सहारनपुर- उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले के रामपुर कला गांव का दलित और आदिवासी मोहल्ला पिछले एक साल से अधिक समय से प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार बना हुआ है।
यहां जलभराव की समस्या ने लोगों की नाक में दम कर रखा है, करीब 100 दलित और आदिवासी परिवारों की समस्याओं को लेकर किए गए प्रदर्शन और दर्ज कराई गईं शिकायतें प्रशासन के कानों तक नहीं पहुंच पाई हैं। जलभराव की गंभीर समस्या से जूझ रहे इस मोहल्ले के लोगों का कहना है कि उनकी आवाज को जानबूझकर नजरअंदाज किया जा रहा है, क्योंकि यह एक दलित और आदिवासी बस्ती है। ग्रामीणों ने सवाल उठाया है कि क्या दलित और आदिवासी बस्तियों की समस्याओं को सुनने का कोई अधिकारी नहीं बचा है?
गांव के पश्चिम और दक्षिण दिशा में बसी दलित बस्ती में पानी का निकास नहीं हो पा रहा है। पहले यह पानी गांव के खेतों में चला जाता था, लेकिन अब पास के खेतों के किसानों ने अपनी फसलों को बचाने के लिए जेसीबी से मिट्टी लगवाकर पानी का रास्ता रोक दिया है। इससे पानी बस्ती में ही भरने लगा है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर बस्ती से तालाब तक पाइप लाइन या सीमेंट की नाली बनवा दी जाए, तो पानी का निकास आसानी से हो सकता है। लेकिन ग्राम प्रधान और प्रशासनिक अधिकारियों ने अब तक इस ओर कोई कदम नहीं उठाया है।
द मूकनायक ने रहवासियों की समस्या को जानने का प्रयास किया.
जलभराव के कारण बस्ती में गंदे पानी का जमाव हो गया है, जिससे बदबू और मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। ग्रामीणों का कहना है कि पानी में भरे कीचड़ के कारण बच्चों को स्कूल जाने में दिक्कत होती है।
महिलाओं को सब्जी और राशन लेने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। 65 वर्षीय उषारानी कहती हैं, "हम महिलाओं को सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। पानी में चलना मुश्किल होता है, लेकिन घर का काम तो करना ही पड़ता है।"
जलजनित बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है। यहाँ रहने वाली गृहिणी संगीता देवी ने बताया कि डायरिया, उल्टी और बुखार जैसी बीमारियां आम हो गई हैं। लोकेश मौर्य, पूर्व ग्राम प्रधान कहते हैं, "जब पानी बहुत ज्यादा भर जाता है, तो हमें सबमर्सिबल पंप से पानी बाहर निकालना पड़ता है। लेकिन यह कोई स्थायी समाधान नहीं है।"
जलभराव ने ग्रामीणों के सामाजिक जीवन को भी प्रभावित किया है। सिंचाई विभाग से रिटायर हुए 70 वर्षीय राजपाल सिंह बताते हैं कि हाल ही में उनके परिवार में एक शादी हुई थी, लेकिन जलभराव के कारण बारात में केवल 50 लोग ही शामिल हो सके। उन्होंने कहा, "लोग सड़क पर खड़े नहीं हो सकते थे, इसलिए हमें मेहमानों की संख्या कम करनी पड़ी।"
विपिन कुमार सिंह, जो केंद्रीय रेलवे में क्लर्क हैं और वर्तमान में पुणे में तैनात हैं, कहते हैं, "मैं साल में तीन बार अपने गांव आता हूं, लेकिन हर बार यही समस्या देखने को मिलती है। यहाँ परिवारों को अपने बच्चे-बच्चियों के रिश्ते तय करने में भी समस्या आने लगी है. लोग अपनी बेटी इस मोहल्ले में देना नहीं चाहते हैं और बेटियों के ब्याह में मोहल्ले वासी बारातियों का स्वागत नहीं कर पाते हैं- लॉन्ग टर्म में समस्या बड़ा रूप लेने लगी है लेकिन अधिकारी हैं कि सुनते ही नहीं, अगर यहाँ उच्च जाति के लोग रहते तो ये समस्या कभी से खत्म हो चुकी होती, लेकिन हमारी शिकायतों पर प्रशासन ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया है।"
हाल ही में रविदास जयंती के मौके पर, प्रशासन ने लोगों की नाराजगी से बचने के लिए पंप लगाकर दो टैंकर पानी निकाला, लेकिन यह केवल एक अस्थायी समाधान था। ग्रामीणों का कहना है कि वे एक स्थायी समाधान चाहते हैं। ग्राम समाज की जमीन खाली पड़ी है, लेकिन उच्च जाति के हिंदुओं ने इस पर कब्जा कर रखा है और अधिकारी इस मामले में किसी कार्रवाई को अंजाम देने में असमर्थ हैं। भीम आर्मी के कार्यकर्ता प्रवीण खुराना का कहना है कि स्थायी समाधान यह है कि कॉलोनी से पाइपलाइन बिछाकर पानी को गांव के बाहर स्थित तालाब तक ले जाया जाए।
दलित और आदिवासी परिवारों की इस समस्या पर सुनवाई नहीं किये जाने की बात पर द मूकनायक ने सहारनपुर कलेक्टर को email और whatsapp के जरिये संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. डीएम से प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
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