प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में, आगरा के 35 साल पुराने जातीय हिंसा के मामले में दोषी ठहराए गए 32 लोगों को जमानत दे दी है। निचली अदालत ने इसी साल मई में इन सभी को पांच साल की सजा सुनाई थी, जिसके बाद से वे जेल में थे।
न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने 28 अगस्त को दोषी जयदेव और 31 अन्य द्वारा दायर की गई आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला 1990 में आगरा जिले के कागारौल थाना क्षेत्र में हुई जातीय हिंसा से जुड़ा है। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, आगरा की एक अदालत ने इसी साल 28 मई को सभी आरोपियों को दोषी करार देते हुए पांच-पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी।
हाईकोर्ट में अपीलकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किलों को इस मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है। उन्होंने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए लगभग 27 गवाहों के बयानों में गंभीर विरोधाभास थे, जिन्हें निचली अदालत ने नजरअंदाज कर दिया। वकील ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने सबूतों का सही मूल्यांकन नहीं किया और गलत तरीके से दोषियों को सजा सुना दी।
अदालत को यह भी बताया गया कि ज्यादातर अपीलकर्ताओं की उम्र 65 वर्ष से अधिक है और वे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं। वकील ने इस बात पर जोर दिया कि मुकदमे की सुनवाई के दौरान सभी आरोपी जमानत पर थे और उन्होंने कभी भी अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया। वे 28 मई, 2025 से लगातार जेल में हैं। चूंकि निकट भविष्य में उनकी अपील पर अंतिम सुनवाई की कोई संभावना नहीं है, इसलिए अपील लंबित रहने तक उन्हें जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।
सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि अपीलकर्ताओं में से एक, 95 वर्षीय देवी सिंह (अपीलकर्ता संख्या 21), को अदालत पहले ही 4 अगस्त, 2025 के एक आदेश के तहत अल्पकालिक जमानत दे चुकी है।
सभी पक्षों को सुनने के बाद, अदालत ने कहा, "इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अपील के अंतिम निपटारे में कुछ समय लग सकता है, मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी किए बिना अपीलकर्ताओं को जमानत पर रिहा किया जाता है।"
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