
भोपाल। मध्य प्रदेश में शराब कारोबार से जुड़ा एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसमें लाखों लीटर एक्सपायर्ड शराब की हेराफेरी की गई। सूत्रों और पड़ताल के मुताबिक, सितंबर 2024 में छत्तीसगढ़ से मध्यप्रदेश लाई गई 54090 पेटी यानी करीब साढ़े चार लाख लीटर एक्सपायर्ड शराब (बियर) का बड़ा हिस्सा बाजार में बेचा गया और बाद में उसे ‘नष्ट’ करने का दावा किया गया। आबकारी विभाग के बड़े अफ़सरों को इस शराब के आगमन की कोई जानकारी नहीं थी! इससे साफ जाहिर है की आबकारी विभाग के अधिकारियों और लिकर कंपनी ने साठगांठ कर बड़ी मात्रा में एक्सपयर्ड बियर, शराब की लाइसेंसी दुकानों से ग्राहकों को बेची गई!
सूत्रों के मुताबिक, रायसेन सेहतगंज स्थित सोम डिस्टलरी कंपनी ने इस एक्सपायर्ड बियर/ शराब को अपने आउटलेट्स और दुकानों से ग्राहकों को बेच दिया! इस पूरी प्रक्रिया को छुपाने के लिए आबकारी विभाग के अधिकारियों से मिलकर एक फर्जी नष्टीकरण किया गया।
सूत्रों के अनुसार डेढ़ घंटे में साढ़े चार लाख लीटर शराब नष्ट करने का दावा किया गया, जो व्यावहारिक रूप से असंभव है। इतनी मात्रा में शराब के नष्टीकरण में भारी मात्रा में मजदूरी लगने थे। जो नहीं लगाए गए। लेकिन वीडियो ग्राफी में कुछ ही पेटी पर बुलडोजर चलाया गया था.
आबकारी विभाग का कहना है कि यह नष्टीकरण सेहत गंज, जिला रायसेन स्थित सोम डिस्टलरी के प्लांट में किया गया। लेकिन पड़ताल में पता चला कि इतनी बड़ी मात्रा में शराब स्टोर करने की वहां जगह ही नहीं थी, जिससे यह साफ होता है कि नष्टीकरण केवल कागजों पर किया गया!
पहली दृष्टि में यह स्पष्ट है कि बिना प्रशासनिक मिलीभगत के इतनी बड़ी मात्रा में एक्सपयर्ड शराब की खेप राज्य में प्रवेश नहीं कर सकती थी। खासकर जब यह खेप छत्तीसगढ़ से मध्यप्रदेश के रायसेन तक पहुंची, तब रास्ते में आबकारी विभाग और पुलिस की चुप्पी संदेह पैदा करती है। एक्सपायर्ड बीयर का इस तरह से लाया जाना यह दर्शाता है कि न केवल कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य से भी खिलवाड़ किया गया। यह स्थिति बताती है कि शराब व्यापार में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है, जिसमें न केवल स्थानीय अधिकारी, बल्कि उच्च प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं।
इस घोटाले का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इतनी बड़ी खेप की जानकारी आबकारी कमिश्नर को नहीं थी या फिर इसे जानबूझकर नजरअंदाज किया गया। हालांकि आबकारी विभाग के कमिश्नर अभिजीत अग्रवाल ने द मूकनायक को बताया कि बियर एमपी से ही भेजी गई थी। लेकिन किसी कारण से बापस आई हमें जब जानकारी मिली तो हमने तुंरत शराब को नष्ट करने के निर्देश दे दिए।
सरकारी दस्तावेजों में बताया गया कि यह शराब 42094970 रुपये (करीब 4.21 करोड़) की थी, लेकिन पड़ताल में सामने आया कि इसकी वास्तविक कीमत करीब 13 करोड़ रुपये थी। यानी करीब 9 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया!
जब इस मामले पर आबकारी विभाग के कमिश्नर अभिजीत अग्रवाल से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा- "यह शराब छतीसगढ़ भेजी थी, वहां से बापस आई है।" लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि विभाग को सटीक जानकारी नहीं थी, तो आखिर इतनी बड़ी मात्रा में शराब प्रदेश में कैसे पहुंची और इसका नष्टीकरण में देरी क्यों हुई? दूसरा बड़ा सवाल यह कि आखिर इतने बड़े नष्टीकरण में मीडिया को सूचना क्यों नहीं दी गई?
4 महीने तक एक्सपायर्ड शराब का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला।
क्या सोम डिसलरी ने अपने आउटलेट्स के जरिए एक्सपायर्ड शराब ग्राहकों को बेची?
आनन-फानन में दस्तावेज तैयार कर नष्टीकरण दिखाया गया।
4.21 करोड़ की जगह 13 करोड़ की शराब की हेराफेरी हुई।
आबकारी विभाग की भूमिका इस घोटाले में सवालों के घेरे में है। यदि इतनी बड़ी मात्रा में अवैध शराब प्रदेश में आई और बेची गई, तो इसकी जिम्मेदारी तय क्यों नहीं हुई? अब तक किसी भी अधिकारी पर ठोस कार्रवाई न होने से विभाग की कार्यप्रणाली पर संदेह गहराता है। क्या यह गड़बड़ी अधिकारियों की मिलीभगत से हुई, या फिर उनकी लापरवाही के कारण? इन सवालों का जवाब दिया जाना चाहिए था?
इस मामले में आबकारी विशेषज्ञ पंकज भदौरिया ने द मूकनायक से कहा, "यदि प्रदेश में इतनी बड़ी मात्रा में अवैध शराब बेची गई, तो यह बिना अधिकारियों की जानकारी के संभव नहीं है। आबकारी विभाग की जवाबदेही तय किए बिना इस घोटाले की पूरी सच्चाई सामने नहीं आ सकती। निष्पक्ष जांच से ही पता चलेगा कि यह लापरवाही थी या भ्रष्टाचार।"
कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा ने विधानसभा में कथित शराब घोटाले को लेकर सवाल लगाया है। उन्होंने दावा किया कि आबकारी विभाग के अधिकारियों और एक शराब कंपनी के बीच साठगांठ कर बड़े पैमाने पर यह घोटाला किया गया। उन्होंने कहा, "हमें जानकारी मिली है कि विभाग के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से बड़ी मात्रा में शराब की गड़बड़ी हुई है। इस मुद्दे को हम विधानसभा में जोरदार तरीके से उठाएंगे।"
हीरालाल अलावा ने आगे कहा कि यह एक्सपायर्ड शराब थी, जिसे जहरीली भी कहा जा सकता है। उन्होंने आबकारी विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर सवाल उठाते हुए कहा, "प्रदेश की जनता को अमानक और एक्सपायर्ड शराब बेच दी गई, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। अब हम विभाग के जवाब का इंतजार कर रहे हैं और आगे कड़ी कार्रवाई की मांग करेंगे।"
एक्सपायर्ड शराब या बीयर पीने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं, चिकित्सकों के मुताबिक एक्सपायर्ड शराब पीने से फूड पॉइजनिंग, उल्टी, दस्त, सिरदर्द और पेट में जलन। समय के साथ इनमें बैक्टीरिया या फंगस विकसित हो सकते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। एक्सपायर्ड बीयर का कार्बोनेशन कम हो जाता है, जिससे इसका स्वाद और गंध बिगड़ सकती है, जबकि शराब में ऑक्सीडेशन के कारण उसका असर और गुणवत्ता बदल सकती है। हालांकि अत्यधिक पुरानी शराब टॉक्सिक हो सकती है।
सोम डिस्टलरी के मालिक जगदीश अरोड़ा और उनके भाई अजय अरोड़ा हैं। कंपनी के स्वामित्व में सार्वजनिक कंपनियाँ और खुदरा निवेशक 88.47% हिस्सेदारी रखते हैं, जबकि अन्य संस्थागत निवेशकों की हिस्सेदारी 11.47% है।
मध्यप्रदेश के रायसेन स्थित सोम डिस्टलरी पूर्व में भी कई विवादों में घिरी रही है। जून 2024 में, रायसेन जिले के सेहतगंज स्थित इस फैक्ट्री में बाल श्रम का गंभीर मामला सामने आया, जहां 59 नाबालिग बच्चों से शराब निर्माण का कार्य कराया जा रहा था। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की छापेमारी में यह खुलासा हुआ कि बच्चों से 15-15 घंटे तक काम लिया जाता था, जिससे उनके हाथों की त्वचा केमिकल्स के संपर्क में आकर गलने लगी थी। इस घटना के बाद, राज्य सरकार ने फैक्ट्री का लाइसेंस 20 दिनों के लिए निलंबित कर दिया और संबंधित अधिकारियों को निलंबित किया।
इसके अतिरिक्त, फरवरी 2024 में, सोम डिस्टलरी पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर शराब परिवहन करने का आरोप लगा था। यह मामला 2011 का था, जिसमें 1200 पेटी अंग्रेजी शराब का अवैध परिवहन किया गया था। इस प्रकरण में, देपालपुर की अदालत ने दिसंबर 2023 में आरोपियों को सजा सुनाई। इसके पश्चात, आबकारी आयुक्त ने कंपनी को नोटिस जारी कर लाइसेंस निरस्त करने की चेतावनी दी थी।
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