Climate Fast : माइनस 17℃ में क्यों ‘आमरण अनशन’ पर बैठे हैं सोनम वांगचुक सहित लद्दाख के लोग?

इस अनशन के जरिए वांगचुक लद्दाख क्षेत्र को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने और उसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि लद्दाख में तथाकथित विकास के नाम पर तेजी से प्रकृति का विनाश किया जा रहा है। इससे क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर हो रहा है। यही कारण है कि उन्होंने अपने अनशन को जलवायु अनशन करार दिया है।
लेह में अनशन पर बैठे सोनम वांगचुक और स्थानीय लोग।
लेह में अनशन पर बैठे सोनम वांगचुक और स्थानीय लोग।सज्जाद हुसैन।

नई दिल्ली। यह समय सर्दियों के जाने और वसंत के आने का है। देश के ज्यादातर हिस्सों का मौसम सुहाना है। लेकिन हिमालय की गोद में बसे लेह और लद्दाख में इस समय तापमान माइनस 17-18℃ है। ऐसी हाड़ कंपा देने वाली ठंड में कुछ लोग लेह में खुले आसमान के नीचे अनशन पर बैठे हुए हैं। 21 दिनों तक चलने वाला यह अनशन 06 मार्च को शुरू हुआ और आज इसका सातवां दिन है।

इस आमरण अनशन को क्लाइमेट फ़ास्ट (Climate Fast) का नाम दिया गया है जिसका नेतृत्व इंजीनियर और क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक कर रहे हैं। जो एक इंजीनियर, इनोवेटर और क्लाइमेट एक्टिविस्ट हैं। वह शिक्षा सुधार में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं। वह स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ़ लद्दाख के संस्थापक-निदेशक हैं, जो लद्दाख में शिक्षा प्रणाली में सुधार पर केंद्रित है।

अनशन के 7वें दिन सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर सोनम वांगचुक ने कहा, "यह अनशन का 7वां दिन है। आज यहां लगभग 60 से ज्यादा लोग हैं, जिसमें महिलाएं हैं, विद्यार्थी हैं सब बाहर खुली हवा में अनशन पर बैठे हुए हैं।" मौसम के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि आज यहां का तापमान माइनस 3℃ है। मैं आज अनशन के 7वें दिन भी बहुत अच्छे से हूं। आगे उन्होंने कहा - "यह जो जद्दोजहद हम कर रहे हैं वो सिर्फ लद्दाख की नहीं है, ये भारत के आदर्शों की लड़ाई है, सत्यमेव जयते की लड़ाई है।"

लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य बनाने की मांग

इस अनशन के जरिए वांगचुक लद्दाख क्षेत्र को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने और उसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि लद्दाख में तथाकथित विकास के नाम पर तेजी से प्रकृति का विनाश किया जा रहा है। इससे क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर हो रहा है। यही कारण है कि उन्होंने अपने अनशन को जलवायु अनशन करार दिया है।

वांगचुक का कहना है कि 21 दिनों तक इस उपवास को सहने की प्रेरणा उनको गांधीवादी विचारधारा से मिलती है। इस क्लाइमेट फ़ास्ट के दौरान वह पिछले सात दिनों से केवल नमक और पानी का सेवन कर रहे हैं। वह हर दिन अपने सोशल मीडिया के जरिए अनशन से जुड़े अपडेट पोस्ट कर रहे हैं। अनशन के छठे दिन जारी किए गए वीडियो में ग्लोबल वॉर्मिंग पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि नाजुक हिमालय और उसके मूल निवासियों की सुरक्षा की हमारी मांग सिर्फ सरकार से नहीं है, बल्कि दुनिया के बड़े शहरों में रहने वाले नागरिकों से भी है।

सरकार पर लगाया वादाखिलाफ़ी का आरोप

अपने एक अन्य वीडियो में, वांगचुक दुख जताते हुए कहते हैं कि 2019 के संसदीय चुनावों से पहले, बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में, लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा किया था। हालाँकि, चुनावों के दौरान लद्दाखी मतदाताओं से मिले स्पष्ट समर्थन के बावजूद, 2020 तक बीजेपी आते-आते अपना वादा भूल गई।

लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने के बीजेपी के वादे की तस्दीक करता पोस्ट।
लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने के बीजेपी के वादे की तस्दीक करता पोस्ट।

उनका कहना है कि 2020 में लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (एलएएचडीसी) चुनावों के दौरान मोहभंग और गहरा हो गया, जहां क्षेत्र के लोगों ने खुद को ठगा हुआ महसूस करते हुए चुनावों का बहिष्कार करने का फैसला किया। वांगचुक बताते हैं कि कैसे केंद्र सरकार ने लद्दाखी नेताओं के चुनाव बहिष्कार के आह्वान के जवाब में, उन्हें एलएएचडीसी चुनावों के बाद छठी अनुसूची में शामिल करने का आश्वासन दिया, जिससे उन्हें एक बार फिर अपने वादों पर विश्वास करने के लिए प्रेरित किया गया। उनका कहना है कि लद्दाख के निर्दोष नेताओं ने केंद्र सरकार पर विश्वास किया और हिल काउंसिल चुनावों में भाजपा को वोट दिया।

वांगचुक ने कहा कि यह आश्वासन महज़ खोखले संकेत थे। पिछले चार वर्षों से केंद्र सरकार ने देरी की रणनीति अपनाई है। अब, इस साल 4 मार्च को, केंद्र सरकार ने अपना रुख घोषित कर दिया है और अपनी पिछली ‘प्रतिबद्धता’ से पीछे हटते हुए कहा है कि लद्दाख को छठी अनुसूची में जगह नहीं दी जाएगी।

अपनी मांगों को लेकर गांधी के शांतिपूर्ण मार्ग का अनुसरण

जब 6 मार्च को वांगचुक ने अपना उपवास शुरू किया, तो उन्होंने कहा, “मैंने 21 दिन इसलिए चुना क्योंकि यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी द्वारा किया गया सबसे लंबा उपवास था, और मैं उसी शांतिपूर्ण मार्ग का अनुसरण करना चाहता हूं जिसका अनुसरण महात्मा गांधी ने किया था। जहां हम किसी और को पीड़ा नहीं पहुंचाते हैं, हम किसी और को बंधक नहीं बनाते हैं, हम खुद को बंधक बनाते हैं, खुद को पीड़ा पहुंचाते हैं ताकि हमारी सरकार और नीति निर्माता हमारे दर्द को नोटिस करें और समय पर कार्रवाई करें।"

2019 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी लद्दाख द्वारा जारी किया गया घोषणा पत्र।
2019 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी लद्दाख द्वारा जारी किया गया घोषणा पत्र।

हमें कुछ देने की बारी आई तो पीछे हट रही है सरकार

इस बारे में 'द मूकनायक' ने लद्दाख के निवासी और स्थानीय नेता सज्जाद हुसैन से बात की। 41 वर्षीय सज्जाद ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल कर चुनाव भी लड़ा था। वह कहते हैं, "लद्दाख में 97 प्रतिशत ट्राइबल पॉपुलेशन है, भारत के संविधान में जो छठी अनुसूची है, वह ट्राइबल लोगों के लिए ही बनाई गई है। वह उनके कल्चरल और होमोजेनियस पहचानों की रक्षा के लिए बनाई गई है लेकिन सरकार इसे हमें देने के पक्ष में नहीं है। इसी को लेकर हम लद्दाख में अनशन पर बैठे हुए हैं।"

सज्जाद कहते हैं, "सरकार लद्दाख की जो नेचुरल रिसोर्सेज है उसे बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों के लिए खोल देना चाहती है, उसे संरक्षित करना नहीं चाहती है।" वह कहते हैं कि लद्दाख भूराजनीतिक नजरिए से भी बहुत महत्वपूर्ण और संवेदनशील इलाका है। यहां के लोग पिछले 70 साल से देश के साथ खड़े हैं और जब भी जरूरत पड़ी है तो मिलकर लड़े हैं, लेकिन आज जब 70 साल बाद हमें कुछ देने की बारी आई है तो सरकार पीछे हट रही है। यह तो हमारे साथ विश्वासघात है, नाइंसाफी है।" आगे वह जोड़ते हैं, “हम जो मांग कर रहे हैं वह तो बीजेपी के मेनिफेस्टो में है। हम कुछ अलग तो नहीं मांग रहे हैं?”

हिमालय की रक्षा करना सबकी जिम्मेदारी

क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक अपने यूट्यूब चैनल पर लगातार पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने वाले वीडियो पोस्ट करते रहते हैं। अपने एक वीडियो में वह कहते हैं, “मैं सोनम वांगचुक हूं, जो भारतीय हिमालय, 3,500 मीटर (11,500 फीट) की ऊंचाई पर स्थित लद्दाख के लेह नामक स्थान से दुनिया के लोगों तक पहुंच रहा हूं। मैं आज आप तक क्यों पहुँच रहा हूँ? क्योंकि आज हमारा ग्रह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों से गुजर रहा है। यह चुनौतियाँ कहीं भी हिमालय से अधिक स्पष्ट नहीं हैं, विशेषकर तिब्बती पठार पर जहाँ हम अभी हैं। आपने हमारे तिब्बती भाइयों और बहनों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में सुना होगा, जहां अंधाधुंध बांध बनाए जा रहे हैं और पर्यावरण का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। इसी तरह, लद्दाख में हिमालय के भारतीय हिस्से में, हम इसी तरह की चुनौतियों का सामना करना शुरू कर रहे हैं। हमारे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे सूखा और अचानक बाढ़ आ रही है और जल्द ही हममें से कई लोग जलवायु शरणार्थी बन सकते हैं।''

हिमालय की रक्षा का आह्वान करते हुए वह कहते हैं, “हिमालय के इस हिस्से की रक्षा करना, जिसे अक्सर ‘तीसरा ध्रुव’ कहा जाता है, न केवल लद्दाखियों की बल्कि पूरे वैश्विक ग्रह पृथ्वी की जिम्मेदारी है। यह क्षेत्र उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाद ताजे पानी का सबसे बड़ा भंडार है। यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूरी दुनिया की आबादी के लगभग एक चौथाई हिस्से को यानी करीब 2 अरब लोगों की प्यास बुझाता है।”

उन्होंने कहा कि दुनिया भर के बड़े शहरों में रहने वाले लोग, इन हिमालय को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले, सरल जीवन जीकर और अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करके, आप जलवायु परिवर्तन और हमारे ग्लेशियरों के पिघलने की गति को कम करने में मदद कर सकते हैं।

इंजीनियर, इनोवेटर और क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक।
इंजीनियर, इनोवेटर और क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक।

‘लद्दाख की आखिरी मन की बात’

यह अनशन शुरू करने से पहले, पिछले माह 03 फरवरी को सोनम वांगचुक ने अपने यूट्यूब चैनल पर ‘लद्दाख की आखिरी मन की बात’ शीर्षक से एक वीडियो अपलोड किया। जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संबोधित करते हुए कहा, “यूँ तो मैं समय-समय पर आपसे लद्दाख के मन की बात सुनाने के लिए आता रहा हूँ। पहला, मैंने आज से चार साल पहले आपसे गुहार लगाई थी कि लद्दाख के संवेदनशील पर्वतीय पर्यावरण को और यहाँ की जनजातीय संस्कृति को संरक्षण दिए जाएं और आपने अलग-अलग मंचों से कई वादे भी किए। लेकिन आज चार साल बीत गए गाड़ी वहीं की वहीं है। लोग बेबस है और अब वह रोष में आ रहे हैं।”

आगे वह कहते हैं, “आज लेह शहर के ऐतिहासिक पोलो ग्राउंड में लगभग 20 हजार लोग जमा हुए और उन्होंने भारत सरकार से गुहार लगाई कि उन्होंने जो वादे किए गए हैं उसे निभाया जाय और लद्दाख को छठी अनुसूची में संरक्षित किया जाए। लद्दाख के लोग सरकार को उसके वादे याद दिलाने और क्षेत्र की रक्षा के लिए अपने दायित्वों को पूरा करने का आग्रह करने के लिए लेह में एकत्र हो रहे हैं। लद्दाख के लोग यहाँ अपने द्वारा चुनी गई सरकारों से इन पहाड़ों और उनके नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सुरक्षा उपायों की मांग करने के लिए एकत्र हुए हैं।

छठी अनुसूची के संरक्षण के योग्य है लद्दाख

वह कहते हैं कि सरकार को प्रकृति और पहाड़ों में रहने वाले मूल निवासियों की रक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। भारत के संविधान की छठी अनुसूची में अनुच्छेद 244 जैसे संवैधानिक प्रावधान हैं, जिसका उद्देश्य इन संवेदनशील क्षेत्रों और उनके मूल निवासियों की संस्कृतियों की रक्षा करना है। लद्दाख, अपनी 97% स्वदेशी जनजातीय आबादी के साथ, इस तरह की सुरक्षा के लिए योग्य है।

बेनतीजा मीटिंग के बाद जारी प्रेस नोट।
बेनतीजा मीटिंग के बाद जारी प्रेस नोट।

हालांकि, इसके बाद 19 फरवरी और 4 मार्च को गृह मंत्रालय और लद्दाख के नेताओं के बीच बातचीत हुई जो विफल रही और सरकार ने लद्दाख को छठी अनुसूची में संरक्षण देने से इनकार कर दिया। वांगचुक ने बताया कि इसके बाद 6 मार्च को इसी सिलसिले में एक बहुत बड़ी सभा हुई जिसमें हजारों लोग फिर से जमा हुए। इसके बाद मैं और मेरे साथ कई लोग अनशन पर बैठ गए। उन्होंने कहा कि यह अनशन 21-21 दिन के चरणों में आमरण चलेगा। हमें उम्मीद है कि सरकार लद्दाख के लोगों की जो जायज मांगें हैं, जो वादे हैं, उनपर ध्यान देगी और लद्दाख को संरक्षित करेगी।

उन्होंने कहा कि "लद्दाख के संरक्षण में ही भारत का संरक्षण है।" वांगचुक ने बताया, मैं आज आपलोगों को लद्दाख की स्मृति स्थल जहां यह अनशन चल रहा है वही पर हूँ, अगले 21 दिन और जरूरत पड़े तो और 21-21 दिन करते हुए यह अनशन बढ़ता जाएगा।

आज अनशन के 7वें दिन वीडियो जारी कर सोनम वांगचुक ने कहा कि हमें उम्मीद है कि भारत के सभी लोग लद्दाख के साथ जुड़ेंगे, हमारा समर्थन करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने देश के लोगों से समर्थन जताने और संभव हो तो 17 मार्च को अपने-अपने राज्यों में अनशन पर बैठने की अपील की है।

लेह में अनशन पर बैठे सोनम वांगचुक और स्थानीय लोग।
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