MP: पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ने कहा, “कॉलेजियम सिस्टम की बेईमानी के कारण नहीं बन पाए SC-ST जज”

भोपाल में DOMA परिसंघ सम्मेलन में उठाई न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व की मांग
सुरेश कैत
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भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ने देश की न्यायपालिका में सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व की कमी पर कड़ा सवाल उठाया है। रविवार को भोपाल के समन्वय भवन में आयोजित दलित, ओबीसी, माइनॉरिटी और आदिवासी (DOMA) परिसंघ के सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम "बेईमानी" से भरा है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में आज तक कोई एससी, एसटी वर्ग का व्यक्ति न तो सेवा से और न ही अधिवक्ता से जज बन सका।

पूर्व चीफ जस्टिस कैत ने कॉलेजियम प्रणाली पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा, “मप्र में 90% से ज्यादा आबादी एससी, एसटी और बैकवर्ड क्लास की है। फिर भी हाईकोर्ट में एक भी जज इन वर्गों से नहीं है। ये कॉलेजियम सिस्टम की बेईमानी है।”

उन्होंने सवाल किया कि क्या 1956 से लेकर आज तक मध्य प्रदेश में कोई योग्य एडवोकेट नहीं था? क्या कोई कैंडिडेट नहीं मिला? ये सिस्टम की खामी नहीं, बल्कि इसके भीतर की जानबूझकर की गई भेदभावपूर्ण मानसिकता है।

प्रतिनिधित्व के बिना परफेक्ट सिस्टम नहीं बनता: कैत

कैत ने कहा कि कॉलेजियम में कोई खराबी नहीं, खराबी है प्रतिनिधित्व की सोच में, “जब तक आप यह लाइन तय नहीं करते कि इतने प्रतिशत प्रतिनिधित्व इन वर्गों का होगा, तब तक कोई सिस्टम परफेक्ट नहीं हो सकता।”

उन्होंने सुझाव दिया कि ज्यूडिशियरी में भी आरक्षण की तरह प्रतिनिधित्व की अनिवार्यता तय की जानी चाहिए।

हाईकोर्ट में सिर्फ 15-16% जज हैं SC-ST-BC वर्गों से

कैत ने राष्ट्रीय स्तर पर भी आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया, “अगर पूरे देश के हाईकोर्ट्स को देखें तो आज की तारीख में एससी, एसटी और बैकवर्ड क्लास को मिलाकर सिर्फ 15-16% जज हैं। ऐसे में क्या ये न्याय संगत है कि 80-85% आबादी के पास केवल 15% प्रतिनिधित्व हो?”

उन्होंने इस असंतुलन को संविधान की मूल भावना और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ बताया।

पूर्व सीजे ने कहा कि लोग अपने प्रमोशन, एसीआर, ट्रांसफर को लेकर तो संघर्ष करते हैं, “लेकिन ज्यूडिशियरी की बात पर सब चुप रहते हैं। ज्यूडिशियरी में भागीदारी नहीं बढ़ाई गई तो सामाजिक न्याय अधूरा रहेगा।” उन्होंने सम्मेलन में उपस्थित जनसमुदाय से अपील की कि वे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक प्रतिनिधित्व को लेकर आवाज उठाएं। कैत ने बताया कि वे दिल्ली हाईकोर्ट में पहले जज बने थे जो एससी/एसटी वर्ग से अधिवक्ता के रूप में सीधे नियुक्त हुए। उन्होंने कहा कि, "आज तक कोई दूसरा जज ऐसे नहीं आया। ये सोचने की बात है।"

उन्होंने कहा कि ये केवल उनकी व्यक्तिगत कहानी नहीं है, बल्कि पूरे सामाजिक तानेबाने में व्याप्त संस्थागत भेदभाव का उदाहरण है।

प्रतिनिधित्व के बिना कोई विभाग सामाजिक नहीं बन सकता

उन्होंने कहा, “जिस विभाग में रिजर्वेशन नहीं है, वहां रिप्रजेंटेशन भी नहीं है। सिस्टम जिनके हाथ में है, वे ही तय करते हैं कि किसे मौका मिलेगा और किसे नहीं।” पूर्व चीफ जस्टिस ने कहा कि भले ही उन्हें भी व्यक्तिगत रूप से सिस्टम ने नुकसान पहुंचाया हो, लेकिन वे समाज के लिए लड़ते रहेंगे और उन्हें इस बात का गर्व है।

ये देश किसी एक जाति का नहीं- कैत

कैत ने कहा, “देश किसी एक जाति या धर्म का नहीं है। यह सभी जातियों और धर्मों का देश है। इसलिए जितनी जनसंख्या भारी, उतनी भागीदारी होनी चाहिए।” उन्होंने सामाजिक संगठनों से अपील की कि मुद्दों को सिर्फ रैलियों और भाषणों में न छोड़ा जाए, बल्कि न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व को लेकर संविधानिक स्तर पर ठोस संघर्ष किया जाए।

भोपाल में हुए इस DOMA परिसंघ के सम्मेलन में राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद डॉ. उदित राज, मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, और प्रदेश अध्यक्ष एआर सिंह भी मौजूद थे। सभी ने जस्टिस कैत के वक्तव्य का समर्थन किया और न्यायपालिका में सामाजिक न्याय आधारित सुधारों की मांग की।

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