धर्मनिरपेक्षता पर विपक्ष का निशाना: बीजेपी और आरएसएस पर आरोप, जाति, बाबरी से मणिपुर तक के मुद्दे

डीएमके नेता टी आर बालू ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर गहरा असंतोष व्यक्त किया और कहा कि उसमें समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का कोई जिक्र नहीं था।
बाबरी मस्जिद और मणिपुर हिंसा की घटनाएं
बाबरी मस्जिद और मणिपुर हिंसा की घटनाएंफोटो साभार- इंटरनेट
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नई दिल्ली: शुक्रवार को लोकसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा प्रमुख रूप से उठा। विपक्षी सांसदों ने सत्ताधारी बीजेपी और आरएसएस पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि सरकार भारत की धर्मनिरपेक्षता को कमजोर कर रही है और संविधान के मूल्यों से भटक रही है।

डीएमके का आलोचना

डीएमके नेता टी आर बालू ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर गहरा असंतोष व्यक्त किया और कहा कि उसमें समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का कोई जिक्र नहीं था। “मुझे लगा कि संविधान का हृदय और आत्मा गायब थी। प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता सबसे महत्वपूर्ण पहलू हैं। सरकार इन दोनों से एलर्जी रखती है,” उन्होंने कहा। बालू के अनुसार, ये सिद्धांत मात्र शब्द नहीं हैं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक, समावेशी और समानतावादी दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

उड़ीसा में ग्राहम स्टेंस की हत्या (1999) और गुजरात दंगों (2002) जैसी घटनाओं का हवाला देते हुए बालू ने कहा कि वर्तमान स्थिति और भी गंभीर है। उन्होंने कहा, “हाशिए के वर्गों और अल्पसंख्यकों को लगता है कि उन्हें छोड़ दिया गया है और उनकी आजीविका गंभीर रूप से खतरे में है। राष्ट्रपति के अभिभाषण में सरकार की समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराना चाहिए था।”

संविधान पर खतरा

सीपीएम के आर सच्चिदानंतम ने वर्तमान समय को संविधान के लिए “इतिहास का सबसे बड़ा खतरा” बताया। उन्होंने कहा, “भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र संविधान के कारण बना। लेकिन सत्ताधारी बीजेपी-आरएसएस का हिंदुत्व विचारधारा संविधान के बुनियादी मूल्यों के खिलाफ है। आरएसएस और उसके विचारकों ने कभी भी संविधान के प्रति अपनी नाराजगी को छुपाया नहीं है। मोदी के सत्ता में आने के बाद से उनके मंत्री संविधान बदलने की बात कर रहे हैं।”

टीएमसी की चिंताएं

तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने कहा कि पिछले दस वर्षों में “धर्मनिरपेक्षता खतरे में रही है।” उन्होंने आरोप लगाया कि धर्म के आधार पर भेदभाव सत्ताधारी पार्टी द्वारा प्रायोजित है और संवैधानिक अधिकारों को सीमित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। बनर्जी ने मणिपुर में जारी हिंसा का हवाला देते हुए सरकार की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाए। “मणिपुर में बलात्कार और हत्याओं की घटनाएं सामने आई हैं। क्या वहां के लोग इस देश का हिस्सा नहीं हैं?” उन्होंने पूछा।

बाबरी विध्वंस और धार्मिक भेदभाव

आईयूएमएल के ई टी मोहम्मद बशीर ने 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस को “धर्मनिरपेक्ष भारत के लिए सबसे दुखद दिन” करार दिया। उन्होंने विध्वंस के दौरान लगाए गए नारे “यह तो केवल झांकी है, काशी, मथुरा बाकी है” का हवाला दिया। बशीर ने संभल की हालिया घटना का भी उल्लेख किया, जहां एक मस्जिद में सर्वे के दौरान “जय श्री राम” के नारे लगाए गए।

शिवसेना (यूबीटी) और बीएपी की आलोचना

शिवसेना (यूबीटी) के अरविंद सावंत ने सरकार पर “संविधान के साथ खिलवाड़” करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “आपातकाल लगाने की जरूरत नहीं है। एक अघोषित आपातकाल पहले से लागू है।”

भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के राज कुमार रौत ने जाति जनगणना की मांग को रेखांकित किया और कहा कि इसे नजरअंदाज करना “संविधान पर हमला” है।

विपक्ष की मांग

विपक्ष की सामूहिक आलोचना ने सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार के धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति रुख पर चिंता जताई। बाबरी मस्जिद मुद्दे से लेकर मणिपुर में जारी संकट तक, विपक्ष ने स्पष्ट कर दिया है कि वह सरकार की कार्यवाही को संविधान के सिद्धांतों के लिए सीधा खतरा मानता है।

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