1000 दिन से जेल में झारखंड का यह पत्रकार: साथियों ने CJI को पत्र लिखकर याद दिलाया— जमानत है नियम, जेल अपवाद!

उनके सहयोगियों का मानना है कि सच्चाई सामने लाने की उनकी प्रतिबद्धता ही उन्हें सरकार का निशाना बनाती है। पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) सरकार ने उन्हें परेशान किया, फिर एनआईए जैसी एजेंसियों ने उनके खिलाफ कार्रवाई की। यह मामला दिखाता है कि न सिर्फ बीजेपी-RSS बल्कि कई राज्य सरकारें भी जनविरोधी नीतियों को चुनौती देने वाले पत्रकारों को चुप कराने में लगी हैं।
रूपेश पिछले 2.5 साल से जेल में हैं और उन्हें जमानत नहीं मिल रही है.
रूपेश पिछले 2.5 साल से जेल में हैं और उन्हें जमानत नहीं मिल रही है. ( परिवार की फाइल फोटो)
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नई दिल्ली- झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह 11 अप्रैल 2025 को जेल में अपने 1000 दिन पूरे कर लेंगे। 17 जुलाई 2022 से वह कठोर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत जेल में बंद हैं और अभी तक उन्हें जमानत नहीं मिली। साथियों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनकी गिरफ्तारी के बाद चार और फर्जी माओवादी मामलों में उन्हें झूठा फंसाया गया। सरकार ने कई मुकदमे थोपकर यह सुनिश्चित किया कि वह लंबे समय तक जेल में रहें। यह सब उनकी साहसी पत्रकारिता को दबाने की कोशिश है, जिसके चलते प्रक्रिया ही उनकी सजा बन गई।

कार्यकर्ताओं ने CJI को एक खुला पत्र लिखा कि कोर्ट "जमानत नियम है, जेल अपवाद" की बात कहते हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के मामले में यह सिद्धांत भुला दिया जाता है। जमानत न देकर या सुनवाई टालकर उन्हें बिना ट्रायल के जेल में रखा जाता है।

रूपेश ने कई सालों तक झारखंड और मध्य भारत में मानवाधिकार उल्लंघन जैसे बलात्कार, गैरकानूनी गिरफ्तारी और फर्जी पुलिस हत्याओं को उजागर किया। वह कारखानों के प्रदूषण से लोगों के जीवन और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की खबरें भी लिखते थे। उनके सहयोगियों का मानना है कि सच्चाई सामने लाने की उनकी प्रतिबद्धता ही उन्हें सरकार का निशाना बनाती है। पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) सरकार ने उन्हें परेशान किया, फिर एनआईए जैसी एजेंसियों ने उनके खिलाफ कार्रवाई की। यह मामला दिखाता है कि न सिर्फ बीजेपी-RSS बल्कि कई राज्य सरकारें भी जनविरोधी नीतियों को चुनौती देने वाले पत्रकारों को चुप कराने में लगी हैं।

पत्र में कहा गया कि भारत में भ्रष्टाचार और सरकारी अत्याचार उजागर करने वाले पत्रकारों को अक्सर निशाना बनाया जाता है। इसके लिए पेगासस जैसे जासूसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर उनकी निगरानी की जाती है और झूठे सबूत प्लांट किए जाते हैं। रूपेश भी इसका शिकार बने। वह पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता थे, फिर भी 27 जनवरी 2025 को उनकी जमानत खारिज हुई।

इस खुले पत्र में लोकतांत्रिक संगठनों, पत्रकारों, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से अपील की गई कि वे रूपेश के समर्थन में एकजुट हों और उनकी तुरंत रिहाई की मांग करें। साथियों ने CJI से इस अन्याय पर ध्यान देने और हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है।

रूपेश कौन हैं?

रूपेश कुमार सिंह झारखंड के एक साहसी स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो आदिवासियों और गरीबों के हक, सरकारी दमन और कॉरपोरेट लूट को अपनी रिपोर्ट्स में उठाते रहे हैं। रामगढ़ जिले से 2014 से काम करते हुए उनकी खबरें हिंदी पत्रिकाओं और ऑनलाइन मंचों पर छपती रही हैं। 2019 में भी उन्हें माओवादी आरोपों में जेल में डाला गया था, लेकिन सबूत न होने से जमानत मिली।

सिंह को 17 जुलाई 2022 को झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के कांड्रा थाना अंतर्गत केस संख्या 67/21 में गिरफ्तार किया गया। उन पर सीपीआई (माओवादी) संगठन से जुड़े होने का आरोप लगाया गया, हालांकि मूल एफआईआर में उनका नाम नहीं था। गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने दावा किया कि मुख्य अभियुक्त से पूछताछ के दौरान कुछ एसएसडी कार्ड मिले, जिनमें रूपेश के खिलाफ कथित आपत्तिजनक सामग्री पाई गई। इसी आधार पर उनके खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गई और तब से वे न्यायिक हिरासत में हैं।

उनकी पत्नी इप्सा शताक्षी भी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ईप्सा ने बताया कि जनवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट में रूपेश की जमानत याचिका खारिज होने के बाद उनका डर और बढ़ गया है। उन्होंने कहा, "जब रूपेश को गिरफ्तार किया गया था, तब उन्हें पूछताछ के लिए उच्च अधिकारियों के पास ले जाया गया था। वहां पुलिसवालों ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा था- 'चाहे कपिल सिब्बल को लाओ या प्रशांत भूषण को, कोई तुम्हें बाहर नहीं निकाल सकता। ' आज उनकी यह चेतावनी सच होती दिख रही है।"

रूपेश पिछले 2.5 साल से जेल में हैं और उन्हें जमानत नहीं मिल रही है.
पत्रकार रूपेश सिंह की पत्नी की अपील- सत्ता की क्रूरता के खिलाफ आवाज उठाने वाले एक हो!
रूपेश पिछले 2.5 साल से जेल में हैं और उन्हें जमानत नहीं मिल रही है.
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