राजस्थान में दलित दूल्हों का घोड़ी चढ़ना स्वीकार्य नहीं, जानिए क्या है कारण?

राजस्थान के झालावाड़ से फिर नया मामला आया सामने, पुलिस नहीं करती पुख्ता कार्रवाई।
प्रतीकात्मक चित्र
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जयपुर। राजस्थान में एक तरफ सामाजिक समानता, समरसता कायम करने की बात कही जा रही है। दूसरी तरफ दलितों का घोड़ी चढ़ना भी स्वीकार नहीं है।फिर चाहे दलित सीमा पर देश की सुरक्षा करने वाला सैनिक ही क्यों न हो। पुलिस सुरक्षा में दलित दूल्हों की निकासी राज्य में सामाजिक समानता की कथनी और करनी में अंतर बता रही है। ताजा मामला झालावाड़ जिले से सामने आया है। जहां एक बार फिर दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठा कर निकासी के लिए हथियारबंद पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया।

झालावाड़ जिले के भवानी मंडी थाना इलाके के गांव गुरड़िया भर्ता में बीती शुक्रवार रात पुलिस निगरानी में एक दलित दूल्हे की निकासी रस्म हुई। इस दौरान भवानी मंडी एवं मिश्रोली पुलिस थानों के अलावा झालावाड़ से हाथियार बंद अतिरिक्त पुलिस जाब्ता बुलाया गया। पुलिस की मौजूदगी में गिरिराज पुत्र मांगीलाल मेघवाल की घोड़ी पर बैठा कर निकासी हुई।

क्यों जरूरत पड़ी पुलिस बुलाने की?

शादी तो सभी की होती है। दूल्हे घोड़ी पर बैठ कर निकासी भी निकालते हैं। फिर गुरड़िया भर्ता के दलित परिवार को अपने पुत्र की शादी में पुलिस क्यों बुलानी पड़ी। इस पर दूल्हे के पिता मांगीलाल मेघवाल ने बताया कि दो वर्ष पूर्व 9 फरवरी 2022 को मेरे भतीजे कमलेश वर्मा की शादी हुई थी। कमलेश भारतीय सेना में कार्यरत है। इसके बावजूद असामाजिक तत्वों ने दूल्हे को घोड़ी पर नहीं बैठाने की चेतावनी दी थी। तब भी हमने निकासी के लिए पुलिस सुरक्षा मांगी थी। निकासी के दौरान पुलिसकर्मी मौजूद थे। इसके बावजूद असामाजिक तत्वों ने निकासी पर पथराव कर दिया था। पथराव में हमारे कई लोग घायल हुए थे। हमने पुलिस में मुकदमा भी दर्ज कराया था। पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया था। अब केस न्यायालय में विचाराधीन है। इसलिए बेटे की शादी में पुलिस सुरक्षा मांगी गई थी। मांगीलाल किसान है। उनका बेटा भवानी मंडी की एक धागा फैक्ट्री में काम करता है।

मांगीलाल ने आगे कहा कि "यहां के मनबढ़ लोग हमें छोटी जाति का मानते हैं। यह लोग खुद को राजपूत समाज का बताते हैं। यह नहीं चाहते हैं कि हमारे समाज के लोग उनके सामने घोड़ी पर बैठ कर निकले। यह हमें आज भी गुलाम बना कर रखना चाहते हैं। इस बार उनके बेटे की निकासी में हथियारबंद पुलिसकर्मी तैनात होने से असामाजिक तत्वों ने विरोध नहीं किया।"

दो वर्ष पूर्व एसएचओ को किया गया निलंबित

ग्रामीणों ने बताया कि सेना के जवान कमलेश मेघवाल की शादी के दौरान पथराव कर दलित दूल्हे के घोड़ी पर बैठने का विरोध किया था। इसके बाद गांव में तनाव के चलते तत्समय पुलिस अधीक्षक एवं जिला कलक्टर भी गांव में पहुंचे थे। पुलिस मौजूदगी में दलित दूल्हे की निकासी पर पथराव की घटना की जांच में स्थानीय पुलिस की गंभीर लापरवाही मानते हुए तत्कालीन भवानी मंडी थानाधिकारी महावीर सिंह यादव को सस्पेंड किया गया था।

घोड़ी चढ़ना नहीं स्वीकार!

गुरड़िया माना ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच मोहनलाल मेघवाल ने द मूकनायक को बताया कि हम दलित वर्ग से हैं। सुख से जीवन जीते हैं तो उच्च जाति के लोगों को एतराज होता है। इनकी नफरत का आलम यह है कि दलित आर्मी जवान तक को पसंद नहीं करते। ऐसे लोगों के खिलाफ पुलिस को सख्ती से कार्रवाई करना चाहिए। तब ही सामाजिक भेदभाव खत्म होगा। उन्होंने बताया कि दो वर्ष पूर्व दलित दूल्हे पर पथराव वाले केस में आरोपी राजीनामे के लिए दबाव बना रहे हैं।

डग क्षेत्र में 90 प्रतिशत से अधिक गांवों में होता है जातीय भेदभाव

भीम आर्मी से जुड़े कृष्ण मेहरा ने कहा कि झालावाड़ जिले का यह डग विधानसभा क्षेत्र है। इस इलाके के 90 प्रतिशत से अधिक गांवों में दलितों के साथ भेदभाव व अत्याचार की घटनाएं घटित होती है। शादी समारोह हो या फिर किसी महापुरुष की जयंती के कार्यक्रम, ऐसे आयोजनों से पूर्व दलितों को पुलिस सुरक्षा लेनी ही पड़ती है। यहां मनबढ़ लोग हमेशा दलितों के कार्यक्रम में व्यवधान डालने का प्रयास करते हैं। हमारे समाज के राजनेता भी समाज से दूरी बनाकर रखते हैं। हम चाहते हैं कि दलितों के साथ भेदभाव रोकने के लिए पहले से बने कानूनों की सख्ती से पालना करवाई जाए।

मेहरा कहते हैं कि यह इलाका सोंधिया राजपूत जाति बाहुल्य है। झालावाड़, कोटा, बारां सहित मध्यप्रदेश के कुछ भागों में इस समाज की अधिक संख्या होने से इस क्षेत्र को सोंधवाड़ भी कहा जाता है। यह ओबीसी में आते हैं। मेहरा ने कहा कि पहले से दलित समाज मजदूरी व खेती किसानी से जुड़ा रहा है। अशिक्षा भी थी। अब समाज के लोग पढ़ने लिखने लगे हैं। अच्छा जीवन जीने लगे हैं। बस इसी बात से मनबढ़ों को एतराज है।

जातिवादी मानसिकता से बाहर नहीं निकाल पा रहे

दलित अधिकार केन्द्र राजस्थान के अलवर जिला समन्वयक एडवोकेट शैलेश गौतम कहते हैं कि "राजस्थान में सदियों से जातिगत भेदभाव होता रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि यह लोग पहले सत्ता में रहे हैं। आज भी सत्ता में यही लोग हैं। सत्ता और प्रशासन में इनका प्रभाव है। यह लोग समानता की बात तो करते हैं, लेकिन जातिवादी मानसिकता से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। यह समझते हैं कि जो लोग सदियों से हमारी गुलामी करते थे अब घोड़ी पर कैसे बैठ सकते हैं?"

गौतम ने आगे कहा, "हम सामाजिक समानता का हर संभव प्रयास कर रहे हैं जो समुदाय दलितों से भेदभाव करते हैं उनके नेताओं के साथ हम लोग बैठक करते हैं। उन्हे कानूनी अधिकारों का हवाला देकर भेदभाव खत्म करने के लिए समझाइश करते हैं। समाज के नेताओं को इसके लिए आगे आना चाहिए। कई जगह भेदभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है, लेकिन कई जगह दिखाई नहीं देता, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से होता है। ऐसे समाजों के नेताओं को आगे आकर समानता का प्रयास करना चाहिए।"

राजपूत सभा का आया बयान

राजपूत सभा जयपुर महानगर अध्यक्ष गणपत सिंह राठौड़ से द मूकनायक ने बता की। राठौड़ ने कहा, "राजपूत समाज के लोग कभी किसी पर अत्याचार नहीं करते हैं। हां, कुछ असामाजिक तत्व जो खुद को राजपूत बताकर इस तरह की हरकत कर सकते हैं। क्षत्रिय रक्षा करता है। अत्याचार नहीं"। उन्होंने आगे कहा कि "गांव में भेदभाव की स्थिति को खत्म करने के लिए शिक्षा जरूरी है। सामाजिक असमानता का प्रमुख कारण अशिक्षा है। दलित दूल्हे के घोड़ी पर बैठने के दौरान विवाद में किस कम्युनिटी के लोग अधिक शामिल हैं इस पर भी गौर किया जाए।"

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