मध्य प्रदेश: भोपाल की इस बस्ती में ढाई महीने से बिजली नहीं, शौचालय और पानी के लिए संघर्ष कर रहे लोग- ग्राउंड रिपोर्ट

रेलवे की भूमि पर चला प्रशासन का बुलडोजर, बेघर लोगों की नई बस्ती में नहीं मूलभूत सुविधाएं।
बुलडोजर से मकानों को गिराने के बाद प्रभावितों में मूलभूत सुविधाओं का अकाल
बुलडोजर से मकानों को गिराने के बाद प्रभावितों में मूलभूत सुविधाओं का अकाल

भोपाल। 12 दिसंबर 2022 को राजधानी भोपाल के आरिफ नगर अन्नू नगर में भोपाल रेल मंडल ने रेलवे जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए अभियान शुरू किया। इस अभियान के तहत इंजीनियरिंग विभाग द्वारा पूरे मंडल में रेलवे लाइन के किनारे की भूमि का सर्वे कराकर रेलवे भूमि सीमा चिन्हित कर उसके अन्दर किए गए अतिक्रमण को बुल्डोजर चलाकर हटा दिया गए। आरिफ नगर के पास रेलवे की जमीन को मुक्त कराने के लिए रेलवे ने 100 से ज्यादा कच्चे-पक्के मकान जमीदोंज कर दिए। मकान को गिराते वक्त लोग रोते बिलखते रहे, लेकिन प्रशासन ने उनकी नहीं सुनी। मगर अब करीब ढाई महीने बाद भी लोगों को नई जगह नहीं मिल पा रही है। कुछ लोगों को नई जगह में झुग्गी बनाने के लिए जगह दी गई, लेकिन कुछ लोग आज भी टूटे मकानों पर पन्नी की तरपाल डालकर रहने को मजबूर है। द मूकनायक की टीम इस मामले में आरिफ नगर की बस्तियों में लोगों की आपबीती को जानने पहुंचीं। पढ़िए हमारी ये ग्राउंड रिपोर्ट..

अतिक्रमण हटाने के बाद प्रशासन ने प्रभावित लोगों को टोकन दिए। टोकन देकर उनसे वादा किया कि सरकार उन्हें दूसरी जगह रहने की व्यवस्था कर रही है। रेलवे की भूमि से हटाए गए कुछ लोगों को न्यू आरिफ नगर में जमीन दी गई कि वह अस्थाई रूप से उस जमीन पर रह सकें। विस्थापित हुए परिवारों ने खाली जमीन पर टीन शेड और तरपाल के छोटे-छोटे तंबू बना लिए। द मूकनायक ने जब न्यू आरिफ नगर में विस्थापित परिवारों की स्थिति को जाना तो वहां मौजूद लोगों ने बताया कि वहाँ पानी से लेकर शौचालय और बिजली तक कि व्यवस्था नहीं है। रोशनी से जगमगाता भोपाल शहर की यह बस्ती रात के अंधेरे में डूबी रहती है।

विस्थापित परिवारों के लिए स्थायी निवास का कोई इंतजाम नहीं
विस्थापित परिवारों के लिए स्थायी निवास का कोई इंतजाम नहीं

द मूकनायक की टीम बस्ती में जब विस्थापित परिवारों के बीच पहुंची तो महिलाएं रो पड़ी और शासन प्रशासन के उदासीन रवैये को बताते हुए अपनी पीड़ा सुनाने लगीं। स्थानीय निवासी नूरी ने बताया कि उनके घर पर रेलवे ने बुल्डोजर चला दिया। उन्हें गृहस्थी का समान तक हटाने का समय नहीं दिया गया। आधे से ज्यादा सामान टूटे घर के मलबे में बर्बाद हो गया। बचे हुए समान के साथ उन्हें न्यू आरिफ नगर में जगह मिली। नूरी के मुताबिक जब वह नई जगह पर आईं तो उन्हें अपने पति के साथ मिलकर टीनशेड का एक 10 बाई 10 का तंबू बनाया। नूरी के दो बच्चे हैं और पति मजदूर है। दिन भर की मजदूरी से सिर्फ वह दो समय का अपने परिवार का खाना खिला पाते हैं। नूरी ने बताया करीब ढाई महीने से बसाई गई बस्ती में शौचालय और बिजली तक नहीं है। उन्हें रात में टार्च, मोमबत्ती के सहारे, रात अंधेरे में काटनी पड़ती है।

"हमारे घरों को तोड़ कर हमें नई जगह देकर प्रशासन ने हमसे किनारा कर लिया है। अब उन्हें हमारी कोई फिक्र नहीं है। हम सिर्फ परेशान हैं। इस आशा में इंतजार कर रहे हैं कि हमें जल्दी ही बिजली मिल जाएगी। सरकार सिर्फ हमारे वोट लेना जानती है। सुविधाओं के नाम पर हमसे सिर्फ वादे किए जा रहें हैं", द मूकनायक को सलीम ने बताया।

स्थानीय निवासी
स्थानीय निवासी

न्यू आरिफ नगर के विस्थापित परिवारों के भी मकान रेलवे ने जमीदोंज कर दिए थे। यहाँ सैकड़ों की संख्या में मकानों पर बुल्डोजर चलाया गया था। हर तरफ मलबा बिखरा पड़ा था। आज यहाँ जो मलबा दिख रहा था, कल इसी जगह चहल-पहल हुआ करती थी। लोग अपनी गरीबी के साथ जीवन यापन कर रहे थे। इन्हीं टूटे मकानों और मलबे के बीच कुछ परिवार छोटे से तरपाल के तंबू में रह कर प्रशासन के द्वारा दिए गए टोकन पर अपने नम्बर आने का इंतजार कर रहे थे।

बुलडोजर से तोड़े गए मकान
बुलडोजर से तोड़े गए मकान

यहां रह रहे सलीम ने बताया कि उनके घर पर भी रेलवे प्रशासन का बुल्डोजर चला और मकान मलबे में बदल गया। सलीम ने कहा कि उन्हें प्रशासन ने एक टोकन दिया है, जिसमें नम्बर दिया है। उसी नम्बर का वह इंतजार कर रहे हैं कि कब उन्हें जगह मिलेगी। सलीम दिव्यांग हैं। उन्हें चलने में समस्या है। इसलिए उन्होंने कहीं और जाने की वजह घर के मलवे के ऊपर ही तरपाल का तंबू बना लिया है। उन्होंने कहा सरकारी अफसर शुरू-शुरू में आश्वासन दिया और चले गए। लेकिन समस्या का निराकरण नहीं हो पा रहा। "मेरे परिवार में कोई नहीं है। हमें सरकार ने यहां मरने के लिए छोड़ दिया है", सलीम ने कहा।

अपनी बदहाली के बारे में जानकारी देती महिला
अपनी बदहाली के बारे में जानकारी देती महिला

सबनम द मूकनायक को अपनी परेशानी बतातीं हैं कि वह सिर्फ अपनी बारी का इंतजार कर रहीं है कि कब उन्हें कोई नई जगह मिलेगी। फिलहाल सबनम अपने परिवार में 3 बच्चों के साथ तोड़े गए मकान पर प्लास्टिक तरपाल डालकर रह रहीं हैं। सबनम ने बताया कि बिजली और पानी तक व्यवस्था नहीं है। इसके अलावा कोई उन्हें अब देखने तक नहीं आ रहा की वह किस हाल में रह रहीं है। शुरुआत में सरकारी अफसर और नेता उनके बीच आए लेकिन अब उनके हालातों को देखने कोई नहीं आ रहा। अब बच्चों के पालन-पोषण को लेकर चिंता हैं। न उनके पास घर है और न हीं कोई रोजगार है।

बुलडोजर द्वारा गिराए गए मकान के मलबे
बुलडोजर द्वारा गिराए गए मकान के मलबे

द मूकनायक ने इस मामले में प्रशासन का पक्ष जानने के लिए भोपाल कलेक्टर अविनाश लवानिया और एडीएम दिलीप यादव को फोन किया लेकिन कई बार रिंग जाने के बाद अधिकारियों ने फोन नहीं उठाया। बता दें कि रेलवे के द्वारा खाली कराई गई भूमि पर एसडीएम और तहसीलदार ने सर्वे किया और लोगों को टोकन दिए लेकिन अभी करीब 170 लोगों को अस्थाई जगह तक नहीं मिल सकी है। लोग टूटे मकानों और मलवे पर ही तंबू बना कर रह रहे हैं।

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