बेरोजगारी दर 8.1 फीसदी पहुंची, सबसे ज्यादा मार ग्रामीण क्षेत्रों पर, सुनिए युवाओं ने क्या कहा?

भारी संख्या में पढ़े-लिखे युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों में कमी, विभागों में रिक्तियों के बावजूद भर्तियां न निकलना, ओवरएज जैसी समस्याओं के कारण चिंताजनक रूप से बढ़ती जा रही है बेरोजगारी.
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बेरोजगारीग्राफिक- द मूकनायक

नई दिल्ली: सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे में दावा किया गया है कि पिछले महीने 47 लाख लोगों का रोजगार छिन गया। इनमें सबसे अधिक लगभग 90 फीसदी हिस्सेदारी गांवों में रहने वाले लोगों की रही। गांवों में रोजगार छिनने की वजह से ग्रामीण श्रमबल का आकार 42.30 लाख घटकर अप्रैल में 28.88 करोड़ रह गया। पिछले पांच महीने में यह पहली बार है, जब ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार कम होकर 29 करोड़ के स्तर के नीचे आ गया।

इसके साथ ही देश में 15 साल और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों के बीच बेरोजगारी दर अप्रैल, 2024 में बढ़कर 8.1 फीसदी पर पहुंच गई। मार्च में यह 7.4 फीसदी रही थी। बेरोजगारी की सबसे ज्यादा मार ग्रामीण इलाकों पर पड़ी है। 

सीएमआईई के मुताबिक, लोकसभा चुनावों का भी रोजगार पर असर पड़ता है। 2019 में जब आम चुनाव हुए थे, तब भी श्रम बाजार के आंकड़ों में यह प्रवृत्ति और परिवर्तन देखा गया था। इस अप्रैल में भी रोजगार के मोर्चे पर नरमी दिख रही है, जिसकी आंशिक वजह लोकसभा चुनाव है।

बेरोजगार युवाओं के मुद्दे पर, दो विषयों - राजनीतिशास्त्र, शिक्षाशास्त्र - से दो मास्टर्स डिग्री धारक अवधेश यादव (29) बताते हैं कि गांव का युवा इतनी महंगाई में मेहनत करके अपनी पढ़ाई पूरी करता है. लेकिन जब वह प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठता है तब पता चलता है कि पेपर लीक हो गया. कई बार तो वैकेंसी ही नहीं आती है और वह ओवरएज (प्रतियोगी परीक्षाओं के मानक से अधिक उम्र) हो जाता है. 

अवधेश हाल ही में UPP के पेपर लीक का जिक्र करते हुए कहते हैं कि, “UPP का पेपर अब कब होगा इसका कोई अता-पता ही नहीं है. हमारे देश का दुर्भाग्य है कि युवा तैयारी करता है और फिर पेपर लीक हो जाता है. फिर उसका भविष्य बर्बाद और सारी मेहनत बेकार हो जाती है.”

अवधेश मानते हैं कि जब विभागों में वैकेंसी ही नहीं आएगी और युवा पढ़ाई करके घर बैठ रहे हैं तो बेरोजगारी का दर बढ़ेगा ही. “कोई ओवरएज होकर प्राइवेट नौकरी कर रहा है. युवा जब हर ओर से विवश हो जाता है तब वह थक हारकर मुंबई-दिल्ली या विदेशों में कमाने चला जाता है. अगर कहीं जाने की भी उसके पास व्यवस्था नहीं है तो वह छोटा-मोटा बिजनेस ही कर लेता है”, अवधेश यादव ने द मूकनायक को बताया. 

सर्वे में कहा गया है कि देश में बेरोजगारी दर पिछले 12 महीनों में 7.3 फीसदी से 9.4 फीसदी के बीच रही है। इस तरह, इस अवधि में बेरोजगारी दर औसतन 8.15 फीसदी रही है। अप्रैल में 8.1 फीसदी की बेरोजगारी दर हाल के महीनों के स्तर से ज्यादा है।

2016 के बाद पिछले नौ वर्षों में सात साल के दौरान अप्रैल में हर बार बेरोजगारी बढ़ी है। 

देश में श्रमबल का आकार मार्च के 43.38 करोड़ से घटकर अप्रैल में 42.91 करोड़ रह गया। इसकी प्रमुख वजह ग्रामीण श्रमबल में गिरावट है। हालांकि, शहरी इलाकों में स्थितियां मार्च के अनुरूप रहीं।

श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) घटकर 40.9 फीसदी और रोजगार मिलने की दर कम होकर 37.6 फीसदी रह गई।

सर्वे के अनुसार, ग्रामीण भारत में बेरोजगारी दर अप्रैल में बढ़कर 7.8 फीसदी पहुंच गई। मार्च में यह 7.1 फीसदी रही थी। वहीं, सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहे ग्रामीण बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 2.44 करोड़ पहुंच गई।

शहरी बेरोजगारी दर भी मार्च के 8.1 फीसदी से बढ़कर 8.7 फीसदी पहुंच गई। रोजगार मिलने की दर भी 36.4 फीसदी से मामूली कम होकर 36.2 फीसदी रह गई।

उत्तर प्रदेश के परिपेक्ष्य में युवा बताते हैं कि अच्छी पढ़ाई और डिग्रियों के बावजूद भी उन्हें घर बैठना पड़ता है. हर साल लाखों की संख्या में छात्र उच्च शिक्षण संस्थानों से पास होकर निकलते हैं लेकिन रोजगार के लिए उनके भविष्य की अनिश्चितता बनी रहती है.

बीटीसी और परास्नातक कर चुके पूर्वी यूपी के प्रदीप सोनी बताते हैं कि “यूपी में प्राथमिक शिक्षक भर्ती दिसंबर 2018 से अब तक नहीं आई है. और हर साल लगभग ढाई लाख प्रशिक्षु तैयार हो रहे हैं.” वह बताते हैं कि यह आंकड़ा सिर्फ शिक्षक की अहार्यता वाले प्राइमरी स्तर के प्रशिक्षुओं का है, जबकि जूनियर स्तर पर प्रशिक्षुओं की संख्या अभी बाकी है.

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