चेन्नई- मद्रास हाईकोर्ट ने कांचीपुरम के प्रिंसिपल जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 10 के तहत पारित एक्सटर्नमेंट (निर्वासन) के आदेश और उसी अधिनियम की धारा 4 के तहत डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस (DSP) को जेल भेजने के आदेश को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने इन आदेशों को "कानून की प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग" और "व्यक्तिगत मकसद से प्रेरित" बताया है।
यह मामला देश में अपनी तरह का पहला है, जहां किसी न्यायाधीश द्वारा एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के खिलाफ SC/ST एक्ट की धारा 4 का सीधे इस्तेमाल किया गया और उन्हें जेल भेज दिया गया।
मामला कांचीपुरम जिले के वालाजाबाद पुलिस स्टेशन की एक साधारण सी झड़प से शुरू हुआ। 25 जुलाई, 2025 को वालाजाबाद स्थित एक बेकरी में दो समूहों के बीच विवाद हुआ। एक समूह में कांचीपुरम के प्रिंसिपल जिला जज के तत्कालीन पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर (PSO) लोकेश्वरन रवि, उनके ससुर और अन्य लोग शामिल थे, जबकि दूसरे समूह में पार्वती और उनके परिवार के सदस्य थे। इस झड़प के बाद दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने दोनों तरफ की बात सुनकर और पार्टियों के बयान लेकर मामले को 28 जुलाई को ही सुलझा लिया और दोनों CSR (कंप्लेंट स्टेटस रिपोर्ट) बंद कर दी गईं।
हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं में आरोप लगाया गया कि जिला जज को लगता था कि उनके PSO लोकेश्वरन रवि ही उनके खिलाफ बार-बार अनाम शिकायतें भेज रहे हैं। इसके चलते जज ने पुलिस अधीक्षक (SP) से संपर्क कर अपना PSO बदलने की मांग की। यहां तक कि इस बातचीत के व्हाट्सएप मैसेज भी याचिका में पेश किए गए। जब जज को पता चला कि उनके PSO के खिलाफ दर्ज शिकायत बंद कर दी गई है, तो उन्होंने वालाजाबाद पुलिस के इंस्पेक्टर को फोन करके मौखिक रूप से बंद हुए CSR के आधार पर नया FIR दर्ज करने का आदेश दिया। आरोप है कि जज ने इंस्पेक्टर को धमकी दी कि अगर FIR दर्ज नहीं की गई, तो SC/ST एक्ट की धारा 4 के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
इस दबाव के बाद, 20 अगस्त, 2025 को दो नए FIR दर्ज किए गए। क्राइम नंबर 282/2025 पार्वती के पति मुरुगन के खिलाफ, जबकि क्राइम नंबर 283/2025 PSO लोकेश्वरन रवि और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दर्ज किया गया, जिसमें SC/ST एक्ट की धाराएं भी जोड़ी गईं।
4 सितंबर को कांचीपुरम के जिला जज ने SC/ST एक्ट की धारा 10 का इस्तेमाल करते हुए एक Suo Motu (अपनी मर्जी से) आदेश पारित किया। इस आदेश में उन्होंने क्राइम नंबर 283/2025 के सभी आरोपियों, जिनमें PSO लोकेश्वरन रवि भी शामिल हैं, को कांचीपुरम जिले की सीमा से बाहर रहने का आदेश दिया। जज ने अपने आदेश में कहा कि चूंकि पुलिस ने 15 दिनों तक कोई कार्रवाई नहीं की, इसलिए उन्हें यह आदेश पारित करना पड़ा। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस आदेश को गलत ठहराया।
इसके बाद की कार्रवाई और भी चौंकाने वाली थी। 8 सितंबर को जज ने DSP कांचीपुरम, एम. शंकर गणेश को कोर्ट में तलब किया और उनसे एक्सटर्नमेंट आदेश के पालन की जानकारी मांगी। आरोप है कि DSP को सुबह से शाम तक कोर्ट में बैठाया गया और शाम को अचानक जज ने SC/ST एक्ट की धारा 4 के तहत DSP के खिलाफ संज्ञान लेते हुए उन्हें ज्यूडिशियल कस्टडी में भेजने का आदेश दिया।
DSP को तुरंत जज की अपनी आधिकारिक कार से सब-जेल, कांचीपुरम भेज दिया गया। यह देश का शायद पहला मामला है, जहां किसी न्यायाधीश ने सीधे तौर पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के खिलाफ धारा 4 का इस्तेमाल करते हुए उन्हें जेल भेज दिया।
मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन. सतीश कुमार ने इन दोनों आदेशों पर गंभीर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि एक्सटर्नमेंट का आदेश पारित करने के लिए जरूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा, "SC/ST अधिनियम के तहत एक्सटर्नमेंट का आदेश केवल तभी पारित किया जा सकता है जब अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों पर वास्तव में अत्याचार हुआ हो और आरोपी द्वारा फिर से ऐसा अपराध किए जाने की आशंका हो... इस मामले में, दोनों पक्षों की शिकायतों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि पार्टियों के बीच बेकरी में कुछ खाने की चीजें खरीदते समय केवल झड़प हुई थी और स्वाभाविक रूप से, एक पक्ष दूसरे पक्ष की जाति तक नहीं जानता होगा।"
DSP की गिरफ्तारी पर हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले (State of GNCT of Delhi vs. Praveen Kumar, 2024) का हवाला दिया। हाईकोर्ट ने कहा, "SC/ST अधिनियम की धारा 4 के तहत किसी सार्वजनिक सेवक के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही शुरू करने के लिए, प्रशासनिक जांच की सिफारश एक अनिवार्य शर्त (sine qua non) है।"
कोर्ट ने आगे कहा, "मात्र इस आधार पर कि DSP या अन्य पुलिस अधिकारियों ने निर्वासन के नाम पर जज द्वारा जारी कुछ निर्देशों का तुरंत पालन नहीं किया, यह नहीं कहा जा सकता कि DSP या अन्य पुलिस अधिकारियों ने SC/ST अधिनियम की धारा 4(2) के तहत कोई अपराध किया है।"
हाईकोर्ट ने जिला जज के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों पर भी गौर किया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाओं में जज के खिलाफ "पूर्वग्रह, पक्षपात और सत्ता के दुरुपयोग" के जो गंभीर आरोप लगे हैं, उनकी स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। हाईकोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (विजिलेंस) को निर्देश दिया कि वह 25 जुलाई, 2025 की शिकायतों के दर्ज होने से लेकर जज के अंतिम आदेश तक की सभी घटनाओं, जज और पुलिस अधिकारियों के बीच हुई बातचीत और व्हाट्सएप संवाद की जांच करे। कोर्ट ने रिपोर्ट 23 सितंबर तक पेश करने का आदेश दिया।
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