चेन्नई - राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) ने तमिलनाडु के मुख्य सचिव को एक नोटिस जारी किया है, जिसमें बाबा साहब अंबेडकर की मूर्ति को सलाखों में रखने को लेकर नीलम सांस्कृतिक केंद्र से जुड़े एक वालंटियर एस. वेंकटेशन की शिकायत पर जानकारी तलब की है ।
यह शिकायत एक बार फिर डॉ. बी.आर. अंबेडकर की मूर्तियों को लोहे के पिंजरों में बंद करने की व्यवस्था को उजागर करती है, जो तमिलनाडु में केवल उनके स्मारकों के साथ ही देखी जाती है। कार्यकर्ताओं का तर्क है कि यह भेदभाव का स्पष्ट प्रतीक है, क्योंकि महात्मा गांधी और पेरियार जैसे अन्य नेताओं की मूर्तियों को ऐसे बंधन में नहीं रखा जाता है।
सामजिक कार्यकर्ता वेंकटेशन शिवकुमार ने अंबेडकर की मूर्तियों के चारों ओर लगाए गए लोहे के पिंजरों को लेकर NCSC में एक औपचारिक शिकायत दर्ज की।
उन्होंने द मूकनायक से बात करते हुए कहा, "मैं पिछले सात सालों से नीलम सांस्कृतिक केंद्र के साथ काम कर रहा हूं, तमिलनाडु भर में यात्रा करके दलित समुदायों को शिक्षा और कानूनी सहायता प्रदान कर रहा हूं। इस दौरान मैंने देखा कि भारतीय संविधान के निर्माता बाबासाहेब अंबेडकर की एक मूर्ति के चारों ओर लोहे का पिंजरा लगा हुआ है। यह उन्हें कमतर आंकने का प्रयास लगता है। इसके पीछे अधिकारी सुरक्षा और कानून-व्यवस्था का हवाला देते हैं, लेकिन यह लोजिक अस्वीकार्य है। मूर्तियों को पिंजरों में बंद करने के बजाय, उनकी सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए।"
उनकी शिकायत पर NCSC ने संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत इस मामले की जांच करने का फैसला किया है। तमिलनाडु के मुख्य सचिव को भेजे गए नोटिस में आयोग ने 15 दिनों के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है।
अंबेडकर की मूर्तियों को पिंजरों में बंद करने का मुद्दा नया नहीं है।
'अनकास्ट' नामक पुस्तक के लेखक और वकील कार्ल मार्क्स सिद्धार्थ ने इस प्रथा के पीछे पांच मुख्य कारण बताए हैं:
1. समाज संकीर्ण और पिछड़ा हुआ है।
2. तमिलनाडु समाज की सामान्य इच्छा अमानवीय और अनैतिक है।
3. हमारे लोकतंत्र में भाईचारे को वास्तव में नहीं अपनाया गया है।
4. राजनीतिक एकता की कमी है।
5. राज्य में कानूनी जागरूकता अपर्याप्त है।
अंबेडकर की मूर्तियों पर डाक्यूमेंट्री बना चुकी सामजिक कार्यकर्ता और कंटेंट क्रिएटर विद्या सेन्थमिझसेल्वन ने भारत में इन मूर्तियों के इतिहास का पता लगाया है। पहली अंबेडकर मूर्ति 7 दिसंबर 1950 को कोल्हापुर में स्थापित की गई थी, जब बाबा साहब जीवित थे।
तमिलनाडु में, दलित आंदोलन के नेता ज्ञानशेखरन ने 1987 में मदुरै में पहली मूर्ति स्थापित करवाई। हालांकि, 1990 के दशक में जातिगत दंगों और कानून-व्यवस्था की समस्याओं के कारण इन मूर्तियों की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ गईं।
विद्या द्वारा निर्मित एक डॉक्यूमेंट्री में विदुथलाई चिरुथाईगल काची (VCK) के सांसद और वरिष्ठ दलित नेता थोल. थिरुमावलवन ने बताया कि उस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने विभिन्न जाति संघों के नेताओं की एक बैठक बुलाई थी। सरकार ने मूर्तियों से संबंधित नए नियम लागू किए, जिनमें आधिकारिक अनुमति, कांस्य निर्माण और मूर्ति स्थापित करने वालों द्वारा सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करना शामिल था। हालांकि, ये नियम सभी मूर्तियों पर लागू थे, लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि व्यवहार में केवल अंबेडकर की मूर्तियों को पिंजरों में बंद रखा जाता है।
कार्यकर्ताओं का मानना है कि अंबेडकर की मूर्तियों को सलाखों में कैद रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 का सीधा उल्लंघन है, जो जाति, धर्म, लिंग या निवास स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। विद्या कहती हैं, "हमारे संविधान के निर्माता बाबासाहेब अंबेडकर को ही मृत्यु के बाद भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। यह सबसे बड़ी विडंबना है।"
कार्ल मार्क्स सिद्धार्थ ने बताया कि तमिलनाडु भारत में अनुसूचित जाति (SC) की आबादी के मामले में चौथे स्थान पर है। राज्य की 20.1% आबादी SC और 1.1% ST समुदाय से है, यानी तमिलनाडु में हर पांचवां व्यक्ति अनुसूचित जाति से है। फिर भी, उनका कहना है कि तमिल समाज की सामान्य इच्छा अभी भी गहराई से भेदभावपूर्ण है। वे कहते हैं, "भाईचारा, जो लोकतंत्र की असली भावना है, यानी हर इंसान को समान मानना, हमारे सामाजिक ढांचे में गायब है।"
तिरुवल्लुर जिले के कडंबत्तूर में अंबेडकर मूर्ति स्थापित करने वाले अंबेडकरवादी कार्यकर्ता जयभीम शणमुगम अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहते हैं : "हर बार जब मैं एक पिंजरे में बंद अंबेडकर मूर्ति देखता हूं, तो मेरा दिल गुस्से से धड़कने लगता है। यह पिंजरा सुरक्षा के लिए नहीं है; यह समाज की मूर्खता और गहरी जड़ें जमाए जातिगत पूर्वाग्रहों को दर्शाता है।"
दलित अधिकार कार्यकर्ता और लेखिका शालिन मारिया लॉरेंस के मुताबिक, "अंबेडकर की मूर्तियां सिर्फ निर्जीव प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वंचित समुदायों की पहचान और विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती हैं।"
उन्होंने बताया कि राज्य में अंबेडकर की मूर्तियां बहुत कम हैं, खासकर दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में, जहां प्रभावशाली जाति समूह रहते हैं। इन इलाकों में अंबेडकर मूर्तियां स्थापित करने के प्रयास अक्सर विरोध या दंगों का कारण बनते हैं। इसके अलावा, मौजूदा मूर्तियां अक्सर प्रभावशाली जाति समूहों द्वारा बर्बरता का शिकार होती हैं।
"इन मूर्तियों को नियमित रूप से नुकसान पहुंचाया जाता है - बदमाश इन पर मल, गोबर और अन्य गंदगी फेंकते हैं। यह शत्रुता दलितों के प्रति गहरी नफरत को दर्शाती है, जिनके लिए अंबेडकर मुक्ति के प्रतीक हैं। सरकार को इन मूर्तियों को लोहे के पिंजरों में बंद करने के बजाय, उनकी सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने चाहिए।"
सामाजिक कार्यकर्ता और नेता तमिलनाडु सरकार से निर्णायक कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। सवाल यह है कि यदि केवल अंबेडकर की मूर्तियों को सुरक्षा के लिए पिंजरों की जरूरत है, तो यह राज्य के सामाजिक ताने-बाने के बारे में क्या संकेत देती है? यदि द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) वास्तव में बाबासाहेब अंबेडकर का सम्मान करता है, जैसा कि वह दावा करता है, तो क्या वह उनकी विरासत को पिंजरों से मुक्त करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि उन्हें वह सम्मान और सम्मान मिले जिसके वे हकदार हैं?
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23 दिसंबर 2024 को अहमदाबाद शहर में बाबा साहेब की मूर्ति को अज्ञात बदमाशों ने नुकसान पहुंचाया, जिसके बाद विरोध प्रदर्शन हुआ।
10 दिसंबर 2024 को महाराष्ट्र के परभणी रेलवे स्टेशन के बाहर एक ग्लास बॉक्स में रखे संविधान की प्रतिकृति को नुकसान पहुंचाया गया। इसके परिणाम स्वरूप व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन और हिंसा हुई.
12 सितंबर 2024 को, उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के फेफना पुलिस स्टेशन क्षेत्र के बहादुरपुर गांव में स्थापित डॉ. भीमराव अंबेडकर की मूर्ति को कुछ अज्ञात लोगों ने नुकसान पहुंचाया। इस घटना से नाराज बहुजन समाज पार्टी (BSP) के नेताओं ने विरोध प्रदर्शन किया और नारे लगाए, जिसके बाद वहां एक नई मूर्ति स्थापित की गई।
23 जनवरी 2024 को, कर्नाटक के कलबुर्गी शहर में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की मूर्ति का अपमान करने के बाद सहज और व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए।
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