हाथ से मैला ढोने के मामले में लागू हुए कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा ब्यौरा

सीवर सफाई के दौरान हुई मौत के आंकड़ों को भी पेश करने के आदेश
सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान पर बड़ा सवाल उठाया है, वहीं 2013 में 'हाथ से मैला उठाने की प्रथा' पर रोक लगाने वाले कानून का राज्यवार ब्यौरा मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि यह कानून आने के बाद किस स्तर तक इसपर काम किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने सीवर में उतरने से हुई मौतों का भी स्पष्ट ब्यौरा मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा — 2013 के कानून को लागू करने और मैला ढोने वाले लोगों के पुनर्वास के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? सर्वोच्च अदालत ने सूखे शौचालयों को खत्म करने और कितने सूखे शौचालय अभी चल रहे हैं? कैंट बोर्ड और रेलवे में सफाई कर्मचारियों की स्थितियों के बारे में राज्यवार सूचना भी मांगी है।

जानिए क्या है पूरा मामला?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में डॉ. बलराम सिंह नाम के व्यक्ति ने 2020 में जनहित याचिका दायर की थी। इस याचिका में सूखे शौचालय एक्ट, 1993 और मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने, मैला ढोने वाले लोगों के पुनर्वास के लिए कोर्ट से निर्देश जारी करने की मांग की गई है। मामले की सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि कोर्ट ने पहले भी मैला ढोने को लेकर निर्देश जारी किए हैं। ये भी पूछा है कि राज्यों में सीवेज की सफाई के लिए नगर पालिकाओं द्वारा कौन से उपकरण इस्तेमाल किए जाते हैं?

इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र से 2014 के फैसले "सफाई कर्मचारी आंदोलन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य" (2014) 11 एससीसी 224 में रिपोर्ट किए गए दिशा-निर्देशों के अनुपालन में उठाए गए कदमों की जानकारी देने के आदेश दिए है।

इन बिंदुओं पर मांगी जानकारी

(I) सूखे शौचालयों को हटाने/उठाने की दिशा में राज्यवार कदम उठाए गए।

(II) छावनी बोर्डों और रेलवे में शुष्क शौचालयों और सफाई कर्मचारियों की स्थिति।

(III) रेलवे और छावनी बोर्डों में सफाई कर्मचारियों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार यानी ठेकेदारों के माध्यम से या अन्यथा उठाए गए कदमों की जानकारी।

(IV) राज्यवार नगर निगम की स्थापना और उपकरणों की प्रकृति (साथ ही तकनीकी उपकरणों का विवरण), ऐसे निकायों द्वारा सीवेज सफाई को मशीनीकृत करने के लिए तैनात किया गया।

(V) सीवेज से होने वाली मौतों की वास्तविक समय पर नज़र रखने के लिए इंटरनेट आधारित समाधान विकसित करने की व्यवहार्यता और परिवारों के मुआवजे और पुनर्वास के लिए उपयुक्त सरकार सहित उनके संबंधित अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई।

जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने डॉ. बलराम सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उपरोक्त निर्देश जारी किए।

पूर्व के फैसले में कई सहूलियतें

सफाई कर्मचारी आंदोलन के फैसले में अदालत ने मैनुअल मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए, जिसमें नकद सहायता, उनके बच्चों के लिए छात्रवृत्ति, आवासीय भूखंडों का आवंटन, आजीविका कौशल में प्रशिक्षण और मासिक वजीफा, रियायती लोन आदि शामिल हैं। सीवर से होने वाली मौतों के मामलों में न्यूनतम मुआवजा निर्धारित किया और रेलवे को पटरियों पर हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने का निर्देश दिया।

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को छह सप्ताह के भीतर इन मुद्दों पर जानकारी वाला हलफनामा दायर करना है। मामले की अगली सुनवाई 12 अप्रैल, 2023 को की जाएगी। न्यायालय ने उत्तरदाताओं के रूप में राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भी जोड़ा है।

2013 के कानून के क्रियान्वयन पर

सर्वोच्च अदालत ने शुष्क शौचालय के उन्मूलन की दिशा में उठाए गए कदमों, शुष्क शौचालयों की स्थिति और छावनी बोर्ड तथा रेलवे में सफाई कर्मचारियों के बारे में राज्यवार ब्योरा मांगा है. याचिका में हाथ से मैला उठाने वालों की नियुक्ति और शुष्क शौचालय (प्रतिषेध) अधिनियम, 1993 तथा हाथ से मैला उठाने वाले के तौर पर नियुक्ति का प्रतिषेध एवं उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के प्रावधानों को लागू करने के लिए निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है।

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सीवेज सफाई में मशीनों के उपयोग पर सवाल

सर्वोच्च अदालत ने 22 फरवरी को जारी अपने आदेश में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सामने पहले ही यह विषय आया था और तब से लेकर अब तक अदालत ने कई निर्देश जारी किए थे। अदालत ने प्रतिवादी(केंद्र) से कहा कि वह इस अदालत के फैसलों के अनुपालन में उठाए गए कदमों, ‘हाथ से मैला उठाने वाले’ की परिभाषा के दायरे में आने वाले इस तरह के लोगों के पुनर्वास सहित 2013 के अधिनियम के क्रियान्वयन के सिलसिले में उठाए गए कदमों से अवगत कराए। अदालत ने ‘सीवेज’ की सफाई मशीन की सहायता से करने के लिए नगर निकायों द्वारा उपयोग किए जा रहे उपकरणों का राज्यवार ब्योरा मांगा है।

बेंच ने ‘सीवेज’ में उतरने से होने वाली मौतों के सही वक्त पर पता लगाने के लिए इंटरनेट आधाारित समाधान विकसित करने की व्यवहार्यता के बारे में भी ब्योरा मांगा है। साथ ही, मृतकों के परिवारों को मुआवजे की भुगतान एवं पुनर्वास के लिए संबद्ध प्राधिकारों द्वारा उठाये गये कदमों से भी अवगत कराने को कहा है। अदालत ने कहा कि भारत सरकार सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के जरिये एक हलफनामा दाखिल करे। केंद्रीय सचिव, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को इन पहलुओं पर विचार करने और एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है। इन निर्देशों का छह हफ्तों के अंदर अनुपालन किया जाए। बेच ने सब्जेक्ट में अदालत की मदद करने के लिए अधिवक्ता के. परमेश्वर को न्याय मित्र भी नियुक्त किया है और सुनवाई की अगली तारीख 12 अप्रैल निर्धारित की है।

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