ड्रोन से रासायनिक छिड़काव कर फसलें तबाह — तमिलनाडु में जातिवादी लोगों ने इस तरह ढाया दलित किसानों पर कहर

विपक्षी द्वारा किसानों की फसलें नष्ट कर 2 लाख रूपये का नुकसान किया गया, साथ ही पुलिस कारवाई से बचने के लिए महिला उत्पीड़न निवारण अधिनियम के तहत उनके विरुद्ध झूठी शिकायत भी की गई.
पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाने आये दलित किसान
पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाने आये दलित किसान ग्राफिक- आसिफ निसार/ द मूकनायक
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तिरुवन्नामलाई- जिले के अरुंगुनम गांव में जमीन के मालिकाना हक को लेकर चल रही जातिगत लड़ाई ने एक गंभीर रूप ले लिया है। यहां अनुसूचित जाति (एससी) के किसानों की फसलों को नष्ट करने के लिए जातिवादी लोगों ने ड्रोन का इस्तेमाल किया। इस हमले में किसानों को करीब 2 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। साथ ही मनबढों ने एससी किसानों पर झूठे आरोप भी लगाए हैं।

जमीन का यह टुकड़ा पंचमी या डिप्रेस्ड क्लास (डीसी) लैंड के तहत आता है, जिसे ब्रिटिश काल में दलित परिवारों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए आवंटित किया गया था।

हालांकि दशकों से चल रहे धोखाधड़ी पूर्ण जमीन हस्तांतरण और अफसरशाही की देरी के कारण यह मामला विवादित हो गया।

बाद में जांच पड़ताल के बाद सरकार द्वारा कागजों में जमीन दुबारा दलित परिवार को दे दी गई लेकिन ऑनलाइन बदलाव नहीं होने से रेड्डियार समुदाय के लोग अभी भी इसपर मालिकाना दावा कर रहे हैं।

हाल ही में इस विवाद ने एक गंभीर मोड़ तब आया, जब जातिवादी हिंदुओं ने ड्रोन के जरिए फसलों को नष्ट कर दिया और एससी किसानों पर झूठे मामले दर्ज कराए।

11 फरवरी को यह घटना हुई, जब विपक्षी हर्षवर्धिनी ने अपने आदमियों से ड्रोन के जरिए पंचमी जमीन पर उगाए गए काले चने (उड़द) और तिल की फसलों पर रासायनिक छिड़काव करवाया। फसलें कटाई के लिए तैयार थीं जो पूरी तरह से नष्ट हो गईं, जिससे किसानों को करीब 2 लाख रुपये का नुकसान हुआ।

प्रभावित किसानों में एम. सुकुमार, उनके भाई एम. तिलकराज और उनके चचेरे भाई वी. अन्नामलाई शामिल हैं। ये किसान पिछले छह महीनों से शांतिपूर्वक इस जमीन पर खेती कर रहे थे, जिसे जिला प्रशासन ने उन्हें वापस सौंपा था।

तिलकराज ने अपनी शिकायत में बताया कि उन्होंने खेती के लिए 55,000 रुपये का निवेश किया था, लेकिन कुछ ही मिनटों में उनकी मेहनत बर्बाद हो गई। उन्होंने यह भी बताया कि घटना से कुछ दिन पहले जब वे अपने खेतों में सिंचाई करने की कोशिश कर रहे थे, तो जातिगत हिंदुओं ने उन्हें धमकाया और गाली-गलौज की।

द मूकनायक ने प्रभावित किसानों से बात की जिन्होंने अपनी पीड़ा विस्तार से बताई। सुकुमार ने कहा, "हम अनुसूचित जाति समुदाय से हैं। सरकार ने हमारे दादा को अंगनम गांव में सर्वे नंबर 216/1, 216/2ए, 216/2बी, 216/3 के तहत पंचमी जमीन आवंटित की थी। दूसरे समुदाय के लोगों ने धोखे से कंप्यूटर सिस्टम में जमीन के रिकॉर्ड बदलकर इस जमीन पर कब्जा कर लिया। हमने इस मामले में चेय्यर के आरडीओ के पास शिकायत की। हमारी शिकायत के आधार पर दूसरे समुदाय के लोगों के नाम पर पंजीकृत पट्टा (जमीन का दस्तावेज) रद्द कर दिया गया।"

इसके बाद, परिवार पिछले छह महीनों से इस जमीन पर शांतिपूर्वक खेती कर रहा था जो विपक्षी लोगों को नागवार गुजरा। दलित किसान परिवार ने करीब 5.50 एकड़ जमीन पर उड़द, तिल और कपास की फसल उगाने के लिए 55,000 रुपये (10,000 रुपये प्रति एकड़ की दर से) का निवेश किया था। उड़द, कपास और तिल की फसलें पक चुकी थीं और कटाई के लिए तैयार थीं।

तिलकराज ने बताया, "मैंने 10 फरवरी को करीब 20 सेंट जमीन से उड़द की कटाई की और कुछ उपज को घर पर रख लिया, जबकि कुछ खेत में था। 11 फरवरी को सुबह करीब 11 बजे, मैं खेत में उड़द की फसल लेने गया, जो मैंने एक दिन पहले काटी थी। तभी नल्लूर गांव की रेड्डियार समुदाय की हर्षवर्धिनी, जो पहले से ही इस जमीन पर कब्जा करने की कोशिश कर रही थी, दो कारों और दोपहिया वाहनों पर सवार 15 से ज्यादा लोगों के साथ वहां पहुंची। उसने मेरी तरफ धमकी भरी नजर से देखा और अपने लोगों से कहा, 'एक भी पौधा जिंदा न छोड़ें, हर जगह खरपतवार नाशक छिड़क दो।'"

तिलकराज ने आगे कहा, "उन लोगों ने ड्रोन के जरिए खरपतवार नाशक छिड़का। यह देखकर मैं बहुत परेशान हो गया। मैंने उनसे गुहार लगाई कि वे रसायन न छिड़कें क्योंकि फसलें बर्बाद हो जाएंगी, लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी और छिड़काव जारी रखा। जब मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो उन्होंने मेरा रास्ता रोक दिया और धमकाया। उन्होंने अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए मुझे धमकी दी कि अगर मैं जमीन नहीं छोड़ूंगा, तो वे मुझे यहीं खत्म कर देंगे। रसायन छिड़काव के कारण उड़द, तिल और कपास की फसलें पूरी तरह से बर्बाद हो गईं। इससे मुझे करीब 2 लाख रुपये का नुकसान हुआ है।"

ड्रोन से खरपतवार नाशक छिड़क कर पकी फसलों को  खराब कर दिया गया.
ड्रोन से खरपतवार नाशक छिड़क कर पकी फसलों को खराब कर दिया गया.
 रसायन छिड़काव के कारण उड़द, तिल और कपास की फसलें पूरी तरह से बर्बाद हो गईं
रसायन छिड़काव के कारण उड़द, तिल और कपास की फसलें पूरी तरह से बर्बाद हो गईं

भाइयों की शिकायतों में और भी विवादों का जिक्र है। सुकुमार ने बताया कि 8 फरवरी को वह अपनी जमीन पर सिंचाई पंप लगाने के बाद वापस लौट रहे थे, तभी उन पर हमला हुआ। "डीजल इंजन लगाने के बाद मुझे रास्ते में हर्षवर्धिनी ने अपनी कार से रोक दिया," सुकुमार ने कहा। "उन्होंने धमकी भरे इशारे किए, जातिवादी गालियां दीं, और याक्को नाम के किसी व्यक्ति को फोन करके कहा, 'मैंने उन्हें यहां रोक लिया है।" उनके अनुसार, कोंडैयंगुप्पम गांव के वन्नियार समुदाय के रमेश जल्द ही मौके पर पहुंच गए। दोनों ने सुकुमार को जान से मारने की धमकी दी और कहा, "आज तो बच गए, लेकिन किसी दिन तुम्हें खत्म कर दूंगा।"

इसके अलावा, हर्षवर्धिनी ने एससी किसानों के खिलाफ महिला उत्पीड़न निवारण अधिनियम, 1998 के तहत झूठी शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन पर हमला करने और उत्पीड़न का आरोप लगाया गया। इस जवाबी कार्रवाई ने कानूनी लड़ाई को और जटिल बना दिया है और किसानों को और परेशानी में डाल दिया है। एससी किसानों ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कार्रवाई की मांग की है, लेकिन पुलिस ने अभी तक कोई गिरफ्तारी या जांच शुरू नहीं की है।

सुकुमार ने कहा, "अधिकारियों की ओर से कोई कार्रवाई न होने से जातिवादी लोग और भी हिम्मतवर हो गए हैं, जो हमें लगातार धमकी दे रहे हैं। हर्षवर्धिनी ने हमारे खिलाफ झूठा केस दर्ज किया है ताकि वह और उसके लोग हमारी फसलों को नष्ट करने के अपने अपराध से बच सकें।"

सुकुमार, जो खुद एक वकील भी हैं, ने कहा कि गांव में हमेशा से जातिगत भेदभाव रहा है; हालांकि, दलित लोग अक्सर अशिक्षा और कानूनी व राजनीतिक जागरूकता की कमी के कारण अपने अधिकारों से अनजान रहते हैं। "हमारे परिवार में हम पहली पीढ़ी के पढ़े-लिखे युवा हैं और हमने कानून की पढ़ाई की है। हम तब तक पीछे नहीं हटेंगे जब तक कि हमें न्याय नहीं मिलता और दोषियों को सजा नहीं मिलती," उन्होंने दृढ़ता से कहा।

सुकुमार सीपीआई(एम) के सक्रिय सदस्य भी हैं।

खराब हुई फसल
खराब हुई फसल

चेय्यर उप-कलेक्टर कर रहीं जांच

तहसीलदार और पुलिस स्टेशन में दर्ज शिकायत के बाद, जिला प्रशासन ने भी जांच शुरू की है। चेय्यर उप-कलेक्टर पल्लवी वर्मा की अगुवाई में एक टीम को एससी किसानों द्वारा उठाए गए फसल नष्ट करने के आरोपों की जांच का काम सौंपा गया है।

"हमें बताया गया है कि उप-कलेक्टर शिकायत की जांच करेंगी, लेकिन अभी तक वह हमारी जमीन पर नहीं आई हैं," सुकुमार ने कहा। इस बीच, एससी किसानों को कहा गया है कि मामला शांतिपूर्वक सुलझने से पहले वे जमीन पर खेती न करें, क्योंकि इससे कानून और व्यवस्था की समस्या हो सकती है।

जमीन विवाद और वर्तमान मालिकाना हक

यह विवाद अंगनम गांव की पंचमी जमीन को लेकर है, जो मूल रूप से सुकुमार के दादा, एस. चिन्नातम्बी की थी, लेकिन बाद में यह जमीन कई बार कथित उच्च जाति के बीच बदलती रही और अंत में एन. करुणाकरण ने इसे खरीद लिया, जिन्होंने इसे अपनी पत्नी हर्षवर्धिनी के नाम कर दिया।

अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चा के हस्तक्षेप के बाद चेय्यर राजस्व प्रभागीय अधिकारी ने जांच की और पाया कि आधिकारिक रिकॉर्ड में यह जमीन डिप्रेस्ड क्लास (डीसी) जमीन के रूप में दर्ज है - जो ऐतिहासिक रूप से ब्रिटिश सरकार द्वारा दलितों को सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए आवंटित की गई थी।

हालांकि जमीन बाद में दलित परिवार को वापस मिल गई और मैन्युअल पट्टा बदल दिया गया, लेकिन प्रक्रियात्मक देरी के कारण ऑनलाइन रिकॉर्ड अपडेट नहीं हुए, जिससे ऐसी स्थिति बन गई कि दोनों पक्ष जमीन पर मालिकाना हक का दावा कर रहे हैं।

यह विवाद अब जमीन के अधिकार से आगे बढ़ गया है, जहां दलितों ने एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की है, जबकि हर्षवर्धिनी ने तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निवारण अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की है।

पंचमी जमीन क्या है?

पंचमी जमीन तमिलनाडु में दलितों को विशेष रूप से आवंटित की गई जमीन है, जिसे 1892 में ब्रिटिश शासन के दौरान चिंगलपुट कलेक्टर जे.एच.ए. ट्रेमेनहेयर की सिफारिशों के बाद लागू किया गया था, ट्रेमेनहेयर ने दलितों की सामाजिक-आर्थिक कठिनाइयों को समझा था।

ब्रिटिश प्रशासन ने डिप्रेस्ड क्लासेज लैंड एक्ट को गवर्नमेंट ऑर्डर नंबर 1010/10-ए (रेवेन्यू) के तहत लागू किया, जिसके तहत 12 लाख एकड़ जमीन दलितों के लिए आवंटित की गई। यह जमीन अविक्रय थी, यानी इसे बेचा या पुनर्वर्गीकृत नहीं किया जा सकता था।

हालांकि, समय के साथ, गैर-दलित व्यक्तियों और संस्थाओं ने अवैध तरीकों से इस जमीन का कब्जा कर लिया। तमिलनाडु सरकार ने भी इनमें से कुछ जमीनों को विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) जैसी औद्योगिक और आर्थिक परियोजनाओं के लिए पुनः आवंटित कर दिया। कई सामाजिक आंदोलन इन जमीनों को दलित मालिकों को वापस दिलाने के लिए प्रयासरत हैं। 1991 के बाद से कई राज्य-स्तरीय समितियां बनाई गई हैं, जो अवैध कब्जों की जांच करने और इन्हें वापस पाने के उपाय सुझाने का काम कर रही हैं।

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