भोपाल। गैस त्रासदी के चार दशक बाद भोपाल की यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूका) फैक्ट्री परिसर में पड़े घातक कचरे के निष्पादन की प्रक्रिया तेज हो गई है। इस कचरे को मध्यप्रदेश के धार जिले के पीथमपुर स्थित रि-सस्टेनेबिलिटी (पूर्व में रामकी) कंपनी संयंत्र में जलाकर नष्ट किया जा रहा है। इसके लिए तीन चरणों में परीक्षण किया गया, जिनकी रिपोर्ट 27 मार्च को जबलपुर हाई कोर्ट में पेश की जाएगी। इसी रिपोर्ट के आधार पर 307 टन कचरे के निष्पादन के लिए अदालत से दिशा-निर्देश मांगे जाएंगे।
पीथमपुर संयंत्र में 27 फरवरी, 4 मार्च और 10 मार्च को तीन चरणों में कचरे को जलाने का परीक्षण किया गया। हर चरण में 10-10 टन कचरा जलाया गया, लेकिन दहन की गति अलग-अलग थी:
पहला चरण (27 फरवरी): 135 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से 74 घंटे तक कचरा जलाया गया।
दूसरा चरण (4 मार्च): 180 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से 55 घंटे तक कचरा जलाया गया।
तीसरा चरण (10 मार्च): 270 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से 37 घंटे तक कचरा जलाया गया।
कचरा जलाने के बाद जो राख बची, उसे संयंत्र परिसर में ही बनाए गए टीन शेड में पैक कर सुरक्षित रखा गया है। अभी यह तय नहीं हुआ है कि इस राख का अंतिम निष्पादन कैसे किया जाएगा। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB) के क्षेत्रीय अधिकारी एसएन द्विवेदी ने बताया कि तीनों चरणों के परीक्षण परिणामों की रिपोर्ट तैयार की जा रही है और इस पर बोर्ड की बैठक के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
भोपाल गैस त्रासदी के जहरीले कचरे के निष्पादन को लेकर 27 मार्च को जबलपुर हाई कोर्ट में सुनवाई होगी। इस दौरान तीनों परीक्षण की रिपोर्ट अदालत को सौंपी जाएगी। यदि परीक्षण संतोषजनक पाए जाते हैं, तो अदालत 307 टन कचरे के निष्पादन के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर सकती है।
2-3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था, जिससे हजारों लोग मारे गए और लाखों प्रभावित हुए। त्रासदी के चार दशक बाद भी फैक्ट्री परिसर में पड़ा जहरीला कचरा पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है। इसे जलाने और निष्पादन करने की प्रक्रिया में लगातार देरी होती रही है।
भोपाल गैस पीड़ित संगठनों और पर्यावरणविदों का कहना है कि जहरीले कचरे का निष्पादन सावधानीपूर्वक होना चाहिए। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने पहले भी पीथमपुर संयंत्र में कचरा जलाने पर सवाल उठाए थे और इसके प्रभावों का अध्ययन करने की मांग की थी। उनका कहना है कि यदि सही मानकों का पालन नहीं किया गया तो इससे जल, वायु और मिट्टी प्रदूषित हो सकते हैं।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.