राजस्थान के 13 जिलों में लागू होगी ईआरसीपी या केपीसी में परिवर्तित कर दो राज्यों में किया जाएगा विभाजित?

ईआरसीपी संयुक्त मोर्चा संयोजक जवान सिंह मोहचा ने सरकार से जवाब मांगा, उन्होंने कहा कि सरकार स्पष्ट करे ईआरसीपी 50 प्रतिशत या 75 प्रतिशत निर्भरता पर लागू होगी।
ईआरसीपी का नक्शा।
ईआरसीपी का नक्शा।
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जयपुर। केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) के क्रियान्वयन को हरी झंडी मिल गई। राजस्थान व मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने दिल्ली में बैठ कर केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत सहित दोनों राज्यों के जल योजनाओं से जुड़े अधिकारियों की मौजूदगी में समझौता पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। चंबल का पानी राजस्थान को देने पर अब मध्यप्रदेश सरकार को कोई आपत्ति नहीं होगी। वहीं, ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दी गई।

बीते पांच सालों मेें राजस्थान में कांग्रेस सरकार को ईआरसीपी के तहत राज्य को चंबल से पानी लाने पर भाजपा साशित मध्यप्रदेश सरकार एनओसी नहीं दे सकी, लेकिन राजस्थान में सत्ता परिवर्तन के साथ ही दोनो राज्यों में समझौता पत्र पर हस्ताक्षर हो गए। ईआरसीपी का श्रेय लेने के साथ ही भाजपाईयों ने जश्न भी मनाया, लेकिन इस जश्न के पीछे पूर्वी राजस्थान का किसान अभी भी आशंकित नजर आ रहे हैं। 'द मूकनायक' ने ईआरसीपी आंदोलन से जुड़े किसानों से इन्हीं आशंकाओं पर बात की।

चंबल नदी।
चंबल नदी।

गंगापुर सिटी जिले के मोहचा गांव के किसान जवान सिंह मोहचा ने द मूकनायक को बताया कि ईआरसीपी पर राजस्थान व मध्यप्रदेश सरकार के बीच समझौता हो गया है, लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि ईआरसीपी योजना 50 प्रतिशत निर्भरता पर स्वीकृत की जा रही है। पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के समय 2017-2018 में ईआरसीपी योजना बनी थी। इसमें राज्य के किसानों को 50 प्रतिशत निर्भरता के साथ खाका तैयार किया गया था।

किसान जवान सिंह ने कहा कि सरकार यह भी स्पष्ट करे कि उन्होंने ईआरसीपी योजना को ही राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया है या फिर ईआरसीपी (पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना) पीकेसी (पार्वती, कालीसिंध व चंबल) परियोजना में परिवर्तित कर दिया है। क्या पूर्व की तरह ईआरसीपी को 50 प्रतिशत निर्भरता पर जारी रखा जाएगा या फिर 75 प्रतिशत निर्भरता पर लागू किया जाएगा? यदि 75 प्रतिशत निर्भरता पर योजना लागू की गई तो किसानों को नुकसान होगा।उन्होंने कहा कि सरकार कह रही है कि 2.80 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित होगी, हम कैसे विश्वास करें। सरकार को समझौता पत्र सार्वजनिक करना चाहिए।

जवान सिंह ने कहा कि राजनीतिक लाभ लेने के लिए योजना लंबे समय तक अटकाई गई, जिससे किसानों का नुकसान हुआ। मेरे क्षेत्र मे पांचना बांध से नहर नहीं खोली जाती है। किसानों में आपस में टकराव की स्थिति बनी रहती है। चाहे कांग्रेस की सरकार रही या भाजपा की सरकार। किसी ने भी नहर खोलने की हिम्मत नहीं दिखाई। न्यायालय के आदेश भी बेअसर रहे।

उन्होंने आगे बताया कि इससे जलस्तर धरातल में चला गया। कुएँ भी सूख गए, हमारे क्षेत्र में खेत बंजर हो गए। मवेशी रखना किसानों ने बंद कर दिया। इस देरी का नुकसान यह हुआ कि किसानों को रोजगार के लिए घर छोड़ना पड़ रहा है, किसान पलायन को मजबूर हो गए। 2017 में बनी ईआरसीपी योजना 2023 में पूरी हो जानी थी, लेकिन नहीं हो सकी।

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ईआरसीपी संयुक्त मोर्चा संयोजक रहे किसान जवान सिंह कहते हैं कि हमारे पास कोई प्रूफ नहीं है, किस तरह का समझौता हुआ है। पचास प्रतिशत निर्भरता पर योजना लागू होती है तो हम इसका स्वागत करते हैं, नहीं तो इसका विरोध कर पचास प्रतिशत की मांग के साथ फिर से आंदोलन करेंगे।

पूर्वी राजस्थान में ईआरसीपी योजना को राष्ट्रीय परियोजन घोषित करने की मांग के साथ आंदोलन से जुड़ी रही आदिवासी महिला राजेश्वरी मीना ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि यह खुशी की बात है कि भाजपा सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित की है। दोनों राज्यों के मंत्री व केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री की मध्यस्तता में एमओयू हुआ। एनओसी दे दी गई है।

उन्होंने कहा कि पूर्वी राजस्थान के किसानों की आज भी एक ही मांग है। यदि नए सिरे से खाका बनाया जाता है तो 50 प्रतिशत निर्भरता पर बने, तभी किसानों का भला होगा। इससे कम पर हम स्वीकार नहीं करेंगे। केन्द्र सरकार पहले से इस योजना को 75 प्रतिशत निर्भरता पर लागू करने पर अड़ी हुई है। उन्होंने कहा कि यह लोग 2.80 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होने की घोषणा कर रहे हैं। इससे राजस्थान को तो नुकसान होगा। पुरानी डीपीआर में राजस्थान को 3510 एमसीएम पानी देने की बात कही गई है। अब सरकार ने इसी पानी को दो राज्यों में बांट दिया है। यह पूर्वी राजस्थान के किसानों के साथ धोखा है।

राजस्थान के कृषि एवं उद्यानिकी मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने एक वीडियो जारी कर कहा कि कोटा की डाउन स्ट्रीम से लेकर धोलपुर तक चंबल का पानी बहकर बेकार ही समुद्र में चला जाता है। यह पानी पूर्वी राजस्थान के जिलों में आए इसके लिए मैं 1989 से संघर्ष कर रहा हूं। वसुंधरा सरकार ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना बनाकर केन्द्र को भेजी थी। जो गहलोत सरकार में आगे नहीं बढ़ सकी। आज मोदी जी ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दिया। अब राजस्थान राज्य को 10 प्रतिशत राशि देना होगा, शेष 90 प्रतिशत राशि केन्द्र सरकार देगी। पहले जो बांध वंचित रहे उन्हें भी जोड़ा जएगा। 2.10 लाख अतिरिक्त भूमि सिंचित होगी। उद्योग, कोरीडोर व पीने के लिए पानी मिलेगा। उन्होंने कहा कि यह मेरा सपना था जो अब पूरा हो रहा है।

मध्यप्रदेश व राजस्थान के बीच ईआरसीपी योजना को लेकर समझौता पत्र पर हस्ताक्षर के बाद मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ईआरसीपी राजस्थान व मध्यप्रदेश की महत्वपूर्ण परियोजन है। इससे राजस्थान के 13 जिलों में 2.80 लाख हेक्टेयर सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध होगी। खेत-खलिहानों के साथ औद्योगिक और वन क्षेत्रों को बढ़ावा मिलेगा। वर्षां से चल रही पेयजल की समस्या का समाधान होगा।

सीएम शर्मा ने कहा कि हमने चुनावी संकल्प पत्र में प्रदेश वासियों से ईआरसीपी सहित जो वादे किए उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में मिलकर परिणति तक पहुंचाएंगे। ईआरसीपी से राजस्थान के झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर, भरतपुर, दौसा, अलवर, जयपुर, अजमेर व टोंक जिले को पानी की समस्या से राहत मिलेगी।

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41.13 प्रतिशत जनसंख्या को मिलेगा लाभ

पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के समय बनी ईआरसीपी योजना राज्य के 23.67 प्रतिशत क्षेत्र को कवर करते हुए 41.13 प्रतिशत जनसंख्या के लाभ को ध्यान में रखते हुए बनाई गई थी। योजना के तहत चंबल और उसकी सहायक नदी कुन्नू कुल, काली सिंध, पार्वती व मेज के अतिरिक्त पानी को बनास, मोरेल व बाणगंगा तथा गम्भीर नदी में डाला जाना प्रस्तावित है।

योजना के तहत दक्षिणी पूर्वी राजस्थान में 80 हजार हेक्टेयर में सिंचित सुधार होने के साथ ही 1268 किलोमीटर केनाल तंत्र विकसित किया जाना था। इससे 1723 एमसीएम पेयजल के लिए, 286.4 एमसीएम पानी उद्योग के लिए तथा 1500.4 एमसीएम पानी सिंचाई के लिए उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित था। अब देखना होगा कि हाल ही में हुए समझौते में ईआरसीपी योजना में सिंचाई क्षेत्र को बढ़ाया जाएगा, या फिर ईआरसीपी को केपीसी में परिवर्तित कर दो राज्यों में विभाजित किया जाएगा।

कांग्रेस नेता एवं प्रधान देवपाल मीना ने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस के समय राज्य सरकार द्वारा केंद्र को 11 बार पत्र लिखकर ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कराने के लिए मांग रखी। इसके बावजूद केंद्र सरकार द्वारा किसी भी तरह का जवाब नहीं मिला और जब राज्य सरकार द्वारा ईआरसीपी के लिए राज्य के संसाधनों से ही कार्ययोजना बनाई गई तो उसे रोकने के लिए केंद्र ने पत्र लिख दिया। ईआरसीपी सभी तकनीकी मापदंडो को पूर्ण करती है। इसके बावजूद राजनीतिक लाभ लेने के लिए इसे अटका कर किसानों की तरक्की को रोका गया।

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