MP: भोपाल एम्स बना रहा सर्वाइकल कैंसर जांच के लिए सबसे छोटी डिवाइस, जानिए कैसे करेगी काम?

प्रति एक लाख में 12.1% महिलाओं में यह कैंसर हो रहा है। देश में 18.7 प्रतिशत महिलाएं इस कैंसर से पीड़ित हैं और 11.7 प्रतिशत महिलाओं की इस बीमारी से मौत हो जाती है।
भोपाल एम्स
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भोपाल। देश में हर वर्ष लगभग 13 लाख महिलाएं सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित होती हैI जिसमें से लगभग 80 हजार महिलाओं की इस कैंसर की वजह से मौत हो जाती है। सर्वाइकल कैंसर के सबसे ज्यादा मामले मध्य प्रदेश से ही सामने आते हैं, इसके चलते अब सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए प्रयास तेज हो रहे हैं। हालांकि, सबसे बड़ी मुसीबत इसकी पहचान की है, क्योंकि सालों बाद यह कैंसर सामने आ पाता है।

लगातार बढ़ते सर्वाइकल कैंसर के मामलों को देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए अब तक की सबसे छोटी डिवाइस बनाने पर काम कर रहा है। यह डिवाइस बैटरी से काम करेगी साथ ही इसे ऑपरेट करने के लिए किसी तरह के पैथोलॉजिस्ट की जरूरत नहीं पड़ेगी।

एम्स की बायोकेमिस्ट्री विभाग की प्रोफेसर डॉ. रश्मि चौधरी ने द मूकनायक को बताया कि सर्वाइकल कैंसर होने से पहले तीन स्टेज होते हैं। किसी महिला में वायरस के शुरुआती लक्षण आते हैं तो इसे पनपने में 10 से 20 साल तक लग सकते हैं। उन्होंने बताया कि शोध का प्रथम फेस पूरा हो चुका है। दूसरे फेस में मास टेस्टिंग ट्रायल के लिए 36 गांव में जाकर सैंपल कलेक्ट किए जाएंगे और जांच की जाएगी। उन्होंने बताया की यह शोध भारत सरकार के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर) के अनुदान-सहायता से किया जा रहा है।

डॉ. रश्मि ने आगे कहा, "इस प्रोजेक्ट के लिए एम्स डायरेक्टर प्रोफेसर (डॉ.) अजय सिंह का भी सकारात्मक रुख रहा है, उन्होंने इसे पूरा करने लिए शोध कार्य में लगी पूरी टीम का उत्साहवर्धन किया है। वह चाहते हैं कि लोगों के बेहतर इलाज के लिए नवाचार होने चाहिए। उन्होंने कहा था कि लोग हम तक आ रहे हैं यह अच्छी बात है, पर हम इलाज के लिए उन तक कैसे पहुँचे इसके लिए भी काम करना जरूरी है। अभी हमने डिवाइस का पहला फेज पूरा कर लिया है, अनुमान है कि साल 2025 में हम इसे पूरा कर लेंगे।"

सौ रुपये के खर्च में हो सकेगी जांच

डिवाइस को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह कम खर्चे में जांच का काम पूरा कर सके। एम्स से मिली जानकारी के मुताबिक महज 100 रुपए के खर्चे में जांच की जा सकेगी। इसके साथ ही जांच की पूरी प्रोसेस में सिर्फ 30 मिनट का वक्त लगेगा इतने समय में ही सर्वाइकल कैंसर की जांच हो सकेगी। डॉ. रश्मि चौधरी ने कहा, "डिवाइस पूरी होने के बाद हम भारत सरकार से आग्रह भी करेंगे कि इस जांच के लिए अनुदान हो ताकि जांच निःशुल्क की जा सके।"

कैंप लगाकर हो सकेगी सैम्पलिंग

डिवाइस की मदद से गांव में कैंप लगाकर मास सैंपलिंग की जा सकेगी। यह डिवाइस बैटरी से काम करेगी इसलिए बिजली की आवश्यकता नहीं होगी। इसके लिए किसी पैथोलॉजिस्ट की भी जरूरत नहीं होगी। खास बात यह है कि इस जांच के लिए सैंपल पैप स्मीयर की तरह ही लिया जा सकेगा। इसलिए दूरदराज के इलाकों में एएनएम या आशा कार्यकर्ता भी जांच कर सकेंगी। जांच रिपोर्ट पॉजिटिव होने पर अलग से हिस्टोपैथोलाजी जांच कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस जांच के लिए कोई लैब बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

बता दें कि मौजूदा समय में सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए ज्यादातर अस्पतालों में पैप स्मीयर जांच की जाती है। इसकी रिपोर्ट करीब दो सप्ताह में आती है। रिपोर्ट पॉजिटिव पाए जाने पर सर्वाइकल कैंसर की पुष्टि के लिए इम्यूनोफ्लोरेसेंस व हिस्टोपैथोलाजी जांच होती है।

बैंकाक में किया शोधपत्र प्रस्तुत

एम्स भोपाल की प्रोफेसर डॉ. रश्मि चौधरी को बैंकॉक में 6 और 7 मई 2024 के दौरान कैंसर विज्ञान और थैरेपी पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्होंने एम्स भोपाल में सर्वाइकल कैंसर की शीघ्र पहचान और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को इससे बचाने के लिए स्क्रीनिंग उपकरण पर बड़े पैमाने पर किए जा रहे अपने शोध कार्य को साझा किया है।

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं में होने वाले कैंसर में दूसरे नंबर पर सवाईकल कैंसर शामिल है। प्रति एक लाख महिलाओं में 12.1 महिलाओं में यह कैंसर हो रहा है। आमतौर पर 40 से 45 साल की उम्र की महिलाओं में यह होता है। भारत में 18.7 प्रतिशत महिलाएं इस कैंसर से पीड़ित हैं और 11.7 प्रतिशत महिलाओं की इस बीमारी से मौत हो जाती है।

सर्वाइकल कैंसर क्या है?

सर्वाइकल कैंसर गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर है। गर्भाशय ग्रीवा गर्भाशय का निचला, संकीर्ण द्वार होता है। यह गर्भाशय से योनि तक जाता है। सर्वाइकल कैंसर को विकसित होने में आमतौर पर वर्षों लग जाते हैं। इस दौरान गर्भाशय ग्रीवा में कोशिकाएं बदलती हैं और तेजी से बढ़ती हैं। पूर्ण विकसित कैंसर (प्रीकैंसरस) बनने से पहले होने वाले प्रारंभिक परिवर्तनों को "डिसप्लेसिया" या "सरवाइकल इंट्रापीथेलियल नियोप्लासिया" (सीआईएन) कहा जाता है। यदि इन परिवर्तनों का पता लगा लिया जाए और इलाज किया जाए, तो सर्वाइकल कैंसर को रोका जा सकता है। यदि निदान और उपचार न किया जाए, तो सर्वाइकल कैंसर शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है, जिससे यह मौत का कारण बन सकता है।

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