जोधपुर- राजस्थान हाईकोर्ट ने 16 अक्टूबर को एक महत्वपूर्ण फैसले में राज्य के 48 से अधिक स्कूल प्रिंसिपलों की ओर से दायर रिट याचिकाओं का निपटारा करते हुए उनके ट्रांसफर ऑर्डरों को बरकरार रखा है। ये याचिकाएं माध्यमिक शिक्षा विभाग के तहत जारी ट्रांसफर आदेशों को चुनौती देती थीं, जिनमें सेवानिवृत्ति के करीब पहुंचे अधिकारियों, विकलांग कर्मचारियों, पति-पत्नी जोड़े, विधवाओं और खेल पुरस्कार विजेताओं जैसी विशेष श्रेणियों के अधिकारियों की शिकायतें शामिल थीं।
जस्टिस मुनूरी लक्ष्मण की एकलपीठ ने सभी याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के बाद खारिज कर दिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं को नए स्थान पर जॉइन करने के बाद प्रतिनिधित्व करने की छूट दी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ट्रांसफर प्रशासनिक जरूरतों पर आधारित हैं और कार्यकारी निर्देशों का उल्लंघन होने पर भी वे रद्द नहीं हो सकते, हालांकि विशेष मामलों में विचार किया जा सकता है। यह फैसला राजस्थान के शिक्षा विभाग में ट्रांसफर नीति को लेकर चल रही बहस को नई दिशा दे सकता है, खासकर जब राज्य सरकार सामान्य ट्रांसफर जनवरी से अप्रैल के बीच करने का नियम मानती है।
याचिकाओं में शामिल प्रिंसिपल, जो हनुमानगढ़, उदयपुर, जोधपुर, बीकानेर, चूरू, गंगानगर, बाड़मेर, डूंगरपुर, पाली, अजमेर, सीकर, जालौर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, सिरोही और अन्य जिलों से थे, इन्होने ट्रांसफर ऑर्डरों को राज्य सरकार की ट्रांसफर नीति का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ट्रांसफर आदेश सेवानिवृत्ति के एक-दो साल पहले के अधिकारियों को हटाने, विकलांगता, कैंसर या हृदय सर्जरी से पीड़ित व्यक्तियों, विधवाओं, परित्यक्त महिलाओं, एकल महिलाओं, पूर्व सैनिकों, अमर शहीदों के आश्रितों, दूरस्थ क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों, बायपास सर्जरी या किडनी प्रत्यारोपण से गुजरे लोगों, पक्षाघात या अंधापन जैसी विकलांगताओं को प्राथमिकता न देने के कारण अवैध हैं।
इसके अलावा, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को उनकी तीन पसंदीदा जगहों पर पोस्टिंग न देने और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों से हिंदी माध्यम में ट्रांसफर को रिवर्सन बताकर चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने तर्क दिया कि राज्य सरकार ने अपनी ही नीति का पालन नहीं किया, जो कल्याणकारी राज्य के सिद्धांत के विरुद्ध है। उन्होंने डॉ. पुष्पा मेहता बनाम राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय ट्रिब्यूनल (आरएलडब्ल्यू 2000 (1) राजस्थान 233) और रानी जैन बनाम राजस्थान सरकार (एस.बी. सिविल रिट पिटिशन नंबर 6971/2019) जैसे फैसलों का हवाला दिया।
हाईकोर्ट ने याचिकाओं का विश्लेषण करते हुए कहा कि ट्रांसफर राजस्थान सेवा नियम 1951 के नियम 20 के तहत वैध हैं, जो सरकार को सिवाय अक्षमता या दुराचार के मामलों में कर्मचारी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने का अधिकार देता है। जस्टिस मुनूरी लक्ष्मण ने फैसले में प्रमुख टिप्पणियां करते हुए कहा, "ट्रांसफर ऑर्डर प्रशासनिक आवश्यकताओं/जरूरतों को ध्यान में रखते हुए किए गए हैं और ये नियमित ट्रांसफर नहीं हैं। ये विशेष प्रकृति के ट्रांसफर हैं और सामान्य ट्रांसफर के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।"
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कार्यकारी निर्देश या ट्रांसफर नीति के तहत दी गई प्राथमिकताएं केवल दिशानिर्देश हैं और वे कर्मचारी को कोई कानूनी रूप से प्रवर्तनीय अधिकार नहीं देतीं। उन्होंने शिल्पी बोस बनाम बिहार राज्य (1991 सप्लिमेंटरी (2) एससीसी 659), राजेंद्र रॉय बनाम भारत संघ (1993) 1 एससीसी 148, भारत संघ बनाम एस.एल. अब्बास (1993) 4 एससीसी 357, उत्तर प्रदेश राज्य बनाम गोबरधन लाल (2004) 11 एससीसी 402, मोहम्मद मसूद अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2007) 8 एससीसी 150, पुबी लोम्बी बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य (2024) 12 एससीसी 292 जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा, "कार्यकारी निर्देशों का पालन न करने से ट्रांसफर ऑर्डर रद्द नहीं होते।"
सेवानिवृत्ति के करीब ट्रांसफर पर कोर्ट ने कहा, "पेंशन नियम 1996 के नियम 80 के तहत पेंशन पेपर दो साल पहले तैयार किए जाते हैं, लेकिन यह ट्रांसफर पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाता। अब ऑनलाइन प्रक्रिया के कारण कोई असुविधा नहीं है।" विकलांगता या विशेष श्रेणी के मामलों पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा, "विकलांग व्यक्तियों के मामलों को अलग आधार पर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि उनके अधिकार वैधानिक प्रावधानों से निकलते हैं। विकलांगता की प्रकृति, असुविधा और प्रशासनिक आवश्यकताओं का संतुलन जरूरी है, लेकिन ये अधिकार भी प्रशासनिक जरूरतों के अधीन हैं।" लगातार ट्रांसफर की शिकायतों पर कोर्ट ने कहा, "लगातार ट्रांसफर ट्रांसफर शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है, लेकिन यहां ये प्रमोशन और प्रिंसिपलों के वितरण को तर्कसंगत बनाने के लिए किए गए हैं, इसलिए मनमाने नहीं हैं।" मैलाफाइड के आरोपों पर कोर्ट ने कहा, "मैलाफाइड के आरोपों के लिए ठोस तथ्य और संबंधित पक्षकारों को शामिल करना जरूरी है, जो यहां नहीं है।"
फैसले के अंत में कोर्ट ने सभी याचिकाओं को निपटाते हुए ट्रांसफर ऑर्डरों में हस्तक्षेप न करने का आदेश दिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं को विशेष प्राथमिकताओं का दावा करने वालों को नए स्थान पर जॉइन करने के बाद एक महीने के अंदर प्रतिनिधित्व करने की छूट दी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि ऐसे प्रतिनिधित्वों पर कार्यकारी निर्देशों/ट्रांसफर नीति और प्रशासनिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विचार किया जाए। अन्य याचिकाकर्ताओं को आगामी सामान्य ट्रांसफर में प्रतिनिधित्व करने की सलाह दी गई।
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता सज्जन सिंह राठौड़ , आर.एस. भाटी और युवराज सिंह राठौड़ ने तर्क दिया कि ये ट्रांसफर प्रिंसिपलों के कार्य पैटर्न को तर्कसंगत बनाने के लिए विशेष हैं और सामान्य नीति लागू नहीं होती। यह फैसला शिक्षा विभाग में ट्रांसफर प्रक्रिया को लेकर चल रही अनिश्चितता को कम कर सकता है, लेकिन विशेष श्रेणी के अधिकारियों के लिए प्रतिनिधित्व का रास्ता खोलता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय राज्य सरकार को अपनी ट्रांसफर नीति को और मजबूत करने का अवसर देगा, ताकि शैक्षणिक सत्र के बीच में होने वाले बदलाव छात्रों और शिक्षकों दोनों पर असर न डालें। कोई लागत का आदेश नहीं दिया गया है।
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