पुणे: न्याय की तलाश में 150 किमी पैदल चलकर मुंबई पहुंची दलित परिवार की दर्दनाक कहानी

दस दिन बीत चुके हैं, लेकिन अब भी उन्हें न्याय नहीं मिला। वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मिलने की कोशिश कर रहे हैं।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक पैदल चलते हुए, परिवार ने जहाँ भी संभव हुआ, आराम किया. कभी स्कूल परिसर तो कभी सड़क किनारे और मंदिर में.
सूर्योदय से सूर्यास्त तक पैदल चलते हुए, परिवार ने जहाँ भी संभव हुआ, आराम किया. कभी स्कूल परिसर तो कभी सड़क किनारे और मंदिर में.फोटो साभार- इंडियन एक्सप्रेस
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महाराष्ट्र/पुणे: सिर्फ 70 रुपये और न्याय की उम्मीद के साथ, 35 वर्षीय रतन नावगिरे, उनकी दो बहनें और दो छोटे बच्चे पुणे से मुंबई तक 150 किमी से अधिक की दूरी पैदल तय कर पहुंचे। वे 7 फरवरी को अपने संघर्ष की कहानी को पोस्टरों पर लिखकर निकले और 13 फरवरी को आज़ाद मैदान पहुंचे, जहां वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मिलने की कोशिश कर रहे हैं। दस दिन बीत चुके हैं, लेकिन अब भी उन्हें न्याय नहीं मिला।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पिंपरी-चिंचवड़ के थेरगांव की निवासी रतन नावगिरे और उनका परिवार मातंग (मांग) समुदाय से हैं, जो ऐतिहासिक रूप से भेदभाव का शिकार रहा है। उनका संघर्ष दो साल पहले शुरू हुआ जब उनके 14 वर्षीय बेटे करण पर कथित रूप से उच्च जाति के लोगों ने हमला किया क्योंकि उसने जातिसूचक अपमान का जवाब दिया था।

तब से, परिवार को लगातार जातिगत गालियां, शारीरिक हमले और धमकियों का सामना करना पड़ा। रतन की बहन रेशमा चौहान (32) ने बताया, "मेरे भतीजे से कहा गया, 'तुम मांग लोग सुबह-सुबह अपना चेहरा क्यों दिखाते हो? वे बेवजह झगड़ा करते हैं, अब हमें अपनी जान का डर सता रहा है।"

परिवार ने पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम (PCMC) और पुलिस से कई बार शिकायत की, लेकिन कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई। इसके बजाय, उनका पानी का कनेक्शन छह महीने पहले बिना किसी पूर्व सूचना के काट दिया गया। पानी लाने के लिए जब वे बापूजी बुआ मंदिर के पास के सार्वजनिक टैंक गए, तो उन्हें और अधिक अपमान झेलना पड़ा। रेशमा ने बताया, "स्थानीय लोगों ने हमारे पानी के बर्तन में मरे हुए चूहे फेंक दिए।"

उन्होंने उत्पीड़न को रिकॉर्ड करने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए, लेकिन आरोपियों ने उसे ढंककर मेमोरी चिप निकाल दी। जब सोनम लोढ़े (23) ने अपने घर की ज़मीन पर सीवेज चैम्बर के अतिक्रमण का विरोध किया, तो उन्हें रातभर के लिए वाकाड पुलिस ने हिरासत में ले लिया। सोनम ने कहा, "हम दूसरी पीढ़ी से यहां रह रहे हैं, फिर भी हमसे घर के स्वामित्व के कागजात मांगे जा रहे हैं।"

नवंबर में, जब परिवार बाहर खाना बना रहा था, तो आरोपियों ने पुलिस को बुलाकर उन्हें प्रताड़ित किया। रतन ने कहा, "उन्होंने मेरी 10 वर्षीय बेटी नूतन को मारा और उसका फोन छीन लिया ताकि हमारे पास मौजूद सबूत मिटा सकें। हमारा मोबाइल अब भी उनके पास है।"

न्याय के लिए उन्होंने PCMC आयुक्त से मिलने की कोशिश की, लेकिन उन्हें वापस पुलिस थाने भेज दिया गया। वहां उन्हें सुबह 11 बजे से आधी रात तक हिरासत में रखा गया और कथित रूप से फर्श साफ़ करने के लिए मजबूर किया गया।

6 फरवरी को, जब कोई और रास्ता नहीं बचा, तो उन्होंने PCMC आयुक्त को एक लिखित शिकायत दी। जब वहां से भी कोई जवाब नहीं मिला, तो उन्होंने मुंबई के लिए पैदल मार्च करने का फैसला किया।

जब वे मुंबई की ओर बढ़े, तो पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की। रतन ने पूछा, "जब दो साल पहले यह सब शुरू हुआ, तब वे कहां थे?"

वे सूर्योदय से सूर्यास्त तक चलते रहे, जहां जगह मिली, वहीं सो गए—स्कूल परिसर, सड़क किनारे शरणस्थल और मंदिरों में। हालांकि, मंदिरों में भी उन्हें किसी ने घुसाने नहीं दिया। सोनम ने बताया, "कई मंदिरों में शरण मिली, लेकिन दो जगहों पर हमें अंदर नहीं जाने दिया गया।"

यात्रा के दौरान भी उन्हें उत्पीड़न झेलना पड़ा। रेशमा ने कहा, "एक आदमी ने रात में हमें परेशान करने की कोशिश की, तो हमने पुलिस को बुलाया। इसके बाद पुलिस ने हमें पनवेल के शेडुंग टोल प्लाजा पर रात बिताने के लिए भेज दिया।" थकान और डर के बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

मंकरुड पहुंचने पर कुछ अधिकारियों ने उनकी हालत देखी और उन्हें आज़ाद मैदान तक पहुंचाने का इंतज़ाम किया। यहां भी वे फूलों की माला बेचकर गुज़ारा कर रहे हैं।

मुंबई पहुंचे दस दिन हो चुके हैं, लेकिन अब तक कोई अधिकारी उनसे मिलने नहीं आया। वे रेलवे स्टेशनों पर रात बिताते हैं और दिनभर आज़ाद मैदान में विरोध प्रदर्शन करते हैं।

रतन ने कहा, "हम यहां इसलिए आए हैं क्योंकि हमारी जान को खतरा है। अगर सरकार ने हमारी सुनवाई नहीं की, तो हमारे पास जाने के लिए कोई जगह नहीं बची है। हमारी माँग बस इतनी है कि जिन्होंने हम पर हमला किया, उन्हें सज़ा मिले और जिन संस्थानों ने हमें असहाय छोड़ा, उनकी जवाबदेही तय की जाए। अगर हम झूठ बोल रहे होते, तो इतनी लंबी और जोखिमभरी यात्रा नहीं करते।"

मातंग/मांग समुदाय के जिला सचिव सनी दादर ने प्रशासन पर सवाल उठाए। उन्होंने पूछा, "पुलिस ने दो साल में केस दर्ज कर सम्मानजनक व्यवहार किया होता, तो यह स्थिति नहीं आती। सरकार महिलाओं के लिए लाड़की बहिन योजना जैसी योजनाओं की बात करती है, लेकिन दलित महिलाओं के लिए न्याय कहां है?"

कलवाड़ी पुलिस ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि रतन के बेटे ने गलती से पानी गिरा दिया था, जिसे उसने खुद साफ किया। लेकिन रतन और उनकी बहनें इस दावे को झूठा बताती हैं।

PCMC अधिकारियों ने दावा किया कि उनके घर का पानी कनेक्शन और शौचालय अवैध था। हालांकि, रतन ने वैध दस्तावेज दिखाने की बात कही और पूछा, "अगर यह अवैध था, तो पहले कनेक्शन क्यों दिया गया?"

G वार्ड के सहायक आयुक्त किशोर नानावरे ने कहा कि पानी का कनेक्शन 25 साल पहले एक स्थानीय पार्षद ने दिया था और शौचालय साझा क्षेत्र में बनाया गया था।

रतन और उनका परिवार अब कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहा है। अगर मुख्यमंत्री उनसे नहीं मिले, तो वे दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री से गुहार लगाएंगे। रेशमा ने कहा, "हमारे पास पैसे नहीं हैं, लेकिन हमारे पास सच है।"

उक्त रिपोर्ट मूल रूप से इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित की जा चुकी है.

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