लद्दाख में सोनम वांगचुक ने 21 दिन की भूख हड़ताल खत्म की, जानिए क्या होगी आगे की रणनीति ?

द मूकनायक को सोनम के साथी जगमंत बेलचोर बताते है कि "सोनम अभी अस्पताल में है और ठीक है। कल सोनम ने अपना 21 दिन का क्लाइमेट फास्ट खत्म किया है। इसका मतलब यह नहीं है कि मूवमेंट और क्लाइमेट फास्ट आगे जारी नहीं होगा। आज से हमारे महिला सहयोगी आगे इस क्लाइमेट फास्ट को शुरू करेंगे। 40 महीना 10 दिन अनशन करेंगे।
सोनम वांगचुक (फाइल फोटो)।
सोनम वांगचुक (फाइल फोटो)।
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नई दिल्ली। 2019 अगस्त में जब केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द किया, तो उससे लद्दाख में खुशी की लहर दौड़ गई थी. लेकिन उससे वहां जगी उम्मीदें अब टूट चुकी हैं। एक तो अब तक अलग राज्य का दर्जा मिलने से लोग निराश हुए हैं, साथ ही उनकी शिकायत है कि उनकी मूलभूत समस्याएं गुजरे साढ़े चार वर्ष में और गहरा गई हैं। इसी बीच चीनी सेना लद्दाख में घुस आई है, जिससे वहां के चरवाहों की मुसीबत बढ़ी है।

इन्हीं सब सभी सवालों को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक ने भूख हड़ताल शुरू की। जिन्होंने पर्यावरण को लेकर बहुत कार्य किए हैं। वांगचुक की शिकायत है कि केंद्र सरकार तो उनकी बात नहीं ही सुन रही है, मीडिया ने भी उन्हें और लद्दाख की समस्याओं को नजरअंदाज कर रखा है। नतीजतन वांगचुक को सोशल मीडिया पर अपनी भूख हड़ताल के बारे में वीडियो अपडेट डालने पड़े । उन्होंने क्लाइमेट फास्ट (जलवायु उपवास) नाम दिया है। उनके समर्थन में सैकड़ों लोग देखे जा रहे हैं। ये सभी लोग कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे सोते रहे हैं। अब सोनम वांगचुक ने अपनी 21 दिनों की भूख हड़ताल समाप्त कर दी।

सोनम वांगचुक के मुताबिक, 20 दिनों में लेह और कारगिल में लगभग 60 हजार लोग अनशन पर बैठे थे, जबकि लद्दाख की आबादी तीन लाख की है। उन्होंने कहा कि आप समझ सकते हैं कि संरक्षण और लोकतंत्र के इन मुद्दों पर लोगों में कितनी पीड़ा है। 

गत सोमवार (25 मार्च) को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जारी किए अपने वीडियो संदेश में सोनम वांगचुक ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान लद्दाख के लिए जारी किए गए बीजेपी के घोषणापत्र की तस्वीर भी साझा की। इसमें उन्होंने छठी अनुसूची के वादे को अंडरलाइन करते हुए दिखाया। उन्होंने लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद चुनाव 2020 के बीजेपी के घोषणापत्र को भी दिखाया, जिसमें छठी अनुसूची का वादा दिख रहा है।

क्या है छठी अनुसूची, जिसमें लद्दाख को शामिल करने की उठ रही मांग

केद्र सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था। राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था। लद्दाख को बिना विधायिका के केंद्र शासित प्रदेश के रूप में मान्यता दी गई है। नई दिल्ली और पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों की अपनी विधान सभाएं हैं। लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से ही स्थानीय संगठनों ने मांग उठाई थी कि लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत शामिल किया जाए। इस अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।

अगर छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल किया जाता है तो उसे स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषद (एडीसी और एआरसी) बनाने की अनुमति मिलेगी, जो जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन करने की शक्ति के साथ निर्वाचित निकाय होते हैं. इसमें वन प्रबंधन, कृषि, गांवों और कस्बों का प्रशासन, विरासत, विवाह, तलाक और सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे विषयों पर कानून बनाने की शक्ति शामिल होगी।

लद्दाख में ज्यादातर आबादी अनुसूचित जनजाति की है। एडीसी और एआरसी अनुसूचित जनजातियों के पक्षों के बीच विवादों का फैसला करने के लिए ग्राम परिषदों या अदालतों का भी गठन कर सकते हैं। उनकी ओर से बनाए गए कानूनों के प्रशासन की निगरानी के लिए अधिकारियों की नियुक्ति कर सकते हैं। ऐसे मामलों में जहां अपराध मौत की सजा या पांच साल से ज्यादा कारावास से दंडनीय हैं, राज्य के राज्यपाल एडीसी और एआरसी को देश के आपराधिक और नागरिक कानूनों के तहत मुकदमा चलाने की शक्ति प्रदान कर सकते हैं।

छठी अनुसूची एआरसी और एडीसी को भूमि राजस्व एकत्र करने, कर लगाने, धन उधार देने और व्यापार को रेगुलेट करने, अपने क्षेत्रों में खनिजों के निकास के लिए लाइसेंस या पट्टों से रॉयल्टी एकत्र करने और स्कूलों, बाजारों और सड़कों जैसी सार्वजनिक सुविधाएं स्थापित करने की शक्ति भी देती है.

वांगचुक ने देश को आगाह किया 

सोनम ने तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा है कि "लद्दाख और आस-पास के हिमालय के ग्लेशियर ग्रह का तीसरा ध्रुव हैं। इसमें ताजा पानी का सबसे बड़ा भंडार है और दो अरब लोगों को भोजन-पानी मिलता है। पिघलते ग्लेशियरों का सीधा असर इतनी बड़ी आबादी पर पड़ेगा। अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था। अब जम्मू-कश्मीर में तो विधानसभा होगी, लेकिन लद्दाख में सिर्फ स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषदें ही बनेंगी। वांगचुक अपने इलाके के लिए विधानसभा के गठन की मांग कर रहे हैं। वे लोकसभा में भी लद्दाख का प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहते हैं। पिछली वार्ता के दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन मांगों को ठुकरा दिया था। उसके बाद आंदोलन तेज हुआ है। बेहतर होगा कि लद्दाख की आवाज सुनी जाए, अन्यथा एक संवेदनशील इलाके में असंतोष पनपता रहेगा"।

वांगचुक ने बताया आगे का प्लान

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र के मशहूर सुधारक वांगचुक ने कहा कि भूख हड़ताल की समाप्ति वर्तमान आंदोलन के नए चरण की शुरुआत है। उन्होंने कहा, "हम (अपनी मांग के समर्थन में) अपना संघर्ष जारी रखेंगे। आंदोलनस्थल पर 10000 लोगों का एकत्र होना तथा पिछले 20 दिनों में 60000 से अधिक अन्य लोगों की भागीदारी लोगों की आकांक्षाओं का प्रमाण है।"

द मूकनायक को सोनम के साथी जगमंत बेलचोर, अपेक्स बॉडी ले एंड क्लाइमेट फास्ट ऑर्गेनाइजेशन के कोऑर्डिनेटर है। वह बताते हैं कि "सोनम अभी अस्पताल में है और ठीक है। कल सोनम ने अपना 21 दिन का क्लाइमेट फास्ट खोल दिया है। इसका मतलब यह नहीं है, कि मूवमेंट और क्लाइमेट फास्ट आगे जारी नहीं होगा। आज से हमारे महिला सहयोगी क्लाइमेट फास्ट को शुरू करेंगे। 40 महीना 10 दिन अनशन करेंगे। लद्दाख के और भी लोग इस अनशन के साथ जुड़ेंगे। सबके लिए यह जानना जरूरी है कि क्लाइमेट फास्ट खत्म नहीं हुआ है। यह आगे भी जारी रहेगा। इसके बाद हम बॉर्डर मार्च करेंगे। हम एक सीरीज तैयार कर रहे हैं। एक के बाद एक प्रोटेस्ट चलता रहेगा। जब तक हमारी मांगे पूरी नहीं होती है।"

सोनम वांगचुक (फाइल फोटो)।
Climate Fast : माइनस 17℃ में क्यों ‘आमरण अनशन’ पर बैठे हैं सोनम वांगचुक सहित लद्दाख के लोग?

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