Loksabha Election 2024: भारत क्रान्तिकारी मजदूर पार्टी भी मैदान में उतरी, इन मुद्दों के साथ लड़ेगी चुनाव

भारत क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी, देश भर में 5 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इनमें दिल्ली के ‘उत्तर पूर्वी दिल्ली’ और ‘उत्तर पश्चिमी दिल्ली’ लोकसभा क्षेत्र समेत महाराष्ट्र में पुणे, उत्तर प्रदेश में संतकबीर नगर और हरियाणा में कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र शामिल हैं।
भारत क्रान्तिकारी मजदूर पार्टी के पदाधिकारी
भारत क्रान्तिकारी मजदूर पार्टी के पदाधिकारी

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी पूरे देशभर में चल रही है। 16 मार्च 2024 को लोकसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा के बाद भारत क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) लोकसभा चुनावों में मेहनतकश जनता का पक्ष खड़ा करने के मक़सद से देशभर में 5 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। शुक्रवार को दिल्ली के प्रेस क्लब में एक प्रेस वार्ता के दौरान भारत क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) का लोकसभा चुनाव घोषणापत्र जारी किया गया। पार्टी के घोषणा पत्र में मुख्य बिंदु महँगाई, बेरोज़गारी के खिलाफ, श्रम क़ानूनों को लागू करवाने के मुद्दे रहे।

पार्टी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, भारत क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी, देश भर में 5 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इनमें दिल्ली के ‘उत्तर पूर्वी दिल्ली’ और ‘उत्तर पश्चिमी दिल्ली’ लोकसभा क्षेत्र समेत महाराष्ट्र में पुणे, उत्तर प्रदेश में संतकबीर नगर और हरियाणा में कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र शामिल हैं।

प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुए RWPI की राष्ट्रीय प्रवक्ता शिवानी कौल ने कहा कि, "पिछले दस सालों में भाजपा ने आम जनता को बेतहाशा महँगाई, बेरोज़गारी, अशिक्षा, बदतर स्वास्थ्य व्यवस्था, भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिक राजनीति के ज़रिए नफ़रत के अलावा कुछ नहीं दिया है। महँगाई ने आम जनता की कमर तोड़ कर रख दी है। सिलेण्डर, पेट्रोल, डीज़ल, राशन, सब्ज़ी समेत सभी चीज़ों के दाम बढ़ गये हैं, और दूसरी ओर लोगों की आमदनी में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। हर साल दो करोड़ रोज़गार का वादा करने वाली मोदी सरकार के राज में रोज़गार के अवसर उल्टा घटे हैं।"

"जुलाई 2022 में केन्द्रीय कार्मिक राज्य मन्त्री जितेन्द्र सिंह ने लोकसभा में बताया था कि मोदी सरकार के 8 वर्षों के कार्यकाल में क़रीब 22.5 करोड़ नौजवानों ने सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन किया, जिसमें से केवल 7.22 लाख लोगों को ही नौकरी मिली। नयी शिक्षा नीति के ज़रिए इस सरकार ने शिक्षा के निजीकरण को और भी अधिक आसान बना दिया है, जिससे आम घर के बेटे-बेटियाँ शिक्षा से कोसों दूर हो जायेंगे। मोदी राज में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की क्या हालत है, यह हम सबने कोरोना काल में देखा। लेकिन कोविड के दौरान जब देश की मज़दूर-मेहनतकश आबादी के खाने के लाले पड़ गये थे, तब मोदी जी की कृपा से अडानी की सम्पत्ति में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही थी। आशा-आँगनवाड़ी कर्मियों ने कोरोना काल में जान हथेली पर रखकर स्वास्थ्य व्यवस्था का बोझ अपने कन्धों पर उठाया, लेकिन उनको पक्के कर्मचारी का दर्ज़ा देने और वेतन बढ़ाने की माँग पर सरकार ने केवल उनका दमन किया है। इसी तरह पुरानी पेंशन बहाली के लिए देश भर के कर्मचारी आन्दोलनरत हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है," राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा.

वह आगे कहती हैं, "ग़ौरतलब है कि आज भाजपा इस लूट को जारी रखने के लिए न सिर्फ़ संसद के भीतर से नीतियाँ और क़ानून बना रही है, बल्कि यह देश के तमाम संस्थाओं में फ़ासीवादी घुसपैठ कर रही है। इनफ़ोर्समेण्ट डायरेक्टरेट (ईडी), केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई), आयकर विभाग, चुनाव आयोग, न्यायपालिका आदि के समूचे ढाँचे पर आज संघ परिवार व भाजपा का कमोबेश नियन्त्रण है। हाल ही में ईडी की छापेमारी और चुनावी बॉण्ड के जरिये चन्दा वसूली का मोदी सरकार का खेल उजागर हुआ है। इसी तरह चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल भी आज सन्देह के घेरे में है। हाल के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले, जिसमें वोट को वीवीपैट के साथ मिलान को सिरे से ख़ारिज कर दिया गया, और अलग-अलग बुद्धिजीवियों, वकीलों, पूर्व चुनाव आयुक्तों द्वारा इसपर उठने वाले सवाल ने इस सन्देह को और भी पुख़्ता किया है। इतना ही नहीं, ईवीएम बनाने वाली कम्पनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड के निदेशकों में से चार भाजपा के सदस्य हैं।"

प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि, कुल मिलाकर मोदी सरकार के ये दस साल देश की आम मेहनतकश जनता के हर हिस्से पर कहर बनकर टूटे हैं और अब चुनाव सामने आने पर भाजपा बौखलायी हुई है। यही वजह है कि भाजपा साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने, ईवीएम के जरिये परिणामों में हेराफेरी करने से लेकर हर तरह से चुनाव परिणामों को अपने पक्ष में करने में लगी है। हाल ही में सूरत और इन्दौर में प्रत्याशियों को अपने पक्ष में करने और दूसरे दलों का पर्चा खारिज कराने जैसे कुकृत्य भाजपा की इसी बौखलाहट को दर्शाते हैं।

इण्डिया गठबन्धन भी इस फ़ासीवादी हमले का मुकाबला नहीं कर सकता क्योंकि कांग्रेस से लेकर अन्य पार्टियाँ भी पूँजीपतियों की ही सेवा करती हैं। भारत क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी देश की मेहनतकश जनता का स्वतन्त्र पक्ष है जो उनके संसाधनों से ही चलती है और उनके असली सवालों को लेकर इन चुनावों में भागीदारी कर रही है।

उत्तर पश्चिमी दिल्ली से ‘RWPI’ की प्रत्याशी अदिति ने कहा कि, इस इलाके में आबादी का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली के कारख़ानों में काम करने वाले मज़दूरों का है जिन्हें न तो न्यूनतम मज़दूरी मिलती है, न ही उनके कारख़ानों में सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम होते हैं। इसके अलावा यहाँ एक बड़ी आबादी घरेलू कामगारों की भी है जो बड़ी-बड़ी कोठियों में बेहद कम मज़दूरी पर काम करने को मजबूर हैं। इन घरेलू कामगार महिलाओं को तो मज़दूर तक का दर्ज़ा नहीं दिया जाता है। जिन रिहायशी इलाक़ों में यह आबादी रहती है, वहाँ के हालात तो और भी बदतर हैं। शाहबाद डेरी जैसे इलाक़े में अब भी कई लोगों के घरों में पानी की समस्या है। मेट्रो विहार, सूरज पार्क, गड्ढा बस्ती समेत अन्य रिहायशी इलाक़ों में बजबजाती हुई नालियों के बीच लोग रहने को मजबूर हैं। ये खुली नालियाँ अपने आप में कई बीमारियों का घर हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं की ये हालत है कि कई बस्तियों के आस-पास ढंग के अस्पताल तक नहीं हैं, और जो थोड़ी दूरी पर अस्पताल हैं भी उनमें आम लोगों को इलाज़ से ज़्यादा लम्बी लाइनें मिलती हैं।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली से ‘RWPI’ के प्रत्याशी योगेश स्वामी ने अपनी बात रखी कि, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के इलाक़े में भी मजदूरों का एक बड़ा हिस्सा मौजूद है, जो करावलनगर के छोटे-छोटे कारख़ानों में अपनी हड्डी गलाने को मजबूर है। यहाँ से एक बड़ी आबादी ट्रॉनिका सिटी काम करने जाती है, जिनके लिए न्यूनतम वेतन समेत श्रम क़ानून तक लागू नहीं होते हैं। करावलनगर में पिछले लम्बे समय से बादाम मज़दूर काम कर रहे हैं, जो 2 रूपये प्रति किलो की दर से बादाम छँटाई का काम कर रहे थे और हाल में ही अपनी एकजुटता के दम पर उन्होंने इसे 3 रूपये प्रति किलो करवाया है, जो कि फिर भी काफ़ी कम है। इस इलाक़े में आबादी का एक हिस्सा है जो छोटे-मोटे काम-धन्धे कर अपना गुज़ारा करता है। लेकिन जीएसटी और नोटबन्दी के बाद इन कामों में भी गिरावट आयी है। निम्न-मध्य वर्ग की आबादी का एक हिस्सा भी उत्तर पूर्वी दिल्ली में रहता है, जो बच्चों की महँगी फ़ीस, महँगे दवा-इलाज़ से परेशान है। पिछले दस सालों में यहाँ रहने वाली आम आबादी के हालात और भी अधिक बदतर हुए हैं।

"भारत क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) इन क्षेत्रों में इन समस्याओं को लेकर लोगों को संगठित करने और संघर्ष करने में जुटी हुई है। इस लोकसभा चुनाव में देशभर में पाँच सीटों पर और दिल्ली में दो सीटों पर अपना प्रत्याशी खड़ा किया है। इन सभी सीटों पर हमारा चुनाव चिन्ह ‘करनी’ है। हम किसी भी कॉरपोरेट घरानों, चुनावी ट्रस्टों, सरकारी एजेंसियों, एनजीओ और ऐसे अन्य स्रोतों से कोई भी फण्डिंग नहीं लेते हैं। आज हम मज़दूरों-मेहनतकशों की ठोस माँगों के साथ इस चुनाव में भागीदारी कर रहे हैं", योगेश स्वामी ने कहा.

पार्टी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार पार्टी के उम्मीदवार इस प्रकार हैं- अदिति, उत्तर पश्चिमी दिल्ली, योगेश, उत्तर पूर्वी दिल्ली, अश्विनी खैरनार, पुणे (महाराष्ट्र), मित्रसेन, सन्तकबीर नगर (उत्तर प्रदेश), रमेश खटकड़, कुरूक्षेत्र, हरियाणा।

प्रमुख माँगें इस प्रकार हैं:

1. हर नागरिक के लिए रोज़गार गारण्टी का संवैधानिक हक़ और रोज़गार नहीं मिलने की सूरत में न्यूनतम 15,000 रुपये बेरोजगारी भत्ता।

2. ठेका प्रथा का पूर्ण उन्मूलन।

3. राष्ट्रीय न्यूनतम मज़दूरी कम से कम 30,000 रुपये।

4. प्राथमिक से लेकर उच्चतर शिक्षा के स्तर तक सभी के लिए समान एवं निःशुल्क शिक्षा।

5. सबके लिए समान एवं निःशुल्क दवा इलाज की व्यवस्था।

6. ईवीएम पर बैन लगाया जाये और बैलेट पेपर से चुनाव की व्यवस्था को फिर से बहाल किया जाये।

7. पुरानी पेंशन बहाल की जाये। नयी पेंशन स्कीम को रद्द किया जाये।

8. आशा-आँगनवाड़ी कर्मियों समेत सभी स्कीम वर्कर्स को कर्मचारी का दर्ज़ा दिया जाये।

9. चार लेबर कोड रद्द किये जायें और सभी श्रम क़ानूनों को सख़्ती लागू कराया जाये।

10. स्त्रियों और पुरुषों को समान काम के लिए समान वेतन।

11. सरकारी ऋण दबा लेने वाली सभी कम्पनियों का तत्काल राष्ट्रीकरण।

12. हर तरह के जातिगत और धार्मिक भेदभाव और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानून।

लोकसभा चुनाव 2024 में मेहनतकश जनता का स्वतन्त्र पक्ष खड़ा करो!

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