भोपाल। देश के न्यायिक इतिहास में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो, जब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने खुले तौर पर स्वीकार किया हो कि उसने किसी जज के तबादले को लेकर केंद्र सरकार के आग्रह पर अपना निर्णय बदला है। बुधवार को जारी एक आधिकारिक बयान में कॉलेजियम ने बताया कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन के तबादले पर पुनर्विचार करते हुए उन्हें छत्तीसगढ़ के बजाय इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजने की सिफारिश की गई है। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम की यह बैठक 14 अक्टूबर 2025 को हुई थी।
कॉलेजियम के जारी सूचना में लिखा, “सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 14 अक्टूबर 2025 को केंद्र सरकार द्वारा मांगे गए पुनर्विचार पर निर्णय लिया कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन को अब छत्तीसगढ़ के बजाय इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित किया जाए।”
हालांकि कॉलेजियम ने पहले भी कभी-कभी तबादलों पर पुनर्विचार किया है, लेकिन यह अत्यंत दुर्लभ है कि उसने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया हो कि पुनर्विचार सरकार के आग्रह पर किया गया। इससे पहले, 25 अगस्त 2025 को कॉलेजियम ने जस्टिस श्रीधरन को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट भेजने की सिफारिश की थी। अगर वे छत्तीसगढ़ जाते, तो वे वहां दूसरे सबसे वरिष्ठ जज बनते और कॉलेजियम का हिस्सा भी होते।
अब इलाहाबाद भेजे जाने पर वे सीनियरिटी सूची में सातवें स्थान पर होंगे- यानी कॉलेजियम का हिस्सा नहीं बन पाएंगे। यह बदलाव ही सोशल मीडिया और न्यायिक गलियारों में सवालों का केंद्र बन गया है।
जस्टिस अतुल श्रीधरन को 2016 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में नियुक्त किया गया था। उन्होंने अपने वकालत के शुरुआती वर्षों में वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम के साथ पांच वर्ष तक प्रैक्टिस की, जिसके बाद इंदौर में स्वतंत्र रूप से कार्य शुरू किया।
2023 में उन्होंने स्वेच्छा से तबादले की मांग की, यह कहते हुए कि उनकी बेटी इंदौर में वकालत शुरू करने जा रही है। इसके बाद उन्हें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट भेजा गया था, जहाँ वे मानवाधिकार और स्वतंत्रता से जुड़े कई महत्वपूर्ण फैसले देने वाले जजों में शामिल हुए।
श्रीनगर में रहते हुए जस्टिस श्रीधरन ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत की गई कई हिरासतों को अवैध ठहराते हुए रद्द किया था। उन्होंने UAPA के मामलों में भी सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की कार्यवाहियों पर सख्त टिप्पणी की थी।
2024 में उन्होंने एक फैसले में कहा था कि, “सरकारें राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों का प्रयोग कर नागरिकों को मनोवैज्ञानिक रूप से दबाने का प्रयास कर रही हैं।”
मध्य प्रदेश लौटने के बाद वे एक बार फिर सुर्खियों में आए, जब उन्होंने राज्य के मंत्री विजय शाह के उस बयान पर स्वतः संज्ञान लिया, जिसमें शाह ने महिला सेना अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया था। विजय शाह ने कहा था कि “भारत ने पहलगाम हमले के जिम्मेदार लोगों को उनकी ही बिरादरी की बहन के जरिए सबक सिखाया।”
इस पर जस्टिस श्रीधरन की बेंच ने एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे।
दो दिन पहले, उन्होंने दमोह में एक ब्राह्मण युवक का पैर धुलवाकर OBC युवक को वही पानी पीने के लिए मजबूर करने की घटना पर स्वतः संज्ञान लेते हुए एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के तहत कठोर कार्रवाई के निर्देश दिए थे। इस आदेश के बाद ही उनका ट्रांसफर चर्चा में आया।
25 अगस्त को जहां उन्हें छत्तीसगढ़ भेजा गया था, वहीं 14 अक्टूबर को कॉलेजियम ने केंद्र के आग्रह पर यह निर्णय बदला। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जस्टिस श्रीधरन छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट गए होते, तो वे कॉलेजियम के सदस्य बन जाते- यानी भविष्य में न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादलों में उनकी राय मायने रखती। लेकिन अब इलाहाबाद में सीनियरिटी सातवें नंबर पर होने के कारण वे इस प्रक्रिया से बाहर रहेंगे।
अप्रैल 2025 में वे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश (Acting Chief Justice) बनने वाले थे। लेकिन इसके एक महीने पहले ही उनका तबादला मध्य प्रदेश कर दिया गया था। इससे पहले भी उन्होंने कई बार सरकार और एजेंसियों की कार्रवाइयों पर सवाल उठाए थे, जिससे वे सत्ता के निशाने पर आए।
जस्टिस श्रीधरन का यह ट्रांसफर सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा का विषय बन गया है। एक्स (ट्विटर) पर लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या यह दबाव में लिया गया निर्णय है?
यूजर रोहिताश माहुर ने लिखा- “मध्य प्रदेश के पैर धुलाकर पानी पीने वाले केस के जज साहब का ट्रांसफर, इन्हीं जज साहब ने आरोपियों पर NSA लगाई थी। छत्तीसगढ़ हुआ था तबादला, अब इलाहाबाद जाएंगे। कॉलेजियम ने पहले छत्तीसगढ़ भेजा था, पर केंद्र के आग्रह पर आदेश बदला।”
वहीं यूजर नरेंद्र कुमार शर्मा ने लिखा- “अब उनका भी हौसला टूटने लगा है। जस्टिस अतुल श्रीधरन ने जम्मू–कश्मीर हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनने का मौका छोड़कर इंसाफ का रास्ता चुना था।मोदी सत्ता को इंसाफ नहीं, हिसाब चाहिए।”
जजों की नियुक्ति और तबादलों को लेकर कॉलेजियम और केंद्र सरकार के बीच लंबे समय से मतभेद रहे हैं। केंद्र कई बार कॉलेजियम की सिफारिशों को लंबित रखता है, जबकि कॉलेजियम इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप मानता है। लेकिन इस बार कॉलेजियम का यह स्वीकार करना कि उसने केंद्र के आग्रह पर निर्णय बदला, न्यायपालिका की स्वायत्तता पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
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