भोपाल। जब कोई किसान अपनी अधूरी फसल के साथ जीवन का भी हिसाब चुकता कर देता है या कोई विद्यार्थी किताबों और उम्मीदों के बोझ तले दम तोड़ देता है, तो आँकड़े महज संख्या नहीं रह जाते, बल्कि वे अधूरी कहानियों और टूटे सपनों का दस्तावेज़ बन जाते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2023 की रिपोर्ट ने मध्यप्रदेश की वह तस्वीर सामने रखी है, जो केवल अपराध और आत्महत्याओं की गिनती नहीं है, बल्कि समाज की गहरी त्रासदियों को उजागर करती है।
रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2023 में मध्यप्रदेश में कुल 15,662 लोगों ने आत्महत्या की। इनमें से 777 लोग खेती-किसानी और कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए थे। इनमें 74 वे कृषक थे, जो अपनी ही जमीन पर मेहनत कर रहे थे, जबकि 20 लोग लीज़ पर जमीन लेकर खेती कर रहे थे। बाकी आत्महत्या करने वाले वे लोग थे, जो खेतिहर मजदूरी और अन्य कृषि कार्यों से अपना जीवन चलाते थे। खेती, जिसे जीवन का आधार माना जाता है, वही आज किसानों के लिए सबसे बड़ा संकट बन गई है। कर्ज का बोझ, लगातार बदलते मौसम और फसल का चौपट होना इस त्रासदी की गहरी वजह बनकर सामने आ रहा है।
भारतीय किसान संघ के प्रांत संगठन मंत्री राहुल धूत ने द मूकनायक से बातचीत में कहा कि खेती-किसानी से जुड़े लोगों की आत्महत्या के आंकड़े बेहद भयावह हैं। यह केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि एक गहरी सामाजिक और आर्थिक समस्या है, जो प्रदेश के ग्रामीण जीवन और कृषि व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करती है। धूत ने कहा कि जब किसान और खेतिहर मजदूर, जो पूरे समाज का पेट भरते हैं, वही खुद जीवन से हार मानने पर मजबूर हो जाते हैं, तो यह न केवल उनके परिवारों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि सरकार को इन परिस्थितियों को सामान्य आंकड़े समझकर नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए, बल्कि तात्कालिक और ठोस कदम उठाने होंगे। कर्ज़ से मुक्ति, फसलों के उचित दाम और ग्रामीण स्तर पर रोजगार के अवसर ही इस भयावह स्थिति को कम कर सकते हैं।
1107 महिलाओं ने भी दी जान
आत्महत्या करने वालों के पीछे अनेक सामाजिक और आर्थिक कारण सामने आए हैं। रिपोर्ट कहती है कि विवाह संबंधी समस्याओं के चलते 1,107 लोगों ने जान दी, जिनमें 720 महिलाएँ शामिल थीं। सामाजिक प्रतिष्ठा खोने का भय इतना गहरा था कि इस कारण से अकेले मध्यप्रदेश में 146 लोगों ने आत्महत्या की और यह संख्या पूरे देश में सबसे अधिक रही। प्रेम प्रसंग भी 655 जीवन को लील गया, जबकि बेरोजगारी से जूझ रहे 196 लोग हताशा में मौत को गले लगा बैठे। पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं के दबाव से परेशान 343 विद्यार्थियों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। यह संख्या महाराष्ट्र के बाद पूरे देश में दूसरी सबसे बड़ी है और यह बताती है कि बच्चों और युवाओं पर उम्मीदों का बोझ किस हद तक जानलेवा हो चुका है।
बुजुर्गों के खिलाफ अपराध में पहला स्थान
रिपोर्ट का एक और पहलू और भी गंभीर है। बुजुर्गों के खिलाफ अपराधों में भी मध्यप्रदेश लगातार पहले स्थान पर है। वर्ष 2023 में देशभर में 60 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों पर 26,306 अपराध दर्ज हुए, जिनमें से 5,738 मामले केवल मध्यप्रदेश से थे। वर्ष 2022 में भी प्रदेश इस मामले में सबसे आगे था, जब यहाँ 6,187 अपराध दर्ज हुए थे। इन मामलों में 155 बुजुर्गों की हत्या की गई, जबकि 102 बुजुर्ग धोखाधड़ी के शिकार बने। यह स्थिति केवल अपराधों की बढ़ती संख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें न्याय की धीमी गति भी जुड़ी हुई है। एक जनवरी 2023 की स्थिति में बुजुर्गों से संबंधित 22,417 मामले न्यायालयों में लंबित थे और वर्ष 2023 में ही 5,313 नए प्रकरण दर्ज हो गए। यानी सुरक्षा और सम्मान की अपेक्षा करने वाली यह पीढ़ी अदालतों की दहलीज पर भी लंबा इंतजार करने को मजबूर है।
ये आँकड़े स्पष्ट संकेत देते हैं कि मध्यप्रदेश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति गंभीर संकट से गुजर रही है। किसानों और मजदूरों की आत्महत्याएँ सरकार की कृषि नीतियों और ग्रामीण जीवन संरचना की असफलताओं की ओर इशारा करती हैं। विद्यार्थियों और बेरोजगार युवाओं की आत्महत्याएँ शिक्षा प्रणाली और रोजगार व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े करती हैं। वहीं बुजुर्गों पर बढ़ते अपराध यह साबित करते हैं कि जिस समाज में उन्हें सबसे अधिक सुरक्षा और सम्मान मिलना चाहिए, वहीं वे उपेक्षा और असुरक्षा का शिकार हो रहे हैं।
एनसीआरबी की यह रिपोर्ट केवल आँकड़ों का दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह सरकार और समाज दोनों के लिए चेतावनी है। अब वक्त केवल कानून और योजनाएँ बनाने का नहीं, बल्कि उन्हें जमीन पर ईमानदारी से लागू करने का है। साथ ही, इंसानी संवेदनाओं और रिश्तों में भी वह जुड़ाव और जिम्मेदारी लौटाने की जरूरत है, जिसकी कमी इन दुखद घटनाओं की सबसे बड़ी वजह बन रही है।
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