नई दिल्ली – 30 से अधिक छात्र संगठनों, सामाजिक संगठनों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने दलित कार्यकर्ता और वकील एडवोकेट रजत कल्सन की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए एक साझा बयान जारी किया है। बयान के मुताबिक, 30 जुलाई को हिसार के ऑटो मार्केट से उन्हें सादे कपड़ों में आए लोगों ने बिना किसी गिरफ्तारी वारंट या कानूनी दस्तावेज दिखाए जबरन उठा लिया।
बयान में कहा गया है कि यह गिरफ्तारी हिसार जिले के बुढ़ाना गांव की एक महिला की हत्या के मामले से जुड़ी बताई जा रही है। रजत कल्सन, जो एक जातीय उत्पीड़न और यौन हिंसा के मामले में पीड़िता की पैरवी कर रहे थे, पर आरोप है कि उन्होंने एक वीडियो साझा किया था जिसमें पीड़िता के परिवार और पुलिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे। हालांकि उन्हें इस मामले में अंतरिम जमानत मिल गई थी, लेकिन इसके अगले ही दिन उन पर पुलिस अधिकारियों से हाथापाई और बाधा डालने का एक और मामला दर्ज कर दिया गया।
बयान के अनुसार, पुलिस हिरासत के दौरान रजत कल्सन को वकीलों और परिवार से मिलने नहीं दिया गया और उन्हें प्रताड़ित किया गया साथ ही जातिवादी गालियों का सामना करना पड़ा। पिछले महीने पुलिस ने उनके घर पर तीन बार छापेमारी की थी और एक साल से उन पर लगातार नजर रखी जा रही थी। इसके अलावा, हरियाणा पुलिस ने उनका सोशल मीडिया अकाउंट भी बंद करवा दिया है।
रजत कल्सन पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कई धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है, जिनमें धारा 121(1), 132, 196, 62, 49, 115, 126, 353(1), 353(2), 356(2), 352, 351(3), और 3.5 शामिल हैं। इनमें से कई धाराएं गैर-जमानती हैं और इनमें 2 से 10 साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। संयुक्त बयान में आरोप लगाया गया है कि इन धाराओं को “सोच-समझकर रणनीतिक ढंग से लगाया गया है ताकि उनकी लंबी अवधि तक कैद सुनिश्चित हो सके।”
बयान में बताया गया कि कल्सन ने हरियाणा में कई बड़े जातीय उत्पीड़न मामलों में दलित पक्ष की पैरवी की है। इनमें मिर्चपुर हिंसा, हिसार गैंगरेप केस, दौलतपुर हमले का मामला, और भाटला सामाजिक बहिष्कार केस शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने 2018 में एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम में हुए कमजोर किए गए प्रावधानों के खिलाफ भी आंदोलन में भाग लिया था।
संयुक्त बयान के मुताबिक, दलित अधिकारों की लगातार वकालत करने के कारण ही वे राज्य की दमनकारी कार्रवाइयों का शिकार बने हैं।
बयान में इस गिरफ्तारी की तुलना भीमा-कोरेगांव मामले और सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान की गई गिरफ्तारियों से की गई है। इसमें कहा गया है कि यह घटनाक्रम उस व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है, जिसमें जाति वर्चस्व, सांप्रदायिकता और तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाने वालों को चुप कराने की कोशिश की जाती है।
बयान में कहा गया, “यह कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि उन तमाम कार्यकर्ताओं पर बढ़ते दमन का हिस्सा है जो साम्प्रदायिक नफरत, जातीय उत्पीड़न और फासीवादी शासन के खिलाफ आवाज उठाते हैं।”
संयुक्त बयान में एडवोकेट रजत कल्सन के खिलाफ लगे सभी मुकदमों को तुरंत वापस लेने की मांग की गई है और न्याय के लिए संघर्षरत अन्य कैदियों के साथ एकजुटता दिखाई गई है।
बयान पर हस्ताक्षर करने वाले 35 संगठनों में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA), जेएनयू छात्र संघ (JNUSU), स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI), बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (BAPSA) और फ्रैटर्निटी मूवमेंट शामिल हैं।
व्यक्तिगत हस्ताक्षरकर्ताओं में प्रो. अचिन वनाइक, एडवोकेट सुधा भारद्वाज, डॉ. आनंद तेलतुंबड़े, और महिला अधिकार कार्यकर्ता कल्याणी मेनन सेन जैसी हस्तियां भी शामिल हैं।
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