इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: छात्रों के अनुमान के आधार पर नहीं होगा यूपी बोर्ड की कॉपियों का पुनर्मूल्यांकन

जस्टिस विवेक सरन ने खारिज की याचिका, स्पष्ट किया- यूपी इंटरमीडिएट एक्ट 1921 में 'शक' या 'अनुमान' के आधार पर नंबर बढ़ाने का कोई नियम नहीं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट
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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने छात्रों के कॉपियों के पुनर्मूल्यांकन (Re-evaluation) को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि यूपी इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट, 1921 के तहत केवल इस आधार पर उत्तर पुस्तिकाओं का दोबारा मूल्यांकन नहीं किया जा सकता कि छात्र को लगता है कि उसे अधिक अंक मिलने चाहिए थे। कोर्ट ने कहा कि महज छात्र की धारणा या अनुमान के आधार पर री-इवैल्यूएशन का कोई प्रावधान नहीं है।

क्या था पूरा मामला?

यह मामला इंटरमीडिएट की छात्रा फायज कमर (Faaiz Qamar) से जुड़ा है। याचिकाकर्ता ने इंटरमीडिएट की परीक्षा दी थी, लेकिन वह अपने हिंदी और जीव विज्ञान (Biology) के अंकों से संतुष्ट नहीं थीं। इसके बाद उन्होंने स्क्रूटनी (Scrutiny) के लिए आवेदन किया। जब उन्होंने अपनी उत्तर पुस्तिकाएं देखीं, तो उन्हें पूरा यकीन था कि उन्हें इन विषयों में मिले नंबरों से ज्यादा अंक मिलने चाहिए थे।

इसी विश्वास के आधार पर, उन्होंने माध्यमिक शिक्षा परिषद, क्षेत्रीय कार्यालय, मेरठ के क्षेत्रीय सचिव के समक्ष एक अभ्यावेदन (Representation) प्रस्तुत किया। हालांकि, उनके इस अनुरोध को खारिज कर दिया गया। बोर्ड ने तर्क दिया कि यूपी इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट, 1921 के अध्याय 12, नियम 21 के तहत इस तरह के पुनर्मूल्यांकन की अनुमति नहीं दी जा सकती।

हाईकोर्ट में दलीलें और सुप्रीम कोर्ट का हवाला

बोर्ड द्वारा 9 सितंबर, 2025 को अपना आवेदन खारिज किए जाने के बाद, याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और एक रिट याचिका दायर की।

सुनवाई के दौरान, अदालत ने रण विजय सिंह और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में यह निर्धारित किया था कि स्क्रूटनी और पुनर्मूल्यांकन की अनुमति तभी दी जानी चाहिए जब राज्य के कानून या नियमों में इसका स्पष्ट प्रावधान हो। यदि नियमों में इसका उल्लेख नहीं है, तो अदालत केवल "दुर्लभ और असाधारण मामलों" में ही इसकी अनुमति दे सकती है।

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि जजों के पास विषय की विशेषज्ञता नहीं होती, इसलिए कोर्ट को स्वयं उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन या पुनर्मूल्यांकन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, यह माना जाना चाहिए कि आंसर की (Answer Key) सही है।

न्यायमूर्ति का फैसला

मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति विवेक सरन ने यूपी इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट, 1921 के अध्याय 12, नियम 21 का अवलोकन किया, जो उत्तर पुस्तिकाओं की स्क्रूटनी से संबंधित है।

न्यायमूर्ति सरन ने अपने आदेश में कहा, "अध्याय 12, नियम 21 के वैधानिक प्रावधानों को देखते हुए, केवल याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए इस अनुमान के आधार पर कि उसे कम अंक मिले हैं, उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन का आदेश नहीं दिया जा सकता।"

अदालत ने यह भी कहा कि सक्षम अधिकारी द्वारा 9 सितंबर, 2025 को पारित किए गए आदेश में कोई त्रुटि नहीं पाई गई है। तदनुसार, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने 15 दिसंबर के निर्णय में याचिकाकर्ता की रिट याचिका को खारिज कर दिया।

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