजापति परिवार, जिनके नाम पर यह सुविधा दी गई थी, वही मजदूर बनकर रोज़ाना की दिहाड़ी पर निर्भर हैं।
द मूकनायक की टीम ने जब रायसेन जिले की मकोडिया पंचायत का रुख किया, तो इलाके की वास्तविक तस्वीर धीरे-धीरे खुलने लगी। भगवानपुर गाँव की ओर बढ़ते हुए सड़क के दोनों ओर फैले खेतों की शांति को दूर उठता हुआ धुआँ तोड़ रहा था। जैसे-जैसे हम नज़दीक पहुँचे, कुछ ही दूर पर एक बड़ा भट्टा दिखाई दिया। यह ‘SS ईंट’ नाम का बड़ा भट्टा था, जो अपने आकार और गतिविधियों से स्पष्ट कर रहा था कि यह कोई अस्थायी या छोटे स्तर का संचालन नहीं, बल्कि लंबे समय से चल रहा एक लाखों की तादाद में ईंट बनाने वाला भट्टा है।
चारों तरफ कच्ची ईंटों की लंबी कतारें, बीच में दहकती बड़ी भट्ठी, आसपास पानी की टंकियां और लगातार मिट्टी ढोते मजदूरों की तादाद देखने से ही समझ आ रहा था कि यहाँ बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है। टीम ने जब परिसर के भीतर मौजूद एक कर्मचारी से बातचीत करने की कोशिश की, तो पहले तो उसने हिचक दिखाई, लेकिन बाद में नाम न लिखने की शर्त पर खुलकर बताया।
उसने कहा-“यह पूरा भट्टा सुधीर साहू चलाता है। लेकिन जब भी कोई सरकारी जांच या अधिकारी यहाँ पहुँचता है, तो तुरंत प्रजापति समाज के नाम को आगे कर दिया जाता है। और कह दिया जाता है कि मकान बनाने के लिए ईंटें बना रहे हैं। जबकि एक बार में 5 लाख ईंट पकाने को भट्टे में लगाई जाती हैं।श्रमिक ने बताया- "असली संचालन तो सुधीर साहू ही करते हैं।”
यह बयान केवल एक भट्टे तक सीमित सच्चाई नहीं बता रहा था, बल्कि पूरे इलाके में व्याप्त उस व्यवस्थित भ्रष्टाचार की ओर इशारा कर रहा था, जहाँ सरकार की ओर से पिछड़े प्रजापति समुदाय को दी गई छूट को फर्जी नाम और दस्तावेजों के सहारे एक ढाल बना दिया गया है। इसके सहारे बड़े माफिया न केवल अवैध उत्पादन चला रहे हैं, बल्कि स्थानीय प्रशासन और नियमों को भी चकमा देने में सफल हो जाते हैं।
इसके बाद हम सेहतगंज के चोपड़ा गांव पहुँचें। यहां का दृश्य और भी चौंकाने वाला था- चारों ओर फैली पकी और कच्ची ईंटें, दर्जनों मजदूर, और बड़े पैमाने पर सक्रिय भट्टा।
स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि “यह भट्टा पातीराम पटेल काफी समय से चला रहा है। हर साल लाखों ईंटें यहां बनती हैं, लेकिन सरकारी अनुमति सिर्फ प्रजापति समाज के नाम की दिखाई जाती है।”
जगह-जगह ईंटों के ऊंचे ढेर इस बात की गवाही दे रहे थे कि उत्पादन छोटे स्तर पर नहीं, बल्कि वाणिज्यिक पैमाने पर हो रहा है-जो कि सरकारी छूट के नियमों का खुला उल्लंघन है।
भट्टे पर काम कर रहे एक मजदूर ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया- “हम प्रजापति समाज से ही हैं। सरकार ने हमारे लिए छूट दी, लेकिन हमारे पास न संसाधन हैं, न जमीन। इसलिए हम मजदूरी करते हैं। 400 रुपये दिन मिलते हैं, उसी से परिवार चलता है।”
उसकी आंखों में एक कड़वा सच साफ झलक रहा था- छूट उनके नाम पर, मुनाफा माफियाओं का, और वही मजदूर भूखे पेट अपना हक दूसरों को सौंपने को मजबूर।
यह स्थिति सरकार की नीतियों के ठीक उलट है, क्योंकि इस छूट का उद्देश्य प्रजापति समाज को स्वावलंबी बनाना था। लेकिन सच्चाई यह है कि प्रजापतियों को उनके पुश्तैनी हुनर के बावजूद आज भी मजदूरी से ऊपर उठने का अवसर नहीं मिल रहा।
रायसेन जिले के गौहरगंज क्षेत्र में सक्रिय भट्टा माफियाओं के नेटवर्क पर जब द मूकनायक ने अनुविभागीय अधिकारी (SDM) चंद्रशेखर श्रीवास्तव से बातचीत की तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अब तक उन्हें इस स्तर पर चल रहे अवैध और सुनियोजित संचालन की कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने बताया कि प्रशासन के पास केवल सामान्य गतिविधियों की सूचनाएं आती थीं, लेकिन बड़े पैमाने पर फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे चल रहे ऐसे भट्टों के बारे में औपचारिक रिपोर्ट कभी प्राप्त नहीं हुई।
उन्होंने स्वीकार किया कि सरकार द्वारा निर्धारित प्रावधानों के अनुसार केवल प्रजापति समाज को ही पारंपरिक व्यवसाय को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से दो लाख ईंटों तक उत्पादन की विशेष छूट दी गई है। यह व्यवस्था इसलिए बनाई गई थी ताकि यह पिछड़ा वर्ग अपनी आजीविका को मजबूत कर सके और छोटे पैमाने पर भट्टा संचालन कर आर्थिक रूप से सशक्त बन पाए।
हालांकि, जैसे ही द मूकनायक ने ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर पूरी स्थिति उनके सामने रखी, SDM श्रीवास्तव ने तुरंत संज्ञान लेते हुए कहा- “आपके द्वारा यह गंभीर मामला सामने लाया गया है। हम इसकी जांच कराएंगे और मौके पर टीम भेजकर कार्यवाही सुनिश्चित करेंगे।”
यह छूट मूल रूप से इसलिए प्रदान की गई थी कि प्रजापति समुदाय छोटे स्तर पर ईंट भट्टे संचालित कर सके और स्थानीय आर्थिक ढांचे में अपनी परंपरागत कौशल के साथ एक मजबूत भूमिका निभा पाए। सरकार का उद्देश्य था कि मिट्टी के बर्तन और परंपरागत कारीगरी से जुड़े इस समुदाय को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जाए, ताकि वे मध्यस्थों और साहूकारों पर निर्भर न रहें। लेकिन जमीन पर तस्वीर बिल्कुल उलट है। क्षेत्र में सक्रिय भट्टा माफिया सरकारी दस्तावेज़ों में प्रजापति समाज के नाम का उपयोग करके न केवल नियमों को दरकिनार कर रहे हैं, बल्कि बड़े पैमाने पर अवैध भट्टों का संचालन भी कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में लाखों रुपये का वाणिज्यिक मुनाफा माफियाओं की जेब में जा रहा है।
इस पूरे मॉडल का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि असली लाभार्थी, प्रजापति समुदाय हाशिये पर धकेल दिए गए हैं। जिनके नाम पर यह नीति बनाई गई थी, वे आज भी मजदूरी करने को मजबूर हैं, जबकि मुनाफे और संचालन पर बाहरी तत्वों का कब्ज़ा है। इससे न सिर्फ सरकारी योजना का मूल उद्देश्य विफल हो रहा है, बल्कि एक सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के अधिकारों का संगठित और संरक्षित तरीके से हनन भी हो रहा है। नियमों का दुरुपयोग, निगरानी की कमी और प्रशासनिक उदासीनता मिलकर ऐसी व्यवस्था बना रहे हैं जहां समुदाय के पारंपरिक हक, आर्थिक उन्नति और सम्मानजनक हिस्सेदारी- तीनों ही धीरे-धीरे मिटते जा रहे हैं।
इस पूरे मामले पर द मूकनायक प्रतिनिधि द्वारा रायसेन कलेक्टर अरुण कुमार विश्वकर्मा (IAS) से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन समाचार लिखे जाने तक उन्हें मैसेज और कॉल करने पर कोई जवाब नहीं मिला।
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