प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी खास धार्मिक समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाते हुए व्हाट्सएप मैसेज फैलाना, प्रथम दृष्टया भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 353 (2) के तहत अपराध है। यह धारा धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी, नफरत और दुर्भावना को बढ़ावा देने से संबंधित है।
इसी टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता अफाक अहमद के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने से साफ इनकार कर दिया। अफाक पर आरोप है कि उन्होंने एक भड़काऊ व्हाट्सएप मैसेज कई लोगों को भेजा था।
याचिकाकर्ता अफाक अहमद ने कथित तौर पर कई लोगों को व्हाट्सएप पर एक मैसेज भेजा था। इस मैसेज में उन्होंने सीधे तौर पर धर्म का जिक्र तो नहीं किया, लेकिन एक छिपा हुआ और सूक्ष्म संदेश दिया था कि उनके भाई को एक झूठे मामले में इसलिए फंसाया गया है, क्योंकि वह एक विशेष धार्मिक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इसी मामले में उनके खिलाफ FIR दर्ज की गई थी, जिसे रद्द करवाने के लिए उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
अदालत की सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल ने कथित पोस्ट में केवल अपने भाई की गिरफ्तारी पर नाराजगी व्यक्त की थी। उनका मकसद किसी भी तरह से सार्वजनिक शांति, अमन-चैन या सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ना नहीं था। वहीं, दूसरी ओर राज्य सरकार के वकील ने इस याचिका का पुरजोर विरोध किया।
जस्टिस जे.जे. मुनीर और जस्टिस प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने 26 सितंबर को दिए अपने फैसले में इस मामले पर गहरी चिंता जताई। कोर्ट ने माना कि भले ही संदेश में सीधे तौर पर धर्म के बारे में कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन इसके "अनकहे शब्द" एक खास समुदाय के नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को भड़का सकते हैं।
अदालत ने आगे कहा, "इससे उस समुदाय के लोगों को यह लग सकता है कि उन्हें उनकी धार्मिक पहचान के कारण निशाना बनाया जा रहा है।"
कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया, "अगर यह मान भी लिया जाए कि इस व्हाट्सएप संदेश से किसी वर्ग या समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं हुईं, तब भी यह निश्चित रूप से एक ऐसा संदेश है जो अपने अनकहे शब्दों से धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी, नफरत और दुर्भावना की भावना पैदा कर सकता है।"
अदालत ने कहा कि इस तरह का संदेश, जिसमें एक धार्मिक समूह के सदस्यों को निशाना बनाने का आरोप लगाया गया हो, उसे कई व्यक्तियों को भेजना प्रथम दृष्टया भारतीय न्याय संहिता की धारा 353 (2) के तहत अपराध के दायरे में आता है।
इन्हीं टिप्पणियों के साथ, अदालत ने अफाक अहमद द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 226 (रिट याचिका) के तहत किसी भी राहत देने से इनकार करते हुए साफ कर दिया कि जांच में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।
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