भारत की बेटी क्षमा बनी अमरीकी शहर में जातिगत भेदभाव पर अंकुश लगाने वाला चेहरा

'अमेरिका में जाति के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करने वाला सिएटल पहला शहर बना गया है। मंगलवार को सिएटल सिटी काउंसिल ने शहर के भेदभाव-विरोधी कानून में जाति को शामिल करने के पक्ष में मतदान किया'
भारत की बेटी क्षमा बनी अमरीकी शहर में जातिगत भेदभाव पर अंकुश लगाने वाला चेहरा

यह पहली बार है कि जब अमेरिका के किसी शहर ने जाति आधारित भेदभाव को दूर करने के खिलाफ कानून बनाया है। समाजवादी हिन्दू नेता और अर्थशास्त्री क्षमा सावंत ने गत माह इस आशय का प्रस्ताव सदन के सम्मुख रखा था जो मंगलवार को एक के मुकाबले छह वोटों से पारित हो गया। नए कानून के पास होने की घोषणा के साथ ही काउंसिल हाल "जय जय जय जयभीम" के नारों से गुंजायमान हो उठा।

सुखद आश्चर्य यह है कि जिस क्षमा सावंत ने इस ऐतिहासिक कानून को पारित करवाने में अगुवाई की है, वे स्वयं एक उच्च वर्ग से ताल्लुक रखती हैं। अध्यादेश पारित होने के बाद, सावंत ने अपनी खुशी को ट्वीट के जरिये जाहिर करते हुए कहा कि "जातिगत भेदभाव को रोकने की दिशा में ऐतिहासिक कदम, देश में पहला प्रतिबंध" साथ ही इस जीत को पूरे देश में फैलाने के लिए एक आंदोलन का आह्वान किया।

जाति व्यवस्था एक सामाजिक पदानुक्रम है जो व्यक्तियों को समाज में उनके परिवार की स्थिति के आधार पर जन्म के समय एक सामाजिक स्थिति प्रदान करती है। इसकी जड़ें हिंदू धर्म में हैं, जाति व्यवस्था दक्षिण एशिया में अन्य धर्मों के सदस्यों तक फैल गई है। सामाजिक व्यवस्था में सबसे निचली जाति, जिसे दलित या "अछूत" के रूप में जाना जाता है, ने सदियों से भारतीय समाज में गंभीर भेदभाव का सामना किया है। हालाँकि भारत ने दशकों पहले "अस्पृश्यता" की प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया था, लेकिन फिर भी जाति के आधार पर भेदभाव समाज में आज भी प्रचलित है और संयुक्त राज्य अमेरिका में दक्षिण एशियाई प्रवासी समुदाय के बीच भी इसका चलन है।

सामाजिक न्याय की बड़ी जीत

सिएटल नगर परिषद के अनुसार, वाशिंगटन राज्य में 150,000 से अधिक दक्षिण एशियाई रहते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण संख्या ग्रेटर सिएटल क्षेत्र में स्थित है। लोगों का मानना ​​है कि इस समुदाय के सदस्यों ने कार्यस्थल और शैक्षणिक संस्थानों में अपनी जाति के आधार पर भेदभाव का अनुभव किया है।

हालांकि, इस अध्यादेश का कुछ हिंदू अमेरिकी समूहों ने विरोध भी किया है। विरोधियों का तर्क है कि प्रतिबंध अनावश्यक है क्योंकि अमेरिकी कानून पहले से ही इस तरह के भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। एक खुले पत्र में, हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन ने कहा कि यद्यपि वे जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ थे, अध्यादेश गलत तरीके से पूरे समुदाय को उनके राष्ट्रीय मूल और वंश के आधार पर टारगेट करता है जो उचित नहीं है।

विरोध के बावजूद, सावंत अपने उद्देश्य और मिशन के लिए प्रतिबद्ध हैं। सावंत कहती हैं कि जातिगत भेदभाव केवल अन्य देशों में ही नहीं होता है। दक्षिण एशियाई अमेरिकी और अन्य अप्रवासी कामकाजी लोगों को अपने कार्यस्थलों में इसका सामना करना पड़ रहा है, जिसमें तकनीकी क्षेत्र, सिएटल और देश भर के शहरों में शामिल हैं।

जाति-आधारित भेदभाव पर सिएटल प्रतिबंध अमेरिकी विश्वविद्यालयों द्वारा हाल के वर्षों में किए गए समान कदमों का अनुसरण करता है। गौरतलब है कि 1948 में भारत में जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लगा दिया गया था लेकिन आज भी विशेष रूप से दलित समुदाय के लिए एक प्रचलित मुद्दा बना हुआ है। समाजवादियों का विश्वास है कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों के लिए अमेरिका दूसरा सबसे लोकप्रिय गंतव्य होने के साथ, सिएटल सिटी काउंसिल का ये अध्यादेश देश के भीतर जाति-आधारित भेदभाव को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

कौन हैं क्षमा सावंत?

क्षमा सावंत का जन्म पुणे में साल 1973 में हुआ था. वो मुंबई में पलीं-बढ़ीं और बाद में मुंबई विश्वविद्यालय से 1994 में कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की। सावंत शादी के बाद अमेरिका आ गईं और बाद में उन्होंने कंप्यूटर इंजीनियरिंग छोड़कर उत्तरी कैरोलीना स्टेट यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी डिग्री हासिल की । वह 2006 में सोशलिस्ट अल्टरनेट से जुड़ गईं और 2013 में काउंसिल वुमन बनीं।अमेरिका में जॉर्ज फ्लायड की हिरासत में मौत के बाद से पूरे देश में नस्लभेद के ख‍िलाफ आंदोलन तेज हो गए. इन्हीं आवाजों में Black Lives Matter नाम से शुरू हुए आंदोलन में भारत की बेटी क्षमा सावंत की आवाज भी गूंजी। वो आंदोलन के मुख्य चेहरों में से एक हैं।

भारत की बेटी क्षमा बनी अमरीकी शहर में जातिगत भेदभाव पर अंकुश लगाने वाला चेहरा
जातिगत भेदभाव एक सच्चाई, ऑस्ट्रेलिया मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में दी गई मान्यता

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