मराठा आरक्षण पर हाईकोर्ट की बड़ी कार्रवाई: नई बेंच गठित, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बढ़ी हलचल!

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण कानून 2024 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए नई तीन-सदस्यीय पीठ का गठन किया।
Bombay High Court Forms New Bench to Hear Pleas Against 2024 Maratha Reservation Law.jpg
मराठा आरक्षण कानून 2024 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने नई पीठ गठित कीग्राफिक- राजन चौधरी, द मूकनायक
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के दो दिन बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण (Maratha reservation) प्रदान करने वाले 2024 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों की एक नई पीठ का गठन किया है।

गुरुवार को जारी हाईकोर्ट की अधिसूचना के अनुसार, यह पूर्ण पीठ जस्टिस रविंद्र वी. घुगे, जस्टिस एन. जे. जमादार और जस्टिस संदीप मर्ने की अध्यक्षता में गठित की गई है। यह पीठ 'महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम, 2024' से संबंधित जनहित याचिकाओं और दीवानी रिट याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

इससे पहले जनवरी 2025 में तत्कालीन बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय के दिल्ली हाईकोर्ट में तबादले के बाद सुनवाई की प्रक्रिया रुक गई थी। याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलें पूरी कर ली थीं, लेकिन राज्य सरकार और उसके अधीनस्थ अधिकारियों की ओर से जवाब दाखिल नहीं किया जा सका था।

अब गठित की गई नई पीठ इस मामले की फिर से सुनवाई करेगी और याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई अंतरिम राहत पर भी विचार करेगी।

जस्टिस उपाध्याय उस तीन-न्यायाधी पीठ का हिस्सा थे, जिसने अप्रैल 2024 से मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण प्रदान करने वाले SEBC (Socially and Educationally Backward Classes) कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी। याचिकाकर्ताओं की दलीलें 14 अक्टूबर 2024 को समाप्त हो गई थीं।

यह कानून 20 फरवरी 2024 को तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली सरकार द्वारा पारित किया गया था। यह कानून न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुनील बी. शुकर की अध्यक्षता वाले महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (MSBCC) की रिपोर्ट पर आधारित था, जिसमें कहा गया था कि मराठा समुदाय को 50% आरक्षण सीमा से अधिक आरक्षण देने के लिए "असाधारण परिस्थितियाँ और विशिष्ट स्थितियाँ" मौजूद हैं।

इन याचिकाओं में न केवल कानून की वैधता को चुनौती दी गई है, बल्कि न्यायमूर्ति शुकर की नियुक्ति और सरकार द्वारा आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के निर्णय को भी विवादित बताया गया है।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ—जिसमें जस्टिस बी. आर. गवई (जो बुधवार को भारत के नए मुख्य न्यायाधीश बने) और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे—ने 2025 के NEET-UG और NEET-PG परीक्षा में बैठने वाले छात्रों की याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे को नई पीठ गठित कर जल्द से जल्द सुनवाई शुरू करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को यह भी निर्देश दिया कि छात्रों द्वारा मांगी गई अंतरिम राहत के मुद्दे पर शीघ्र विचार किया जाए।

इससे पहले 16 अप्रैल 2024 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय की अध्यक्षता वाली हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने स्पष्ट किया था कि इस कानून के तहत की गई सभी शैक्षणिक दाखिलों और सरकारी भर्तियों पर आगे आने वाले आदेशों का पालन करना होगा।

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