जातिगत भेदभाव एक सच्चाई, ऑस्ट्रेलिया मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में दी गई मान्यता

Caste discrimination
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ऑस्ट्रेलिया, साउथ एशियन देशों के बाद पहला देश बन गया है जो जातिगत भेदभाव को मान्यता देने जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया के मावनाधिकार आयोग ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट एंटी-रेसिज्म फ्रेमवर्क स्कोपिंग जारी की है, जिसमें जातिगत भेदभाव का उल्लेख किया गया है, वहीं मान्यता दी गई है।

मार्च 2021 में ऑस्ट्रेलिया के मानवाधिकार आयोग ने नेशनल एंटी रेसिज्म फ्रेमवर्क के नाम से एक प्रस्ताव रखा था, जिसमें भेदभाव के लिए लोगों की राय लेनी थी। इसके साथ ही कुछ नियम, लोगों की राय और लोगों द्वारा दिए गए प्रश्नों के जवाब के आधार पर भेदभाव को कम करने के लिए आगे की रणीति क्या होगी, इस पर भी चर्चा करने का प्रस्ताव था।

कोरोना के दौरान सबसे ज्यादा भेदभाव

जारी रिपोर्ट के अनुसार, हाल के कुछ वर्षों में लोगों ने भेदभाव का सबसे ज्यादा सामना किया है। उसमें कोरोना महामारी के दौरान लोगों को भेदभाव का सबसे ज्यादा सामना करना पड़ा है।

मानवाधिकार आयोग ने इस भेदभाव के बारे में और पता लगाने के लिए मार्च 2021 से अप्रैल 2022 तक कई संगठनों, आम जनता, सेवा प्रदाता, विशेषज्ञ, मानवाधिकार की अलग-अलग एजेंसियां और सरकार के साथ परामर्श किया। कुल मिलाकर 300 से अधिक संगठनों के साथ 100 से अधिक परामर्श (सुझाव) किए गए, जिसमें 164 सार्वजनिक सबमिशन में से एक तिहाई से अधिक व्यक्तिगत रुप से दिए गए हैं। अंत में यह पाया गया कि जातिगत भेदभाव भी एक तरह का भेदभाव है, जिससे लोगों को दो चार होना पड़ रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार जातिगत भेदभाव मौजूद है

रिपोर्ट के अनुसार, कमीशन ने लोगों से सुना की जाति के आधार पर भी लोगों के साथ भेदभाव हो सकता है। हालांकि इसका सटीक रुप समय और स्थान के साथ बदलते रहते हैं। जाति सदियों से चली आ रही एक प्रथा है, जिसमें जाति की भी उप जाति है। लोगों को उनके जाति के आधार पर ऊंचा-नीचा समझा जाता है।

कमीशन को लोगों ने बताया कि उन्हें रंग के आधार पर नहीं बल्कि जन्म के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। जातिवाद एक सामाजिक सतुंष्टि है। जो दक्षिण एशिया के देशों में आज भी मौजूद है। इसलिए इन देशों से ऑस्ट्रेलिया आने वाले लोगों के साथ उनकी जाति भी आती है।

लोगों ने कमीशन के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि देश से विदेश आने के बाद भी प्रतिदिन जातिगत भेदभाव को महसूस किया जा सकता है। यहां तक की निचली जाति से होने के कारण कई बार उन्हें किराए पर कमरा भी नहीं मिलता है। कामकाज में भी यह भेदभाव साफ दिखाई देता है।

भारतीय मूल के अंबेडकरवादी लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया

ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले दक्षिण एशिया के प्रवासियों ने इसका स्वागत किया है। भारतीय मूल के डॉ. वैभव गायकवाड़ ने इस निर्णय का स्वागत किया है। डॉ. गायकवाड अंबेडकर इंटनेशनल मिशन ऑस्ट्रेलिया के सदस्य हैं। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मैं ऑस्ट्रेलिया मानवाधिकार आयोग का शुक्रिया करता हूं, जिन्होंने जाति को भेदभाव का आधार माना है। यह तो फिलहाल एक शुरुआत है जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को उजागर करने की। जिसमें लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है।

वहीं दूसरी ओर भारतीय मूल के फिल्मकार विक्रांत किशोर से द मूकनायक ने इस बारे में बातचीत की। उन्होंने बताया कि, यह बहुत बड़ी खुशखबरी है हम लोगों के लिए कि ऑस्ट्रेलिया की सबसे प्रबुद्ध संस्था मानवाधिकार आयोग ने अपने नेशनल एंट्री रेसिज्म फ्रेमवर्क में जातिगत भेदभाव को जगह दी है। यह जातिगत आधार पर पिछड़े लोगों को लिए एक जीत की तरह है। जिन्हें सदियों से जाति के आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा है। साउथ एशिया देशों में होने वाले इस तरह का भेदभाव ऑस्ट्रेलिया में भी धीरे-धीरे अपने पैर पसार रहा है, जिसके कारण कई लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

मानवाधिकार आयोग द्वारा यह जो कदम उठाया गया है, जिसका भविष्य में एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि शोध में पाया गया है कि जाति के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव होता है। उम्मीद है कि इससे ऑस्ट्रेलिया के संस्थानों और शैक्षणिक संस्थानों में भी इस रिपोर्ट का सकारात्मक असर देखने को मिलेगा। जिससे की संस्थानों में डायवर्सिटी बनाई जा सके। उन्होंने बताया कि अंबेडकरवादी संस्थान लगातार लोगों में जातिगत भेदभाव को लेकर जागरूकता फैला रहे हैं।

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