दलित छात्र सोमनाथ सूर्यवंशी कस्टोडियल डेथ: बॉम्बे हाईकोर्ट ने SIT गठित करने का दिया आदेश, खुलेंगे पुलिस यातना के राज?

दलित विधि छात्र सोमनाथ सूर्यवंशी की संदिग्ध हिरासत मौत मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, SIT गठित कर जांच का आदेश.
बॉम्बे हाईकोर्ट.
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औरंगाबाद बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक (DGP) को निर्देश दिया है कि दलित विधि छात्र सोमनाथ सूर्यवंशी की संदिग्ध हिरासत मृत्यु की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) एक सप्ताह के भीतर गठित किया जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति संजय ए. देशमुख की खंडपीठ ने मौखिक रूप से पारित किया।

अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार द्वारा पहले नियुक्त जांच समिति को भंग किया जाएगा और उससे जुड़े सभी दस्तावेज अब नई SIT को सौंपे जाएंगे।

बेंच ने कहा, “यदि याचिकाकर्ता विजयाबाई वेंकटा सूर्यवंशी को SIT के सदस्यों पर कोई आपत्ति हो तो वे अदालत के समक्ष दर्ज करा सकती हैं।”

याचिकाकर्ता का आरोप

यह अंतरिम आदेश सोमनाथ की 61 वर्षीय मां विजयाबाई सूर्यवंशी की याचिका पर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि दिसंबर 2024 में परभणी में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान उनके बेटे को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया और पुलिस हिरासत में निर्मम यातनाएं दी गईं। बाद में अधिकारियों ने उसकी मौत को हृदयाघात बताकर मामले को दबाने की कोशिश की।

सोमनाथ, लातूर निवासी और अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले एक फाइनल इयर के कानून छात्र थे। उन्हें परभणी में डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के पास संविधान की प्रतिकृति के अपमान के खिलाफ प्रदर्शन को कैमरे में रिकॉर्ड करते समय गिरफ्तार किया गया था।

FIR और सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही

4 जुलाई 2025 को हाईकोर्ट ने परभणी पुलिस को एक सप्ताह के भीतर FIR दर्ज करने का निर्देश दिया था। अदालत ने कहा था कि प्रथम दृष्टया हिरासत में यातना और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के सबूत मौजूद हैं। इसके बाद 30 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट के FIR दर्ज करने के आदेश को चुनौती दी गई थी।

हिरासत में यातना और मौत

याचिका में कहा गया कि सोमनाथ को संविधान की प्रति लेकर शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन रिकॉर्ड करने के बावजूद अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया। 12 दिसंबर 2024 को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने के बाद उन्हें पुलिस हिरासत में दो दिन सौंपा गया, जिसके दौरान उनकी बेरहमी से पिटाई की गई।

14 दिसंबर को दोबारा मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने पर उनकी स्थिति और बिगड़ गई। इसके बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा गया, जहां 15 दिसंबर की सुबह 6:49 बजे उनकी अचानक मौत हो गई। जहां पुलिस ने मौत की वजह सीने में दर्द बताया, वहीं सात सदस्यीय मेडिकल टीम की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में 24 गंभीर चोटों का ज़िक्र करते हुए मौत का कारण “एक से अधिक चोटों से उत्पन्न शॉक” बताया गया।

कथित सौदेबाजी की कोशिश

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि परभणी पहुंचने पर उन्हें पुलिस अधिकारी अशोक घोरबंद IG के पास ले गए, जहां उन्हें बताया गया कि परिवार के अन्य बेटों को पुलिस की नौकरी दिलाई जा सकती है और 50 लाख रुपये देकर शिकायत दर्ज न करने के लिए कहा गया। साथ ही उन्हें अंतिम संस्कार लातूर में करने की सलाह दी गई। लेकिन उन्होंने इन प्रस्तावों को ठुकरा दिया और बेटे की मौत को हिरासत हत्या के रूप में दर्ज करने की मांग की।

अदालत की सख्त टिप्पणी

हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 196 के तहत हुई न्यायिक जांच में गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन पाए गए और मौत को सीधे-सीधे हिरासत में पिटाई से जोड़ा गया।

अदालत ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, “जब किसी व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का हिरासत में रहते हुए उल्लंघन होता है, तो यह अदालत मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती।”

बेंच ने CID की देरी और आंतरिक जांच की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि CID ने पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टरों को दरकिनार कर JJ अस्पताल, मुंबई से दूसरी राय लेने की कोशिश की, जो जांच पर संदेह पैदा करता है।

SIT जांच का आदेश

अदालत ने 18 दिसंबर 2024 को दर्ज की गई याचिकाकर्ता की शिकायत के आधार पर FIR दर्ज करने और मामले की जांच SIT के तहत एक उप पुलिस अधीक्षक से कराने का निर्देश दिया। साथ ही CID अधिकारी डी.बी. तल्पे को अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने से रोकने वाला पूर्व आदेश अब निरस्त कर दिया गया।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता हितेंद्र गांधी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “सोमनाथ सूर्यवंशी की मौत के मामले में SIT गठित करने का आदेश न्याय की दिशा में बड़ा कदम है। हमें उम्मीद है कि SIT निष्पक्ष जांच कर सच्चाई सामने लाएगी और दोषियों को सज़ा मिलेगी।”

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