कर्नाटक में दलित संगठनों का बड़ा आंदोलन: आंतरिक आरक्षण रिपोर्ट लागू करने तक अनिश्चितकालीन धरना

आयोग की सिफारिशों पर दलित समुदायों में मतभेद, लेकिन संगठनों का कहना—सरकार दबाव में न आए, तुरंत लागू करे रिपोर्ट।
Internal Reservation in Karnataka Nagamohan Das Commission Recommends Sub-Quota for Adi Karnataka, Adi Dravida, and Adi Andhra Castes.
आंतरिक आरक्षण पर नागमोहन दास आयोग की सिफारिश: आदिकर्नाटक, आदिद्रविड़ और आदि आंध्र को मिलेगा 1% उप-आरक्षण
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बेंगलुरु: अनुसूचित जातियों के लिए आंतरिक आरक्षण पर एच.एन. नागमोहन दास आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग तेज हो गई है। फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस फॉर शेड्यूल्ड कास्ट्स के बैनर तले कई दलित संगठन आज सोमवार सुबह से अनिश्चितकालीन धरना शुरू करेंगे और रिपोर्ट के तत्काल क्रियान्वयन की मांग करेंगे।

राज्य सरकार ने फिलहाल इस रिपोर्ट पर निर्णय अगली कैबिनेट बैठक तक टाल दिया है और मंत्रियों से कहा है कि वे सिफारिशों का अध्ययन करने के बाद ही चर्चा में भाग लें।

दलित समुदायों में बंटी राय

रिपोर्ट को लेकर दलित समुदायों में मतभेद सामने आए हैं। दलित राइट (होलेया) वर्ग ने अपनी जनसंख्या हिस्सेदारी घटने और आंतरिक आरक्षण के बंटवारे में खामियों का हवाला देते हुए नाराजगी जताई है। वहीं दलित लेफ्ट (मडिगा) और अन्य समूहों ने रिपोर्ट का स्वागत करते हुए इसके तत्काल क्रियान्वयन की मांग की है।

आयोग ने अनुसूचित जातियों के लिए मौजूदा 17% आरक्षण को इस प्रकार विभाजित करने का प्रस्ताव दिया है—

  • 6% – दलित लेफ्ट

  • 5% – दलित राइट

  • 4% – छुआछूत से मुक्त समूह

  • 1% – सूक्ष्म समुदाय

  • 1% – एडी, एके और एए के रूप में पहचान करने वाले समूह

दलित लेफ्ट के नेताओं का कहना है कि इस रिपोर्ट का हश्र ए.जे. सदाशिवा आयोग की रिपोर्ट जैसा नहीं होना चाहिए, जो पहले प्रस्तुत हुई थी लेकिन लागू नहीं हो पाई। उनका कहना है कि अगर कोई खामी है तो उसे सुधारकर भी रिपोर्ट लागू की जा सकती है।

एक नेता ने कहा, “हर समुदाय अपने हित की रक्षा करेगा—यह स्वाभाविक है। लेकिन सरकार को ऐसे दबाव में आकर क्रियान्वयन रोकना नहीं चाहिए।”

मुख्यमंत्री से निर्णायक रुख अपनाने की अपील

फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस फॉर शेड्यूल्ड कास्ट्स के संयोजक बसवराज कोउथल ने कहा कि जब तक सरकार रिपोर्ट लागू करने का आदेश जारी नहीं करती, आंदोलन वापस नहीं लिया जाएगा।

उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को स्पष्ट रुख अपनाना होगा। अगर वे हर जाति समूह से सहमति लेने की प्रक्रिया में लगे रहे तो यह कभी खत्म नहीं होगी। यह रिपोर्ट वैज्ञानिक सर्वे और ठोस आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई है। आंतरिक आरक्षण की हमारी मांग तीन दशक पुरानी है और इस पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर भी है। सर्वे भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार किया गया है, जिसमें सिर्फ जातिगत संख्या ही नहीं बल्कि पिछड़ेपन की गहराई को भी ध्यान में रखा गया है। जब तक सरकार इस रिपोर्ट को तार्किक निष्कर्ष तक नहीं ले जाती, हम धरनास्थल नहीं छोड़ेंगे।”

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