भोपाल। हरियाली, तालाबों और स्वच्छ हवा के लिए पहचाना जाने वाला मध्य प्रदेश का भोपाल और उसका औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप आज गंभीर वायु प्रदूषण की चपेट में है। रविवार सुबह मंडीदीप का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 616 दर्ज किया गया, जो हवा की आपात श्रेणी मानी जाती है। इस स्तर की हवा में स्वस्थ व्यक्ति भी कुछ ही समय में सांस लेने में तकलीफ, जलन, चक्कर और घबराहट जैसी समस्याओं से ग्रस्त हो सकता है, जबकि अस्थमा और हृदय रोगियों के लिए यह सीधी जीवन–जोखिम की स्थिति है।
हैरानी की बात यह रही कि हालात संभालने में नाकाम रहने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PCB) ने पहले तो कुछ फैक्ट्रियों की चिमनियाँ बंद कराईं, लेकिन जब भीषण प्रदूषण की स्थिति बनी रही तो AQI डिस्प्ले बोर्ड ही बंद कर दिया गया। स्थानीय नागरिकों और विशेषज्ञों ने बोर्ड बंद करने को सच छिपाने का प्रयास करार दिया है।
जानिए क्या है? घटनाक्रम
रविवार सुबह मंडीदीप घने धुएं और रासायनिक धुंध की मोटी परत में लिपटा नजर आया। जो इलाके सामान्यत: हरियाली और साफ दृश्यता के लिए जाने जाते थे, वहां धुंध के कारण कुछ ही मीटर तक देख पाना मुश्किल हो गया। मॉर्निंग वॉक पर निकले बुजुर्गों, पेशेवरों और बच्चों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा। लोगों के मुताबिक सांस भारी हो रही थी, गले में जलन थी और आँखों में चुभन लगातार बनी हुई थी। कई स्थानीय निवासियों का कहना है कि वे ऐसी स्थिति पहली बार झेल रहे हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता गणेश शर्मा ने बताया कि जब उन्होंने सुबह घर से निकलकर खांसना शुरू किया तो खाँसी के साथ काला खखार आ रहा था, जिससे स्पष्ट है कि हवा में धूल, राख और कण बेहद खतरनाक स्तर तक मिल चुके हैं। व्यापारियों और स्थानीय नागरिकों ने सरकार द्वारा त्योहारी पटाखों पर पाबंदी लगाने को दिखावटी कदम बताते हुए कहा कि अगर असली समस्या फैक्ट्रियों से निकलते धुएं की है, तो उससे निपटने की इच्छाशक्ति क्यों नहीं दिखाई जाती।
यह स्थिति खतरनाक
विशेषज्ञों के अनुसार 500 से ऊपर का AQI वह स्थिति होती है जहाँ हवा को Hazardous यानी जानलेवा श्रेणी में वर्गीकृत किया जाता है। इस श्रेणी में फेफड़े तेजी से क्षतिग्रस्त होते हैं और शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति सामान्य स्तर पर बनी नहीं रह पाती। पर्यावरणविद डॉ. सुभाष सी. पांडे का कहना है कि मंडीदीप की लगातार चल रही औद्योगिक गतिविधियाँ अब प्रदूषण नियंत्रण कानूनों की सीमाओं को लांघ चुकी हैं। उनका कहना है कि यदि हवा में सुधार के लिए 24 से 48 घंटे के भीतर आपात कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दिनों में अस्पतालों में सांस और सीने से जुड़े मरीजों की संख्या कई गुना बढ़ सकती है।
भोपाल शहर में भी खराब हुई हवा
राजधानी भोपाल भी इससे अछूती नहीं है। रविवार को शहर के कई क्षेत्रों में AQI 160 से 180 के बीच दर्ज किया गया। कलेक्ट्रेट, टीटी नगर और पर्यावरण परिसर जैसे इलाकों में हवा मध्यम से खराब श्रेणी में पहुंच चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्तर भले ही मंडीदीप जितना भयावह न हो, लेकिन लगातार इसी हवा में रहने से लंबे समय में फेफड़ों की क्षमता प्रभावित होने लगती है और एलर्जी-अस्थमा जैसी बीमारियाँ बढ़ जाती हैं। नगर निगम ने 21 प्रदूषण हॉटस्पॉट की पहचान कर वहां प्रतिदिन पानी छिड़काव की योजना लागू की है, लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या सिर्फ पानी से जहरीला धुआं नियंत्रित हो सकता है?
इस पूरे मामले में PCB अधिकारियों ने सफाई देते हुए कहा है कि डिस्प्ले बोर्ड तकनीकी खराबी के कारण गलत रीडिंग दिखा रहा था, इसलिए उसे बंद किया गया। लेकिन स्थानीय लोगों और पर्यावरण विशेषज्ञों का तर्क है कि यदि AQI गलत था, तो फिर मंडीदीप धुएं की चादर में लिपटा क्यों था? हवा में जलन क्यों थी? और सांस लेने में दिक्कत क्यों हो रही थी?
विशेषज्ञों का मानना है कि जब हवा की गति कम होती है और वातावरण शुष्क रहता है, तो धूल और रसायनिक कण ऊपर नहीं जा पाते और जमीन के आसपास फंस जाते हैं, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाती है। लेकिन इसके बावजूद औद्योगिक उत्सर्जन पर कठोर नियंत्रण, नियमित निगरानी और रात के समय निरीक्षण जैसी कार्रवाइयाँ ही इस समस्या का वास्तविक समाधान हैं, न कि केवल पानी का छिड़काव।
साफ़ तौर पर इस प्रदूषण कांड ने तीन बड़े प्रश्न खड़े कर दिए हैं
- क्या औद्योगिक प्रदूषण पर सरकार और PCB की पकड़ ढीली हो चुकी है?
- क्या उद्योगों की लॉबिंग के कारण कड़े कदम टाले जा रहे हैं?
- और क्या जनता की सांसें अब मुनाफाखोर फैक्ट्रियों के भरोसे छोड़ दी गई हैं?
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