मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने रेप सर्वाइवर के हक में दिया बड़ा फैसला, जानिए क्या कहा?

पीड़िता या परिजन को एमटीपी एक्ट की जानकारी भी नहीं होती है। ऐसे में जांच अधिकारी और डॉक्टर की जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें 22 सप्ताह से कम का गर्भ होने पर टर्मिनेशन के लिए लिखकर दें ताकि बच्ची का भविष्य बच सके: हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने रेप सर्वाइवर के हक में दिया बड़ा फैसला, जानिए क्या कहा?

भोपाल। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट इंदौर खंडपीठ ने बलात्कार के बाद गर्भवती होने वाली नाबालिग और बालिग युवतियों के गर्भपात कराए जाने के मामले में महत्वपूर्ण आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि संबंधित पुलिस थाना के प्रभारी, जांच अधिकारी और सरकारी डॉक्टर की यह जिम्मेदारी तय होती है कि वह पीड़िता या उसके परिजन को लिखकर दें कि वह सीधे गर्भपात करवा सकते हैं।

कोर्ट ने कहा 22 सप्ताह से कम के मामलों में कोर्ट से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं हैं। लेकिन फिर भी इस तरह के मामलों में देरी होती है। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने यह फैसला जारी कर इसकी जिम्मेदारी डॉक्टर्स और थाना प्रभारी पर तय की है।

हाई कोर्ट ने अहम आदेश पारित करते हुए, आदेश प्रति प्रदेश के सभी पुलिस स्टेशन पर भेजने के निर्देश दिए हैं। आदेश में यह भी लिखा है कि इसका पालन नहीं होने पर संबंधित जांच अधिकारी, डॉक्टर के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई भी की जाएगी।

दरअसल, एक नाबालिग से ज्यादती की गई थी। जांच के वक्त उसके परिजन को नहीं बताया गया कि बेटी को 14 सप्ताह का गर्भ है। 22 सप्ताह का होने के बाद गर्भ होने की जानकारी दी गई। इस पर परिजन ने गर्भपात की अनुमति कोर्ट से मांगी।

लेकिन मेडिकल बोर्ड ने जवाब दिया कि बच्ची का हीमोग्लोबिन बहुत कम है। जान का खतरा हो सकता है। हीमोग्लोबिन बढ़ने के बाद ही गर्भपात किया जा सकता है। हीमोग्लोबिन बढ़ने के बाद टर्मिनेशन किया गया। उल्लेखनीय है कि नाबालिगों से ज्यादती के बाद उनके गर्भवती हो जाने पर समय पर गर्भपात नहीं हो पाता है। सरकारी डॉक्टर, जांच अधिकारी कोर्ट से अनुमति लाने के लिए कहते हैं। ऐसे में कई बार 22 सप्ताह या उससे अधिक का समय भी हो जाता है। बच्चियों और उनके परिजन को मानसिक परेशानी झेलना पड़ती है।

हाई कोर्ट ने इस फैसले में लिखा कि पीड़िता या परिजन को एमटीपी एक्ट की जानकारी भी नहीं होती है। ऐसे में जांच अधिकारी और डॉक्टर की जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें 22 सप्ताह से कम का गर्भ होने पर टर्मिनेशन के लिए लिखकर दें ताकि बच्ची का भविष्य बच सके।

भारत में क्या है कानून?

1971 का मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 गर्भवती महिला को 20 हफ्ते तक गर्भपात कराने की इजाजत देता है। 2021 में हुए बदलाव के बाद ये सीमा कुछ विशेष परिस्थितियों में 24 हफ्ते कर दी गई। हालांकि, ऐसा बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं किया जा सकता है। अगर गर्भ 24 हफ्ते से ज्यादा का है तो पहले एबॉर्शन की अनुमति नहीं थी, पर नए कानून के तहत मेडिकल बोर्ड की रजामंदी पर ऐसा किया जा सकता। इसके लिए तीन श्रेणियां बनाई गईं। 

1 गर्भावस्था के 0 से 20 हफ्ते तक:  अगर कोई भी गर्भवती महिला गर्भपात करना चाहती है तो वह एक रजिस्टर्ड डॉक्टर की सलाह से ऐसा कर सकती है। भले वो महिला विवाहित हो या अविवाहित। 

2. गर्भावस्था के 20 से 24 हफ्ते तक: अगर गर्भवती महिला के जीवन को खतरा हो या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गहरा आघात लगने का डर हो, या जन्म लेने वाले बच्चे को गंभीर शारीरिक या मानसिक विकलांगता का डर हो, तब वह महिला दो डॉक्टरों की सलाह पर गर्भपात करा सकेगी। इस श्रेणी में यह परिस्थितियां महत्वपूर्ण होंगी-

A. अगर अनचाहा गर्भ ठहरा हो। महिला या उसके पार्टनर ने गर्भावस्था से बचने के लिए जिन उपायों को आजमाया हो, वह फेल हो जाए।

B. अगर महिला आरोप लगाए कि दुष्कर्म की वजह से गर्भ ठहरा है। इस तरह की प्रेगनेंसी उस महिला के लिए मानसिक रूप से अच्छी नहीं होगी।

C. जहां भ्रूण में विकृति हो और इसका पता 24 हफ्ते बाद चले तो मेडिकल बोर्ड की सलाह के बाद गर्भपात किया जा सकेगा।

3. गर्भावस्था के 24 हफ्ते बाद: अगर भूर्ण अत्यधिक विकृत हो तो मेडिकल बोर्ड की सलाह पर 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है। अगर गर्भवती महिला का जीवन बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी हो तो भी कभी भी गर्भपात कराया जा सकता है। 

इन देशों में बैन है गर्भपात!

सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स के मुताबिक, दुनियाभर 24 देशों में गर्भपात कराना गैरकानूनी है। इन देशों में मां बनने के योग्य करीब नौ करोड़ महिलाएं रहती हैं। जिन देशों में गर्भपात पर प्रतिबंध है उनमें सेनेगल, मॉरिटेनिया, मिस्र, लाओस, फिलीपींस, अल सल्वाडोर, होंडुरास, पोलैंड और माल्टा जैसे देश शामिल हैं। 

वहीं, करीब 50 देश ऐसे हैं जहां कई सख्त शर्तों के साथ गर्भपात की अनुमित होती है। लीबिया, इंडोनेशिया, ईरान, वेनेजुएला, नाइजीरिया जैसे देश गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को खतरा होने पर गर्भपात की अनुमति देते हैं। कई देश ऐसे हैं जहां दुष्कर्म, अनाचार या भ्रूण  के विकृत होने की स्थिति में गर्भपात की अनुमति मिलती है। 

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